सूरन की खेती काफी लाभप्रद है सूरन न केवल सब्जी अचार के लिए है बल्कि इसमें अनेको प्रकार की औषधीय तत्व भी मौजूद है इसलिए अब इसकी बिक्री की समस्या रह ही नहीं गयी है यदि आप मटर 1 बीघे में सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) की जाय तो एक सीजन में एक लाख रूपए तक कमाया जा सकता है सुरन की खेती में बहुत ही ज्यादा समस्या नहीं लगता है यानी की इसकी खेत कम लागत और काम समय में की जा सकती है और यदि इसकी अच्छी फसल हो गयी तो आप इससे अधिक मुनाफा कमा सकते है सूरन की खेती के साथ साथ किसान 3 अलग अलग और सब्जिया ऊगा सकता है सूरन की खेती फरवरी से मार्च के माह में बोया जाता है और सितम्बर से अक्टूबर के माह में इसकी खुदाई कर ली जाती है
किसान दोस्तों यदि आप भी सूरन की खेती करना चाहते है तो सूरन की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होना चाहिए जैसे की सूरन की खेती के लिए आवश्य्क जलवायु क्या होनी चाहिए सूरन की खेती किस मिटटी में की जाती है , सूरन की बुआई कब होती है , सिंचाई कब होती है , तथा सूरन की खेती के लिए कितनी मात्रा में खाद व उर्वरक की जरूरत पड़ती है , सूरन की खेती के लिए सूरन की अच्छी प्रजाति वाली किस्म का बीज कोन सा है आदि बातो को ध्यान में रखना चाहिए यदि आप सूरन की खेती करना चाहते है तो आप परेशान न हो आप सही जगह पे आये हुए है आपको इस लेख में सूरन की खेती कैसे होती सभी जानकारी सरल व आसान शब्दों में मिल जाएगी अतः आप इस लेख को पूरा पढ़िए तो चलिए आईये जानते है की सूरन की खेती कैसे की जाती है ।
सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) कैसे की जाती है
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सूरन की खेती के उपयुक्त जलवायु –
सूरन की खेती के लिए सूरन यह मूलतः उष्ण कटिबंधीय फसल है सूरन की खेती बस्तर के पठार से लेकर सरगुजा के पहाड़ियों क्षेत्र के साथ साथ छत्तीसगढ़ के मैदानी भागो में तीनो कृषि जलवायु क्षेत्रो में आसानी से की जा सकती है
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सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) लिए मृदा एवं खेत की तयारी –
सूरन की खेती के लिए खेत की बात करे तो सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) के लिए बलुई डोंट मिटटी उत्तम मानी जाती है तथा सूरन की खेती के लिए खेत में जलनिकास होना अति महत्त्वपूर्ण है सूरन की खेती के लिए मिटटी नरम व भुरभुरी होना चाहिए सूरन की खेती के लिए जल निकास वाली मिटटी होनी चाहिए यानी की जिस मिटटी में पानी नहीं ठहरता हो और सूरन की खेती के लिए मिटटी में पर्याप्त मात्रा में जीवाश्म की मात्रा होनी चाहिए वैसे तो सूरन की खेती सभी प्रकार की मिटटी में हो जाती है लेकिन सभी मिटटी में सूरन की खेती की जायेगी तो उपज कम होगा यानी की सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) के लिए यदि आप सूरन की फसल से अधिक उपज चाहते है तो सूरन की खेती उसी मिटटी में कीजिये जो सर्वोत्तम मानी जाती हो ।
सूरन की खेत की तैयारी की बात करे तो खेत को एक बार गहरी जुताई करवा लेना चाहिए फिर आप जुताई करवाने के बाद उसे आप 3 से 4 बार हैरो चला दे जुटाई करवाते समय आप पाटा जरूर लगवा ले जिससे खेत में उपस्थित खरपतवार नस्ट हो जाए और खेत के ढेले टूट जाये और खेत की मिटटी एकदम भुरभुरी हो जाये और खेत समतल हो जाये ।
