अंगूर की खेती (Grapes Farming) लगभग पूरे भारतवर्ष में सभी क्षेत्रों में की जाती है लेकिन ये नहीं कह सकते की आप अंगूर की खेती हर मौसम में और सभी जगहों पर खेती कर सकते है । अंगूर के फल स्वादिष्ट तथा स्वास्थ्य के हितकारी होने के कारण इसकी बागवानी की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और बाजारों में इनकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।पिछले दो से तीन वर्षों में इसके क्षेत्रफल में काफी तेजी के साथ वृद्धि हुआ है । जो की उत्पादन के आधार पर दक्षिण भाग में कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु मुख्य राज्य ऐसे है की जहा पर Grapes Farming में बढ़ोतरी हुयी है तथा उतप्दान में भी वृद्धि हुयी है । जबकि उत्तर भारत के क्षेत्रो में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली राज्यों में इसकी बागवानी खेती तेजी से की जा रही है ।
आपको बता दे की पिछले कुछ वर्षो में उत्तर भारत में अंगूर के उत्पादन के क्षेत्र में गिरावट देखी गई। जिसके कई प्रमुख कारण है – जैसे त्रुटियुक्त कांट-छांट, कुपोषण एवं सूक्ष्म तत्वों की कमी, क्षारीय भूमि का फैलाव, मूलवृंतों का न के बराबर प्रयोग, दीमक की समस्या आदि । उत्तर भारत में अंगूर की फसल वर्ष में केवल एक बार जून में की जाती है। जबकि दक्षिण भारत में दो बार की जाती है। इसकी बेल शीघ्र बढ़ने वाली होती है तथा तीसरे वर्ष से फल देने योग्य हो जाती है। यानी की आप 3 साल के अंदर ही अंगूर के फल प्राप्त कर सकते है । परन्तु यह तभी संभव हो सकता है जब आप पौधों की प्रारम्भिक अवस्था से ही उचित ढंग से देख रेख की गई हो और समय समय पर उसमे लगने वाले चीजों की पूर्ति किये है तभी तो यह सम्भव हो पायेगा की आप 3 वर्ष में ही फल प्राप्त करने लगेंगे।
उत्तर भारत में अंगूर की सफल बागवानी के लिए आपको वैज्ञानिक तकनीक की जरूरत पड़ेगी जिससे अंगूर की फसल से आप लगातार अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकेंगे । इस पोस्ट में किसानो के लिए अंगूर की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें , इसकी खेती करने के लिए हमें क्या क्या करना पड़ेगा तथा Grapes Farming में किन किन चीजों की आवश्यकता पड़ेगी और यह किस प्रकार से उत्पादन देगा तथा इसकी सिंचाई , गुड़ाई निराई तथा खाद एवं उर्वरक की क्या व्यवस्था है आदि सभी प्रकार की जानकरी आपको इस पोस्ट में मिल जायेगा यदि आप अंगूर की खेती करना चाहते है तो इस पोस्ट को पूरा पढियेगा ।
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अंगूर की खेती कैसे करे | Cultivation of Grapes
Table of Contents
अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु –
अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु इस प्रकार है -गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतू Cultivation of Grapes के लिएअनुकूल मानी जाती है। लेकिन यदि अधिक तापमान है तो यह Grapes Farming को बहुत ज्यादा हानी पहुंचा सकता है। और अधिक तापमान के साथ यदि अधिक आद्रता हो तो रोग लगने की सम्भावना बढ़ जाते है जलवायु अंगूर के फलो के विकास तथा पके हुए अंगूर की बनावट और गुणों पर काफी असर पड़ता है।अंगूर के फल पकते समय वर्षा या बादल का होना बहुत ही हानिकारक है।इससे फल फट जाते हैं तथा फलों की गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः उत्तर भारत में जल्दी पकने वाली किस्मों की ज्यादा से ज्यादा मांग की जाती है।
Cultivation of Grapes के लिए उपयुक्त मृदा –
