Laung Ki Kheti : लौंग की खेती से कर बम्पर कमाई

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट लौंग की खेती (Laung Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti )

Table of Contents

लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) मुख्य रूप से मसाला फसल के रूप में किया जाता है लौंग कों मसाला के रूप में अत्याधिक मात्रा में किया जाता है  जफलों का मसाले में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।और इसके बाद भी लौंग का उपयोग आयुर्वेदिक दवाइयों कों बनाने में भी किया जाता है । लौंग की तासीर बहुत ज़्यदा गर्म होती है, जिस कारण से सर्दियों के मौसम में सर्दी ,जुकाम हो जाने पर लौंग का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिल जाता है।

Laung Ki Kheti

लौंग के तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों के स्वाद को बढ़ाने के साथ-साथ और भी विभिन्न प्रकार के औद्योगिक सामग्री कों बनाने में उपयोग किया जाता है जैसे लौंग के तेल का उपयोग टूथपेस्ट, दांत दर्द की दवा, पेट की बीमारियों की दवा  कों बनाने में किया जाता है हमारे हिन्दू धर्म में लौंग को हवन और पूजा में भी इस्तेमाल किया जाता है। लौंग एक प्रकार का  सदाबहार पौधा होता है, जिसका पूर्ण रूप से  विकसित एक पौधा कई वर्षो तक लगातार पैदावार देता है और लौंग का एक पौधा 45 से 45 वर्षो तक जीवित रहता है ऐसे में किसान भाई ( Laung Ki Kheti ) करके काफी अधिक मात्रा में मुनाफा कमा सकते है |

 लौंग की खेती कैसे करे  (Clove Farming in India) 

लौंग का पौधा एक सदाबहार पौधा है। इसके पौधों को अधिक मात्रा में पानी की जरुरत पड़ती है।जिस छेत्र में बारिश कम मात्रा में होती है वहा भी लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) आसानी से की जा सकती है लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) करते समय यह ध्यान रखे की लौंग के पौधे में न लगे और इसके  अलावा  लौंग का पौधा अत्याधिक सर्दी को सहन नहीं कर पाता है।

इसके पौधों को अच्छे तरीके से विकसित होने के लिए अनुकूल मौसम की आवश्यकता होती है। देश के विभिन्न भागों की जलवायु, भूमि की उर्वरक क्षमता भिन्न – भिन्न है लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण, अत्याधिक मात्रा में की जाती है।

लौंग की खेती में उपयुक्त मिट्टी और जलवायु ( Suitable soil and climate for clove cultivation )

लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) भारत के उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है जहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय तथा गर्म होती है।लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी तथा उष्ण कटिबंधीय जलवायु की जरुरत होती है। लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) उस भूमि में नहीं करना चाहिए जहा पर जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है क्यूकि जलभराव स्थिति उत्पन्न होने पर लौग के पौधे के ख़राब होने की स्थिति बढ़ जाती है लौंग के पौधों को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है |

अधिक तेज धूप और सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है। लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) ठंडे और अधिक बारिश वाले स्थानों पर नहीं करना चाहिए लौंग के पौधों कों अच्छे तरीके से विकसित होने के लिए छायादार जगह और लगभग 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) भूमि का पीएच मान  6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए।

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लौंग की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करे (How to prepare the field for Long Ki Kheti )

लौंग की खेत ( Laung Farming in India ) के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए खेतो को अच्छे से तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर लेनी  चाहिए जिससे खेतो में पहले से उपस्थित फसल के अवशेष और कीट नष्ट हो जाए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करने से फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है जुताई के बाद कुछ दिनों के लिए खेतो को खुला छोड़ देना चाहिए जिससे खेत में अच्छे तरीके से धूप लग जाये और उत्पादन अच्छा मिले खेत की जुताई के लिए किसान भाई रोटावेटर का उपयोग कर सकते हैं।

रोटावेटर की सहायता से खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करने से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए समतल करने से खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है  खेत की तैयारी के बाद लौंग के पौधे लगाने के लिए 15 से 20 फीट की दूरी पर एक मीटर व्यास के चौड़े और डेढ़ से दो फीट गहरे गड्डे तैयार करने चाहिए। इन गड्ढों को तैयार करते समय खाद और उर्वरक की आवश्यक मात्रा मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में डाल देनी चाहिए और इसके बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि गड्ढों में मिट्टी का जमाव सही तरीके से हो सके।