सूरन की उन्नति प्रजाति –
सूरन की कई उन्नत किस्मे होती है जिनको गुणवत्ता , पैदावार और मौसम के आधार पर तैयार किया जाता है आपको कौन सी किस्म का चयन करना है ये अपने क्षेत्र और जलवायु के आधार पर करे ।
सूरन के बीज बोन का समय –
सूरन की बीज की बुआई की बात करे तो आप सूरन की बुआई उपयुक्त समय अप्रैल मई है वैसे इसकी बुआई सुविधानुसार मार्च से जून जुलाई तक बुआई की जाती है ।
सूरन की बीज दर –
सूरन की बीज दर की बात करे तो एक एकड़ में बुआई के लिए कंदो के आकर के अनुसार से 20 से 25 किवंटल कंद पर्याप्त मात्रा होता है यानी की सूरन की खेती के लिए एक एकड़ क्षेत्रफल में 20 से 25 किवंटल सूरन की बीज की जरूरत पड़ती है ।
सूरन की बुआई की विधि –
सूरन की बुआई के लिए 250 से 600 ग्राम के कंदो का उपयोग किया जाना उत्तम होता है यानी की सूरन की जो बीज के टुकड़े हो उसका वजन 250 – 600 ग्राम तक होना चाहिए जिससे अधिक उपज प्राप्त हो आप इससे छोटे और बड़े कंद का भी प्रयोग कर सकते है आकर के आधार पर अलग अलग दुरी पर इनकी बुआई की जाती है
- कंद का आकर – दुरी
- 300 से 400 ग्राम – 60 बायीं 60 सेमि
- 400 -500 ग्राम – 60 बायीं 90 सेमि
- 500 – 600 ग्राम – 90 बायीं 90 सेमि
यदि छोटे आकर व भार में छोटे कंद ( 20 – 70 ग्राम ) की भी बुआई किम जा सकती है लेकिन तब इसकी बुआई सघन की जाती है आप इसे रिजर से मादा बनाकर भी बुआई की जाती है इसकी बुआई के लिए समतल बेड बनाकर बुआई की जाती है ।
सूरन की सिंचाई
सूरन की खेती में सिंचाई की बात करे तो सूरन की फसल के लिए सिंचाई की अधिक जरूरत तो नहीं पड़ती है तभी तो इसकी बुआई के लिए अच्छी जल निकास वाली मिटटी होना चाहिए आप सूरन की फसल की बुआई के बाद खेतो में एक बार अच्छी तरह से सिंचाई कर देना चाहिए फिर उसके बाद खेत सूखने पर या जरूरत पड़ने पर आप सिंचाई कर दे ।
सूरन की खेती के लिए खाद एवं उर्वरको की मात्रा –
सूरन की खेती के लिए खाद के रूप में 6 से 7 ट्राली अच्छी तरह से सड़ी हुयी गोबर की खाद प्रति एकड़ डालना चाहिए रासायनिक खाद के रूप में आप 150 ग्राम नाइट्रोजन 60 ग्राम फास्फोरस व 150 ग्राम पोटाश डालना चाहिए जिसे सूरन की अच्छी विकास व अच्छी तरह से वृद्धि हो सके ।
फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा एवं यूरिया की एक तिहाई मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा शेष यूरिया की आधी मात्रा 30 दिनों व शेष पुनः 30 दिनों के बाद दी जा सकती है ।
सूरन की खेती में फसल सुरक्षा –
सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) में फसल की सुरक्षा की बात करे तो इसकी फसल को किट व्याधियों द्वारा कोई विशेष हानि नहीं होती है लेकिन फिर भी कुछ बीमारिया जैसे ब्लाइट व स्वमूल विलगन के लिए मेंकोजेब एवं एग्रीमैसीन नामक दवा 2-2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़कव कर देनी चाहिए ।
सूरन की फसल की खुदाई –
सूरन की फसल की खुदाई के लिए 5 से 6 माह के बाद सूरन खोदने योग्य हो जाता है आप सूरन की फसल की खुदाई के लिए घनकन्दो को फावड़ों से खोदकर भूमि से बाहर निकल लिया जाता है इसकी खेती में फसल की खुदाई हर साल करनी चाहिए मई जून में बोई गयी फसल को पत्ते सुख जाने पर नवंबर से दिसम्बर में भूमि से बाहर निकल देना चाहिए यानी की खुदाई कर देनी चाहिए ।
सूरन की उत्पादन –