अंगूर की खेती के लिए मिटटी की बात करे तो यह सभी प्रकार की मिटटी में कि जा सकती है। जैसा की आप जानते है कीअंगूर की जड़ की संरचना बहुत ज्यादा मजबूत होती है। यानी की यह यह कंकरीली,रेतीली से चिकनी तथा उथली से लेकर गहरी मिट्टियों मे आसानी से की जा सकती है परन्तु रेतीली, दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो Grapes Farming के लिए उत्तम मानी जाती है अधिक चिकनी मिट्टी में अंगूर की खेती यदि आप नहीं करेंगे तो आपके लिए बेहतर ही होगा। मिटटी का पीएच मान 6.7 से 7.8 के बिच होनी चाहिए इस प्रकार के मिटटी में अंगूर की खेती सर्वोत्तम होगी ।
अंगूर की उन्नत किस्मे –
अंगूर की उन्नत किस्मो के नाम इस प्रकार है –
पूसा सीडलेस –
पूसा सीडलेस यह एक प्रकार की अंगूर की प्रमुख उन्नत किस्म है पूसा सीडलेस बेलओजस्वी एवं अधिक उपज देने वाली है इसके गुच्छे का वजन लगभग 300 ग्राम का होता है। यह मध्यम आकार फल चमकदार,आकर्षक, एक साथ पकने वाले एवं फल का छिल्का पतला होता है और टी.एस.एस. 22-24, खटास 0.75 प्रतिशत, तथा रस 65 प्रतिशत होता है यह फरवरी मार्च में पकता है ।
थॉमसन सीड-लेस
थॉमसन सीड – लेस अंगूर की यह भी एक प्रकार की किस्म है जो भारत के पश्चिमी भागो में इसकी खेती की जाती है इसका बेल ओजस्वी और बहुत ज्यादा फैलने वाली होती है लेकिन 5 से 6 वर्ष में इसकी फलो में कमी आती हैं। इसके गुच्छे मध्यम से बड़े आकार के होते है और बीज रहित होते है । तथा इसमें मिठास 22 से 24 प्रतिशत होता है । और अम्लीयता 0.63 प्रतिशत होता है और इसमें रस 39 प्रतिशत होता हैं।
परलेट-
परलेट किस्म भारत के पश्चिमी भाग में उत्तम माना जाता है जैसे की आपको बता दे की यह पंजाब , उत्तर प्रदेश , हरियाणा और राजस्थान में व्यवसायिक रूप से इसकी खेती की जाती है । इसके गुच्छे भरे हुए और मध्यम आकर के होते है तथा इसमें मिठास 15 से 20 प्रतिशत तक होता है और यह बीज रहित होता है यानी की इसके फल में बीज नहीं पाया जाता है ।
अर्कावती –
यह अंगूर की काली चम्पा व थाॅमसन सीडलेस की संकर किस्म हैं। अर्कावती का बेल ओजस्वी, गुच्छे वाले होते है । यह मध्यम आकर एवं इसके गुच्छे लगभग 500 ग्राम के होते हैं। इसके फल गोलाकार, सुनहरे हरे होते है । और इसके फल में मिठास 22-25 प्रतिशत होता है तथाअम्लीयता 0.6 -0.7 प्रतिशत होता है और इसके फल में रस की मात्रा 70-74 प्रतिशत होता हैं।
फ्लेम सीडलेस –
फ्लेम सीडलेस यह गहरे जमुनी रंग का होता है इसके कड़े जुड़े वाली होती है इस प्रकार की किस्मो में अधिक उपज प्राप्त होता है यह अंगूर की विशेष प्रकार की किस्मो में से एक किस्म है जो की सभी क्षेत्रो में इसकी खेती की जाती है और यह अंगूर की प्रमुख किस्म है ।
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अंगूर की प्रवर्धन तकनीक –
अंगूर की खेती हेतु आप प्रवर्धन तकनीक मुख्यतः अपना सकते है । इस तकनीक में आप प्रवर्धन कटिंग कलम द्वारा कर सकते है यह जनवरी माह में काट छाँट से निकली टहनियों से कलमे तैयार की जाती है । कलमे सदैव स्वस्थ और परिपक्व टहनियों से ही चुनना चाहिए । तथा सामान्यतः 4 से 6 गांठों वाली और 25 से 45 सेंटीमीटर लम्बी कलमें बनाकर तैयार कर लेते है ।कलम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कलम का निचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए । तथा ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए।इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार की गयी तथा जमीन की सतह से ऊँची क्यारियों में लगा देते हैं। एक वर्ष पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर खेत में रोपित कर है ।
Cultivation of Grapes के लिए गढ़े तैयार करना –
