Cherry Ki Kheti / Cherry Farming in India / कैसे करे चेरी की खेती से बम्पर कमाई जाने सम्पूर्ण जानकारी

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti )

Table of Contents

चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) एक गुठलीदार खट्टा-मीठा फल के रूप में की जाती है | क्यूकि इसका फल का स्वाद खट्टा-मीठा होता है, तथा फल देखने में बहुत आकर्षक होता है | चेरी को स्वास्थ के लिए काफी अच्छा फल माना जाता है | क्यूकि यह विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों जैसे:- विटामिन ए, विटामिन 6,मैगनीज, आयरन, कॉपर थायसिन, नायसिन और फास्फोरस प्रचुर मात्रा उपस्थित होता है |

Cherry Ki Kheti

चेरी में एंटीऑक्सीडेंट की भी बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है ज्यादातर चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) यूरोप, अमेरिका, एशिया, तुर्की देशों में होती है। भारत में इसकी खेती उत्तर पूर्वी राज्यो में और उत्तर के कश्मीर,उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश,आदि राज्यों में भरपूर मात्रा में की जाती है।

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चेरी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और जलवायु (Suitable land and climate for Cherry Ki Kheti )

चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) किसी भी प्रकार की भूमि में आसानी से कर सकते है,परन्तु यदि आप चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) से अच्छा उत्पादन करना चाहते है तो इसकी खेती रेतीली दोमट मिट्टी में करे जिसका PH मान 6 से 7.5 हो इसके अलावा भूमि नम व उपजाऊ भी होनी चाहिए | समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर चेरी का उत्पादन नहीं किया जा सकता है | किन्तु कुल्लू और कश्मीर की 1500 मीटर ऊँची घाटियों पर भी इसे सफलता से ऊगा सकते है |

चेरी की फसल कों लगभग130 से 150 दिन तक ठंडी जलवायु की अवशकता  होती है | जिस स्थान का तापमान 7 डिग्री से भी कम हो, वही चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) सफलतापूर्वक की जा सकती है |

चेरी के फलो को तीन भागो में विभाजित किया गया है

1.प्रूनस एवियम

इसे मीठी चेरी के नाम से जाना जाता है, इसकी मूल क्रोमोजोम संख्या एन- 8 है, और इसमें हार्ट और बिगारो वर्ग की चेरी शामिल है।

2.प्रूनस सीरैसस 

प्रूनस सीरैसस को खट्टी चेरी के नाम से जाना जाता है, इसमें अमरैलो और मोरैलो वर्ग की चेरी शामिल है।

3.ड्यूक चेरी

ड्यूक चेरी को पालीप्लायड चेरी के नाम से जाना जाता है जो पहले व दूसरे के संकरण से मिलकर बनती है, इसकी मूल क्रोमोजोम संख्या 2 एन- 32 है।

चेरी खाने के फायदे ( Benefits of eating cherries )

चेरी फल में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व उपलब्ध होते है, जैसे की विटामिन ए, बी, सी, थायमिन, काॅपर, एंटीऑक्सीडेंट, पानी, आयरन, नायसिन, मैगनिज, राइबोफ्लैविन पोटेशियम, फाइबर,और क्यूर्सेटिन फस्फोरस, बीटा-कैरोटीन आदि।हमे प्रतिदिन कम से कम 8 चेरी खाना चाहिए जिससे दिल संबधित रोंगों की सम्भवना कम हो जाती है अच्छी नींद, आती है वजन को  कम करने में, शरीर के ऊर्जा का स्तर बढ़ाने में मदद करता है और पाचन क्रिया में, कैंसर के बढ़ते टिश्यूज को रोककर शरीर के ऊर्जा का स्तर बढ़ाने में मदद करती है।

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चेरी की खेती करने के लिए उन्नत किस्में ( Improved varieties for Cherry Farming in India )

चेरी की व्यवसायिक खेती ( Cherry Ki Kheti ) के लिए कुछ किस्में उपलब्ध है जैसे की:-