सूरब की उत्पादनकि बात करे तो छोटे आकर ( 20 -70 ग्राम ) के कंदो में 17 से 20 गुना तक वृद्धि होती है और बड़े आकर के कंदो में 4-5 गुना तक की वृद्धि देखि गयी है लेकिन बड़े आकर के कंदो को बोना ही लाफदायक है क्योकि एक एकड़ में 100 से 150 किवंटल की उपज आसानी से असिंचित यानी की बिना पानी की सिंचाई के बिना प्राप्त की जा सकती है और यदि इसकी उत्तम खेती की जय तो 35 से 40 टन की उपज प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है ।
सूरन का भंडारण –
सूरन की भंडारण की बात करे तो सूरन की घनकंदों की लम्बी अवधि तक यानी की एक लम्बे समय तक स्टोर करक्के यानी की संग्रह करके रखा जा सकता है इसके लिए शुष्क कमरों में जहा वायु का संचार अच्छी तरह से होता हो वह रख देना चाहिए ।
सूरन उत्पादन के महत्वपूर्ण बाते –
- सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) के लिए बलुई दोमट मिटटी उत्तम होती है
- घनकंडो की बुआई से पहले रिडोमिल दवा के घोल में 10 मिंट तक डुबोना चाहिए फिर उसके बाद बुआई करनी चाहिए
- सूरन के बीज के बड़े कंदो को भी काटकर बोया जा सकता है
- 60 से 60 सेमि की बुआई के लिए सूरन की 11 हजार कंदो की जरूरत एक एकड़ में होता है
- सूरन की बुआई के बाद 45 से 60 दिन के बाद अंकुरण का समय होता है
- सूरन को पूर्णतः रेतीली मिटटी में भी लगाया जा सकता है और अधिक लाभ भी कमाया जा सकता है
सूरन के औषधि गुण का उपयोग
- सूरन के औषधि गुण के लिए यूनानी व सिद्ध चिकित्सा पद्धति में वृहद स्तर पर उपयोग किया जा ता है
- सूरन के कंद से ब्रोंकाइटिस , अस्थमा , हाथी पाव , वात जनित सूजन में लाभदायक होता है
- सूरन के कंद में एक्टिव डायास्टोलिक एंजाइम एवं ग्लूकोज , गेलेक्टोस रेमनोस एवं जायलोस पाया जाता है ।
सूरन की फसल से लाभ –
यदि आप उअप्र के सभी बातो को ध्यान में रखकर सूरन की खेती कर रहे है तो आपको लगभग 125000 रूपए से 150000 रूपए तक शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है और किसान अपनी आर्थिक स्थिति को सुधर सकता है ।
सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न
सूरन की खेती कब की जाती है ?
सूरन की खेती मार्च से लेकर मई जून तक के माह में अथवा फरवरी से मार्च के माह में की जा सकती है ।
सूरन को और किस किस नाम से जाना जाता है ?
सूरन को ओल , जिमीकंद के नाम से भी जाना जाता है ।
सूरन के बीज को बोन का विधि बताईये ?
सूरन की बीज को बोने के लिए उसके आकर यानी की उसकी वजन के दवरा बोया जाता है जो की निचे कुछ इस प्रकार का है –
कंद का आकर – दुरी
300 से 400 ग्राम – 60 बायीं 60 सेमि
400 -500 ग्राम – 60 बायीं 90 सेमि
500 – 600 ग्राम – 90 बायीं 90 सेमि
सूरन की फसल की खुदाई कब की जा सकती है ?
सूरन की फसल की खुदाई के लिए 5 से 6 माह के बाद सूरन खोदने योग्य हो जाता है यानी की मई जून में बोई गयी फसल को पत्ते सुख जाने पर नवंबर से दिसम्बर में भूमि से बाहर निकाल लेना चाहिए ।
सूरन की फसल से कितना उत्पादन हो सकता है और इससे कितना लाभ हो सकता है ?
सूरन की फसल से आप यदि बड़े आकर के कंदो को बोते है तो एक एकड़ में 100 से 150 किवंटल की उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है आपको लगभग 125000 रूपए से 150000 रूपए तक शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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