लौंग की खेती के लिए पौधों की तैयारी और रोपाई का तरीका ( Method of preparation and transplantation of plants for clove cultivation )

लौंग के बीज को तैयार करने के लिए लौंग के पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इकट्ठा कर लिया जाता है और जब बीजों की बुआई करनी होती है , तब सबसे पहले इसे रातभर पानी में भिगोकर रख लेना चाहिए और फिर बाद में बीज की फली को बुआई से पहले ही हटा लेना चाहिए लौंग की खेती करने के लिए यह अवश्य ध्यान दे की बीजों की बुआई करने से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए इसके तैयार पौधों को बारिश के मौसम में लगाना काफी उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान सिंचाई की कम जरूरत होती है, तथा मौसम में आद्रता बनी रहती है,

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जो पौधों के अंकुरण के लिए अधिक फायदेमंद होता है। लौंग के पौधों को खेत में तैयार किये गड्ढो में लगाया जाता है, इससे पहले इन गड्ढो में एक छोटा सा गड्ढा बना लिया जाता है। फिर इन छोटे गड्ढो में पौधों को लगाकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है। लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) मिश्रित खेती की तरह की जाती है। इसलिए इसके पौधों को अखरोट या नारियल के बगीचों में भी लगाया जा सकता है। जिससे पौधों को छायादार वातावरण मिल जाता है, और पौधा अच्छे से विकास करता है।

लौंग की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for clove cultivation )

लौंग की खेती ( Clove Cultivation in India )अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पहली सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए। यदि आप लौंग के पौधों को बारिश के मौसम में लगाते है , तो आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिन पौधों की रोपाई गर्मियों के मौसम में की गई है, उन्हें 10 से 12 दिन में एक बार पानी जरूर दें। वहीं सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 18 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।

लौंग के पौधों में पोषक तत्व और (उर्वरकों) का प्रबंधन ( Nutrients and fertilizers management in clove plants )

Laung Ki Kheti

लौंग के पौधे को शुरु में कम से कम उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए गड्ढो को तैयार करते समय प्रत्येक गड्ढो  में 18 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद और लगभग 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को गड्ढो में पौधों की रोपाई से एक महीने भर दिया जाता है। इसके पौधे की वृद्धि के साथ – साथ उर्वरक की मात्रा को भी बढ़ाते रहना चाहिए और पौधों को खाद देने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए।

लौंग की खेती में फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ ( Fruit harvesting, yield and benefits in clove cultivation )

लौंग के पौधे रोपाई के लगभग 4 से 5 साल के बाद पैदावार देना प्रारम्भ कर देते है। लौंग के फल पौधों में गुच्छे के रूप में लगते है, जो दिखने में गुलाबी रंग के होते है और इसके फूलो को खिलने से पहले तोड़ लेना चाहिए इसमें लगी ताजी कलियाँ लालिमा लिए हुए हरी  रंग की होती है। इसके फलो की लम्बाई 2 सेंटीमीटर होती है जो सूखने के पश्चात लौंग का रूप ले लेता है |

शुरुआत में लौंग की पैदावार काफी कम होती है, परन्तु जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है तो इसके एक पौधे से लगभग 3 से 4 किलोग्राम लौंग प्राप्त होने लगता है लौंग का बाजार भाव 900 से 1000 रूपए के मध्य होता है,एक एकड़ के खेत में 120 पौधे तैयार किये जा सकते है इस हिसाब से किसान लौंग की खेती ( Laung Ki Kheti ) से एक बार की फसल से 3 से 4 लाख रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है।

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न 

लौंग का पेड़ कितने दिनों में फल देने लगता है ?

लौंग का पौधा पौधारोपण के पश्चात 5 साल के बाद फल देना प्रारंभ कर देता है यदि आप लौंग के बीजों की बुवाई करते हैं तो बुवाई से पहले लौंग के छिलका को हटा दे

लौंग की खेती कौन-कौन से महीने में की जाती है ?

लौंग के पौधों की रोपाई जून और जुलाई अर्थात मानसून के महीने में करना चाहिए |

भारत में लौंग की खेती कहां-कहां होती है ?

भारत में लौंग की खेती तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के पश्चिमी घाट में समुद्र तल से 600 से 1000 मीटर की ऊंचाई पर मरमलाई,करुमपराई,और वेल्लम पराई क्षेत्र में की जाती अत्यधिक मात्रा में की जाती है |

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