• अर्ली, एल्टन, अर्ली राईवरर्स ब्लेक हार्ट, फ्रोगम जो जल्दी तैयार होने वाली चेरी की किस्में है।
• इम्परर, फ्रैंसिस, गर्वरनर उड जो देर से तैयार होने वाले किस्म होते है |
• प्रोलोफिक बेडफोर्ड, वाटरलू जो मध्य समय में तैयार होने वाली किस्में है।

बिगररेउ समूह:-

इस किस्म की चेरी का आकार गोल और रंग हल्के लाल होता है, इसमें किस्में जैसे की सम्मेलन, सिखर सनबर्ट, लैपिंस, सैम और स्टेला आदि है।

हार्ट समूह:-

इसका आकार दिल और रंग अंधेरे से हल्का लाल होता है |

चेरी की खेती में पौधे तैयार करना ( Plant preparation in cherry cultivation )

Cherry Ki Kheti

चेरी के पौधे को बीज या जड़ कटाई द्वारा तैयार कर सकते है ग्राफ्टिंग विधि से भी चेरी के पौधे को लगाए जा सकते है। बीज की सहायता से पौधा को तैयार करने के लिए बीज पूरी तरह से पके होने चाहिए और उसे एक दिन के लिए विशेष विधि से भिगो के इन बीज को सूखे और ठंडे स्थान पर संग्रहीत किया जाता है। बीज अंकुरण के लिए शीतल उपचार की जरुरत होती है।

पौधरोपण का समय 

चेरी की खेती ( Cherry Ki Kheti ) करने के लिय चेरी के पौधे के रोपण का समय फरवरी जून और सितम्बर में की जाती हैं। पौधों को ऊपर उठी बेड में लगाए जाते हैं, जिसकी चैड़ाई 45 – 50 इंच और ऊँचाई लगभग 6 इंच होनी चाहिए।

2 बेड के बीच 18 इंच, 2 पंक्तियों के बीच 6 – 10 इंच और 2 पौधों के बीच 1 इंच की दूरी होना चाहिए। पौधों की रोपाई ठंडे समय में करनी चाहिए। शुरुआत में पौधे लगाने के बाद लकड़ी गाढ़कर पौधो को सहारा देना चाहिए।

परन्तु यह ध्यान रहे की चेरी के तने पर तेज सूरज की रोशनी ना पड़े क्यूकि तेज रोशनी नुकसान पहुचती है तेज से बचाने के लिए तने पर चूने का लेप लगा देना है या कार्ड बोर्ड की पट्टी से ढ़क देना है।

चेरी की सिंचाई ( irrigation of cherries )

सिंचाई:- चेरी को बहुत कम सिंचाई की अवशाकता होती है क्युकी चेरी बहुत कम समय में पककर तैयार हो जाती हैं जिस कारण  से इन्हें ज्यादा गर्मी का सामना नहीं करना पड़ता। इसीलिए इसकी खेती सूखी जलवायु में किया जाता है | खेतो में नमी कों बनाये रखने के लिए इसके उद्यान में पलवार बिछाना अच्छा होगा। खट्टी चेरी में उत्पादन ज्यादा होता है यही कारण है की इसे ज्यादा पानी की जरुरत नहीं पड़ती है।

चेरी की खेती में उपयूक्त खाद् और उर्वरक ( Manures and fertilizers suitable for cherry cultivation )

चेरी के पौधों में आडू के पौधों की अपेक्षा अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है | चेरी के पौधे में पोटाश की कमी भी नहीं देखने को मिलती है,क्योकि इसके पौधों में पोटाश लेने की क्षमता भी बहुत अधिक पाई जाती है यदि है चेरी की खेती में प्रयुक्त खाद की मात्रा की बात करे तो सेब की फसल में दी जाने वाली खाद के बराबर मात्रा ही स्वीट चेरी के फलो को खाद देना होता है, तथा खट्टी चेरी में पौधों को नाइट्रोजन अधिक मात्रा में दे |

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चेरी की खेती में लगने वाले रोग एवं रोकथाम ( Diseases and prevention in cherry cultivation )

