हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
अलसी की खेती ( Alsi ki kheti )
Table of Contents
अलसी को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुपर फूड का दर्जा दिया गया है इस चमत्कारिक फ़सल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है वर्षा आधारित अंसिचित दशा में अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) काफी लाभदायक होता है क्योंकि अलसी की फसल को ज्यादा देखरेख और खाद पानी की आवश्यकता नहीं होती है |
अलसी की खेती के लिए प्रमुख किस्मे ( Major varieties for Alsi Ki Kheti )
अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) के लिए प्रमुख किस्मे निम्नलिखित है जैसे टी-397 , जवाहर-23, आर एल-933 (मीरा), प्रताप अलसी-1 और जवाहर-552 किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके बहुत अच्छा लाभ कमा सकते है |
टी 397 किस्म
इस किस्म के अलसी के पत्तियों का रंग हरा और फूल नीला होता है अलसी के पौधों में लगे 1000 दानों का वजन लगभग 7.5 से 9 ग्राम तक होता है वहीं यदि हम दोनों से निकलने वाले तेल की मात्रा की बात करें तो लगभग 44% तक तेल प्राप्त होता है इस किस्म की खेती से प्रति हेक्टेयर में लगभग 12 से 14 कुंतल तक अलसी का उत्पादन प्राप्त होता है |
जवाहर 23 किस्म
अलसी के इस किस्म के पौधों में लगने वाले फूलों का रंग सफेद होता है और इसके 1000 दोनों का वजन 7 से 8 ग्राम होता है इन दोनों से निकलने वाले तेल की मात्रा लगभग 43% तक होती है इस किस्म के अलसी से एक हेक्टेयर खेत में लगभग 14 से 15 कुंतल तक अलसी का उत्पादन प्राप्त होता है |
आर एल – 933
इस किस्म के अलसी में लगने वाले फूलों का रंग नीला होता है और इसमें उखटा रोग प्रतिरोधी होता है इस किस में लगने वाले दाने चमकीले और भूरे रंग के होते हैं जो बुवाई के 120 से 130 दिन के अंदर टक्कर तैयार हो जाती हैं अलसी की इस किस्म से एक हेक्टेयर में लगभग 16 कुंतल तक उत्पादन प्राप्त होता है |
प्रताप अलसी-1 किस्म
सफेद फूलों वाली अलसी की इस किस्म की अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) ज्यादातर राजस्थान के सिंचित क्षेत्र में ही किया जाता है यह किस्म कालिका मक्खी झुलसा और छाछया रोग प्रतिरोधी होता है अलसी की यह कि बुवाई के 135 से 140 दिन में टक्कर तैयार हो जाती है इस किस्म से एक हेक्टेयर खेत में लगभग 20 क्विंटल तक अलसी का उत्पादन प्राप्त होता है इसमें लगने वाले दोनों का रंग चमकीले भूरे रंग का होता है |
जवाहर – 552 किस्म
अलसी के इस किस में 44% तक तेल पाया जाता है इस किस्म की खेती ( Alsi Ki Kheti )ज्यादातर संचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त माने जाते हैं अलसी की यह किस्म में बुवाई के लगभग 115 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है इस किस्म से एक पर खेत में 8 से 10 कुंतल तक तुलसी का उत्पादन प्राप्त होता है |
इसके अलावा भी अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) करने के लिए विभिन्न प्रकार की किस्म उपलब्ध है जैसे लक्ष्मी-27, शारदा, जेएलएस-73, जेएलएस-66, जेएलएस-67, जेएलएस-95, इंद्रा अलसी-32, कार्तिकेय, दीपिका, मऊ आज़ाद अलसी-2 बीयूटी आदि अलसी की किस्में उपलब्ध हैं |
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अलसी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान ( Suitable soil, climate and temperature for flax cultivation )
अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti )अच्छी जल विकास वाली काली चिकनी दोमट मिट्टी में करना चाहिए जिसका पीएच मान सामान्य हो वही भूमि अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) के लिए उपयुक्त होती है अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) में फसल को तैयार होने के लिए सर दर्द और शुष्क जलवा यू की आवश्यकता होती है हमारे देश में इसकी खेती रबी की फसल के बाद किया जाता है |
समान रूप से होने वाली वर्षा अलसी के फसल के लिए काफी लाभदायक होता है जिस क्षेत्र में 40 से 50 सेंटीमीटर की वार्षिक वर्षा होती है वहां पर अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है सामान्य तापमान में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं तथा बिजो के अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
अलसी की खेती के लिए खेत की तैयारी ( Field preparation for Alasi Ki Kheti )
अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए सबसे पहले खेतों को अच्छे तरीके से तैयार करना चाहिए इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए और फिर बाद में 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाड़ी को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल देना चाहिए इसके साथ ही एक बोरा एन.पी.के की मात्रा को खेत में डालकर जुताई कर दे जिससे गोबर की खाद और रासायनिक खाद तथा मिट्टी आपस में अच्छे तरीके से मिल जाते हैं |