अंगूर की खेती के लिए आपको लगभग 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदना होगा और उसमें अच्छी प्रकार से सड़ी हुयी गोबर की खाद 15 किलोग्राम तथा 250 ग्राम नीम की खली और 50 ग्राम फॉलीडाल कीटनाशक चूर्ण, 200 ग्राम सुपर फॉस्फेट व 100 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति गड्ढे मिलाकर भर दें। फिर आप पौध लगाने के करीब 15 दिन पूर्व इन गड्ढ़ों में पानी भर दें जिससे वह तैयार हो जाए ।जनवरी माह में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को रोप दें। याद रहे की पौध रोपण के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करे ।
अंगूर के लिए उपयुक्त खाद एवं उर्वरक –
आपको बता दे की अंगूर की खेती के लिए बहुत ज्यादा यानी की काफी मात्र में पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। अतः खेत की भूमि कि उर्वरता शक्ति बनाये रखने के लिए और लगातार अच्छी गुणवत्ता वाली फसल लेने के लिए यह जरुरी है की खाद एवं उर्वरकों द्वारा पोषक तत्वों की पूर्ति भरपूर मात्रा में की जाय ।अंगूर की आदर्श विधि 3 x 3 मीटर की दुरी पर लगाई जाती है । और अंगूर की 5 वर्ष या आगे के वर्षों हेतु बेल में लगभग 600 ग्राम नाइट्रोजन, 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 650 ग्राम पोटेशियम सल्फेट और 60 से 70 किलोग्राम गोबर की खाद की जरूरत पड़ती है ।
अंगूर की सिंचाई –
अंगूर की खेती में कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है । अतः आप एक वर्ष से कम उम्र के पौधों की नियमित सिंचाई करते रहे। और दो वर्ष के पौधों को ठंड में 30 दिन के अंतराल पर तथा गर्मी में 10 – 15 दिन केअंतराल पर सिंचाई करते रहे । लेकिन आप अंगूर की खेती में ज्यादा सिंचाई न करे । इससे भी ज्यादा आपको ही फायदा होता है आपको सिंचाई अधिक करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती है और सिंचाई का खर्च भी नहीं आता है ।
अंगूर की फसल की कटाई छटाई तथा सधाई –
अंगूर की खेती से अच्छे उत्पादन प्राप्त करने के लिए आपको समय समय पर कटाई छटाई तथा सधाई करते रहना चाहिए क्योकि अंगूर की अधिक उत्पादन में यह प्रमुख भूमिका निभाती है अतः आप समय समय में कटाई-छटाई करते रहे ।कटाई-छटाई के दो उद्देश्य होते है। जो कुछ इस प्रकार का है – पहला लता कि समुचित ढ़ंग से किस्म कि ओज क्षमता के अनुसार सधाई करना तथा एक स्थाई ढ़ांचा निर्मित करना जिससे लता का विकास चारों दिशाओं में समुचित रूप से हो सके ।और दूसरा लताओं से नियमित रूप से फल प्राप्त करना इसलिए प्रथम दो वर्षों के अन्दर लता को ढ़ांचा प्रदान किया जाता है।
अंगूर की फसल की निंदाई एवं गुड़ाई-
अंगूर की फसल में निराई गुड़ाई की बात करे तो यह अंगूर की खेती को खरपतवार रहित रखे यानी की आप अंगूर की फसल में किसी भी प्रकार का खरपतवार न आये अंगूर की फसल में खरपतवार न आने का सिर्फ एक ही कारण है जो की आप समय समय पर खेतो की निदाई एवं गुड़ाई करे। तथा थालों में हाथ से खरपतवार निकाल कर साफ करें अथवा खरपतवारनाशी रसायन का उपयोग कर उसे नस्ट कर दे ।
अंगूर की खेती में रोग एवं उसके रोकथाम –
उत्तरी भारत में अंगूर की बेलों पर वर्षा शुरू होने पर एक विशेष प्रकार का रोग जो एन्ट्रेक्नोज, सफेद चूर्णिल रोग तथा सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा बीमारियों का बहुत तेजी से प्रभाव पड़ता है । एन्ट्रेक्नोज काआक्रमण वर्षा व गर्मी (जून से जुलाई) के साथ-साथ शुरू हो जाता है। और यह बहुत तेजी से फैलता है और इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । इसके प्रकोप से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं । और यह धीरे धीरे पुरे पौधे को ही नस्ट कर देता है ।
रोकथाम –
एन्छेक्नोज एवं सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा की बीमारियों की रोकथाम के लिए आपको ब्लाईटाक्स या फाइटालोन का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करे यानी की आप 750 ग्राम 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ की मात्रा से छिड़काव करना चाहिए । यह एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में करें और 15 दिनों के अन्तराल पर सितम्बर तक ऐसे करते रहें।