1.बैक्टीरियल गमोसिस

यह रोग चेरी के पौधों में बहुत अधिक मात्रा में देखा जाता है इस रोग की रोगथाम करने के लिए पतझर और बसंत के मौसम में बोर्डोमिश्रण का छिड़काव करे और रोगजनित भाग को छीलकर अलग करके चौबटिया पर पेस्ट लगा देना  चाहिए।

2.लीफ स्पाट

इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों में बैंगनी रंग के धब्बे दिखयी देने लगती है जो बड़े हो जाने पर लाल-भूरे दिखाई देने लगते है और जब धब्बों के सूखे हुए क्षेत्र झड़ जाते हैं, तो पत्तियों में छेद हो जाता है और पत्ते सूखकर गिरने लगते है इस रोग की रोगथाम करने के लिए जबके पौधे में लगी कालिया सूखने और पत्तों के गिरने लगते तो ज़ीरम या थीरम 0.2% का छिड़काव कर देना चाहिये |

3.भुरी व्याधि

यह रोग फलो की तुडाई के समय वातावरण की अर्द्रता के कारण लगते है मीठी और ड्यूक किस्मों में यह रोग अधिक मात्रा मे देखने कों मिलाता है सडे़ हुए हिस्सों में पाउडर की तरह भूरे रंग के छेद बनने लगते है | इस रोग की रोगथाम करने के लिए कैप्टान का छिड़काव 7 से 8 दिन में करते रहे |

4.ब्लेक फ्लाई

यह एक ऐसा कीट होता है जो सबसे ज्यादा मात्रा में चेरी के नये पत्तियों और साखाओं में झुंड के रूप में देखने को मिलता है जो शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं जिस कारण से फल ख़राब हो जाता है और खाने के लायक नहीं रहता है | इस रोग की रोगथाम करने के लिए चेरी के पौधों में नीम का काढ़ा कीटनाशी या रोगोर का इस्तेमाल करना चाहिए।

चेरी के फलो की तुड़ाई

चेरी के पौधे पौधरोपाई के 5 साल बाद फल देना प्रारम्भ कर देते है और 10 साल तक फल अच्छी तरह आते हैं। और यदि आप इसके पेड़ का अच्छे से ध्यान रखते है तो 50 साल तक फल का उत्पादन प्राप्त कर सकते है मई महीने के बीच में फल पकना शुरू कर देते है लेकिन फल फटने की समस्या कभी-कभी गम्भीर हो जाती है। बिंग और ब्लैक हार्ट किस्मों के फल में यह समस्या अधिक नहीं होती।

उपज:-

1 पेड़ से लगभग 15 – 25 किलो फल उपज हो जाता है। इसके पकने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए नहीं तो पकने के बाद वो जल्दी ख़राब हो सकते है। मीठी चेरी ताजी खायी जाती है और खट्टी को शाक के रुप, मुरब्बा, डिब्बाबन्दी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न 

चेरी का पौधा कितने दिनों में फल देने लगता है ?

चेरी का पौधा पौध रोपाई के 2 से 3 साल बाद फलों का उत्पादन देना प्रारंभ कर देते है |

प्रतिदिन चेरी का सेवन करने से क्या होता है ?

प्रतिदिन चेरी खाने या चेरी का रस पीने से किसी भी व्यक्ति के हृदय स्वस्थ को हो सकता है नींद की गुणवत्ता बढ़ जाती है और सूजन भी कम हो जाती है उच्च रक्तचाप या यह गोट जैसी विशिष्ट स्थितियां वाले लोग के लिए काफी लाभदायक है |

चेरी कितने प्रकार के होते हैं ?

चेरी छोटे लाल रंग के गोलाकार के फल होते हैं इनमें लगी दांडी लंबी होती है और इनका गुदगुदा फल होता है जिसके अंदर सख्त बीज होते हैं चेरी पर में छोटे-छोटे बच्चों में होते हैं और या दो प्रकार के होते हैं चेरी मीठी और खट्टे |

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