खेत में मिलने के पश्चात पानी भरकर पलेव कर दें पानी लगाने के कुछ दिन बाद जब खेत की मिट्टी सुखी दिखाई देने लगे तो रोटावेटर की सहायता से एक बार जुताई करवा दे इसके बाद खेत में पाटा चला कर खेत को अच्छे तरीके समतल कर ले जिससे जल भराव की समस्या ना हो |
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अलसी के बीजों की रोपाई का उपयुक्त समय और तरीका ( Right time and method of planting Flax Seeds )
अलसी के पौधों की रोपाई बीज़ के रूप में की जाती है अलसी के बीजों की रोपाई पंक्तियों में किया जाता है इसके लिए सबसे पहले खेत में एक फिट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लेना चाहिए और पंक्तियों में लगाये गए बीजों के बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर अवश्य होना चाहिए |
आप इसके बीजों की रोपाई छिड़काव विधि द्वारा करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको बीजों को समतल खेत में छिड़ककर कल्टीवेटर लगाकर हल्की गहरी जुताई कर देनी चाहिए जिससे बीज़ खेत की मिट्टी में अच्छे तरीके से मिल जाए छिड़काव विधि द्वारा बीजों की रोपाई में 40 से 45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीज़ की रोपाई करते हैं तो 25 से 30 किलोग्राम बीज़ की आवश्यकता होती है |
परंतु खेत में बीजों की रोपाई करने से पहले यह अवश्य ध्यान रखें की बीज बुवाई करने से पहले उसे कार्बनडीए जिम या ट्राइकोडर्मा की उचित मात्रा से उपचारित कर ले जिससे अलसी के बीजों में रोग लगने की संभावना कम होती है अलसी के बीजों की रोपाई के लिए सिचित जगह पर नवंबर के महीने तथा असिचित जगह के लिए अक्टूबर के महीने को उचित माना गया है |
अलसी के फसलों की सिचाई (Irrigation of Alsi Ki Fasal )
अलसी के फसलों को तैयार करने के लिए अत्यधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है इसके फसलों को पूर्ण रूप से तैयार होने के लिए तीन से चार बार सिंचाई की आवश्यकता होती है सबसे पहले इसकी सिंचाई बीज रोपाई के लगभग 1 महीने के बाद की जाती है तथा दूसरी सिंचाई पौधे में फूल लगने के दौरान की जाती है औरअंतिम सिंचाई तब की जाती है जब आलसी के पौधों में बीज़ बनने लगते हैं ।
अलसी के फसलों में खरपतवार नियंत्रण ( Weed control in linseed crops )
अलसी के फसलों में खरपतवार नियंत्रण के काम आवश्यकता होती है इसके पौधों को खरपतवार से बचने के लिए प्राकृतिक निराकरण तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और उसके तरीके रासायनिक विधि का इस्तेमाल करके भी आपका परिवार को नियंत्रित कर सकते हैं इसके लिए खेत मैं पेंडिंमेथालिन 30 ई सी की उचित मात्रा का छिड़काव बीज़ रोपाई के बाद कर देना चाहिए |
अलसी के पौधे में लगने वाले रोग एवं रोकथाम ( Diseases and prevention of flaxseed plant )
उकठा रोग
अलसी के पौधों में यह रोग को किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है इस रोग से प्रभावित होने वाले पौधों की पत्तियां अंदर की तरफ मुड़ जाने लगते है और मुरझाने लगते हैं तथा पत्तियों का रंग पीला होकर गिर जाता है इस रोग के रोकथाम करने के लिए ट्राइकोडर्मा की उचित मात्रा या चिड़काव पौधों पर कर देना चाहिए |
फल मक्खी रोग
यह एक प्रकार का सामान्य कीट रोग होता है जो ज्यादातर पौधों पर पाया जाता है लेकिन यह रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करता है जैकेट लार्वा अपने अंडों को फूलों की पंखुड़ी में पटक देते हैं इसके पश्चात पौधे के बीज नहीं बन पाते है यह फल मक्खी रोग लग जाने पर पैदावार 70% तक प्रभावित होती है यह कीट रोग दिखाने में नारंगी रंग का होता है जिसके पंख पारदर्शी होते हैं इन कीटों को समाप्त करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव कर देना चाहिए |
इसके अलावा भी अलसी के पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग देखने को मिलते हैं जैसे भभूतियां रोग अल्टरनरिया झुलसा गेरुआ आदि रोग |
अलसी के फसलों की कटाई पैदावार और लाभ ( Linseed Harvesting Yields and Benefits )
अलसी के पौधे बीज़ रोपाई के 120 125 दिन के बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं अलसी के फसलों की कटाई जड़ के पास से करना चाहिए और इसके पश्चात पौधों से बीजों को झाड़कर अलग कर लेना चाहिए अलग-अलग किस्म के आधार पर इसकी पैदावार भी अलग-अलग होती है |
अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) से 15 से 20 कुंतल बीजों की प्राप्ति प्रति हेक्टेयर से की जा सकती है अलसी के पौधे से 38% तक रेशे का उत्पादन प्राप्त होता है जिसकी मांग विदेशी में काफी अधिक होती है अलसी के बाजरी भाव काफी अच्छा होता है जिस कारण से किसान भाई अलसी की खेती ( Alsi Ki Kheti ) करके अच्छी कमाई कर सकते हैं |
सामान्यत पूछे जाने वाले प्रश्न
असंचित क्षेत्र में अलसी की खेती की औसत पैदावार 2 से 3 क्विंटल प्रति विजय का उत्पादन प्राप्त होता है और इस फसल में बैगनी रंग के फूल खिलते हैं वहीं संचित अलसी की खेती की पैदावार तीन से चार कुंतल प्रति भी गया होता है |
अलसी की फसल से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 7 से 8 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अंतिम जुताई के समय खेत में डाल देना चाहिए |