एन्छेक्नोज रोग के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.2 प्रतिशत) या बाविस्टीन (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें। बादल छाये रहने पर 7 से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव जरूरी है।सफेद चूर्णिल रोग शुष्क जलवायु में देखा जाता है| इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत घुलनशील गंधक या 0.1 प्रतिशत कैराथेन या 3 ग्राम प्रति लीटर पानी बाविस्टीन का छिड़काव दो बार 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
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अंगूर की फसल में किट व कीटो का रोकथाम –
अंगूर की खेती में किट – पत्ते खाने वाली चैफर बीटल अंगूर की बेलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों में सबसे अधिक खतरनाक है। यह कीटो में प्रसिद्ध किट है । यह चैफर बीटल दिन के समय में छिपी रहती है। तथा रात में पत्तियां खाकर छलनी कर देती है तथा नस्ट भी कर देती है । तथा बालों वाली सुंडियां किट यह मुख्यत: नई बेलों की पत्तियों को ही खाती है । इनके साथ-साथ स्केल कीट, जो सफेद रंग का बहुत छोटा एवं पतला कीड़ा होता है। यह टहनियों शाखाओं तथा तने पर चिपका रहता है और रस चूसकर बेलों को बिलकुल सुखा देता है । इनके अतिरिक्त एक बहुत छोटा कीट थ्रिप्स है, जोकि पत्तियों की निचली सतह पर रहता है।
रोकथाम –
सभी प्रकार के कीटों के प्रकोप से बेलों को बचाने के लिए बी एच सी (10 प्रतिशत) का धूड़ा 38 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा फोलिथियोन या मैलाथियोन या डायाजिनान का 0.05 प्रतिशत से 0.1 प्रतिशत का छिड़काव जून के अन्तिम सप्ताह में कर देना चाहिए। और बाद में छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर जुलाई से सितम्बर तक करते रहना चाहिए । इसके आलावा आप स्केल कीट के प्रकोप से बेलों को बचाने के लिए छंटाई करने के तुरन्त बाद 0.1 प्रतिशत वाले डायाजिनान का एक छिड़काव कर देना चाहिए ।
अंगूर की फलो की तुड़ाई कैसे करे-
अंगूर की फल की तभी तुड़ाई करनी चाहिए जब गुच्छे के सभी अंगूर के दाने अच्छे तरह से पक जाए तब तोड़ना चाहिए या जब उसके दाने खाने योग्य हो जाए यानी की उसके बाह्य भाग मुलायम हो जाए तब आप तोड़ सकते है । अंगूर की फलो की तुड़ाई आप प्रातः या सायंकाल काल करे क्योकि फलो की तुड़ाई के बाद उसे 2 घंटे के लिए छाया में रख दिया जाता है फिर उसे पेंकिंग करते है ।
अंगूर की उत्पादन –
अंगूर की उपज की बात करे तो यह भारत में अंगूर की औसतन पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से होती है जोकि विश्व में सबसे अधिक है । वैसे तो अंगूर की पैदावार आपके क्रियाकलाप पर निर्भर करता है की आप शुरू से अंत तक क्या क्या किये है यदि अंगूर की उन्नत खेती करेंगे तो आप अंगूर की खेती से 30 से 50 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज आप प्राप्त कर सकते है ।
सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न-
अंगूर की बेल में कोन सी खाद व उर्वरक डालनी चाहिए ?
अंगूर की बेल में आप खाद एवं उर्वरक इस प्रकार डाल सकते है प्रत्येक बेलों को महीने के अंतराल पर 200 ग्राम सुपर फोस्फेट सहित 100 ग्राम यूरिया देने से पर्याप्त शाखाओं का विकास होता है।
अंगूर की उन्नत किस्मो के नाम बताईये ?
अंगूर की उन्नत किस्मो के नाम कुछ इस प्रकार है –
1.पूसा उर्वशी
2.यूरोपी अंगूर
3.ब्यूटी सीडलेस
4.परलेट
5.पुसा सीडलेस
6.पूसा उर्वेशी
7.पूसा नवरंग
अंगूर कोन से महीने में लगते है ?
अंगूर जनवरी के महीने में लगाते है ।
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