सरसो की खेती कब और कैसे करे | Sarso Ki Kheti Kab Aur Kaise Kare

नमस्कार किसान दोस्तों आज मैं आपको सरसो की खेती (sarso ki kheti) कैसे और कब करे तहत सरसो की खेती करने का तरीका और सरसो की वैज्ञानिक खेती करके सरसो की अधिक उपज कैसे बढ़ाये तमाम ऐसी जानकारी आपको इस पोस्ट में मिल जाएगी यदि आप सरसो की खेती करना चाहते है तो आप इस पोस्ट के साथ अंत तक बने रहिये और ध्यान पूर्वक पढ़े व पूरा पढ़ेंगे तो तभी आपको सरसो की खेती कैसे करेंगे समझ पाएंगे और आप नए तरीके से सरसो की खेती (sarso ki kheti) कर पाएंगे और अधिक  उपज करके अधिक मुनाफा कमा सकेंगे ।

सरसो की खेती सिंचित व असिंचित दोनों क्षेत्रो में की जा सकती है सरसो की खेती भारत में सभी क्षेत्रो में की जाती है और बड़े पैमाने पे की जाती है यह हरियाणा , राजस्थान , मध्यप्रदेश , उत्तर प्रदेश , गुजरात और महाराष्ट्र की ये प्रमुख फसल है सरसो की खेती एक एक प्रमुख तिलहन फसल है इसकी खास बात यह है की यह दोनों सिंचित व असिंचित क्षेत्रो में की जा सकती है इसकी खेती भारत में लगभग 66.34 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है यह लगभग 75 से 80 लाख उत्पादन मिलता है यदि आप सरसो की खेती बैज्ञानिक तरीके से खेती  कर रहे है तो आपको इसकी फसल से अधिक उपज प्राप्त कर सकते है इस पोस्ट में आपको सरसो की खेती (sarso ki kheti) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी ।

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सरसो की खेती कैसे करे | Sarso  Ki Kheti Kaise Kare 

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सरसो की खेती करने के लिए आपको निम्न बातो का ध्यान देना पड़ेगा जैसे की – सरसो की खेती के लिए आवश्य्क जलवायु और कौन सी भूमि में अधिक पैदावार होगी , सरसो की अच्छी प्रकार की किस्म का बीज कौन सा है व सरसो को किस मौसम में बोना चाहिए तथा सरसो बोन के के लिए आवश्य्क बीज मात्रा , सरसो बोन की विधि और सरसो की खेती में कौन सी खाद व उर्वरक डाले आदि ऐसी तमाम प्रकार की जानकारी यदि आप के पास  है तो आप सरसो की खेती कर पाएंगे यदि आपके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है तो आप परेशां ना हो आपको इस लेख में पूरी जानकारी मिल जाएगी।

सरसो की खेती

सरसो की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं भूमि –

जैसा की हमारे देश के सभी किसान जानते है की सरसो की खेती  कब की जाती है सरसो की खेती शीत ऋतू में की जाती है सरसो की खेती के लिए आवश्य्क तापमान 18 से 25 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए यदि सरसो की फसल में पुष्प लगना प्रारम्भ हो गया है तो आपको इस बात का ध्यान रहे की वायुमंडल में अधिक आद्रता व अधिक बारिस होने से सरसो की फसल के लिए काफी हानि दायक साबित हो सकता है क्योकि अगर इस प्रकार का मौसम होता है तो सरसो की फसल पे माहु या चौपा के आने की सम्भावना बढ़ जाती है ।

सरसो की खेती के लिए रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में भी की जा सकती है सरसो की फसल के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है क्योकि सरसो की फसल के लिए हल्की क्षारीयता वाली मृदा उपयुक्त मानी जाती है और यह हल्की  क्षारीयता को सहन कर लेती है आपको इस बात का ध्यान रहे की अम्लीय नहीं होनी चाहिए।

सरसो की खेती के लिए खेत की तैयारी-

सरसो की खेती (sarso ki kheti) के किसानो को खेत को मिटटी पलटने वाली हल से जुताई करनी चाहिए फिर उसके बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर से गहरी जुताई करवानी चाहिए खेत की जुताई करने के बाद उसमे आप पता जरूर लगवा ले जिससे खेत समतल हो जाये और खेत की मिटटी भुरभुरी हो जाए जिससे सरसो की बीज को अंकुरण होने में आसानी हो और अधिक वृद्धि व विकास हो और पैदावार भी अधिक होगी ।

सरसो की बीज की उन्नत किस्मे –

किसानो को सरसो की खेती के लिए ये चरण अति महत्त्व्पूर्ण है क्योकि सरसो की बीज पर ही पूरा खेल है  क्योकि आप सरसो की बीज को सही तरह से आयोग में लाएंगे तभी तो अधिक उपज होगी सरसो की खेती के लिए किसानो को किस्म का चयन अपने क्षेत्र की पारिस्थितिक के अनुसार करनी चाहिए सरसो की प्रमुख एवं प्रचलित वाली किस्म निचे दी गयी सरणी में है –

सिंचित क्षेत्र के लिए असिंचित क्षेत्र के लिए
लक्ष्मी , नरेंद्र अगेती राई -4 , वरुणा टी -59 वैभव
बसंती पिली , रोहणी , माया , उर्वशी वरुणा टी -59
नरेंद्र सवर्ण राई -8 , सौरभ , वसुंधरा ( आर एच् -9304) पूसा बोल्ड , आरएच-30

बिलम्ब से बुआई के लिए –  आशीर्वाद और वरदान प्रमुख सरसो के बीज की किस्म है ।

क्षारीय / लवणीय भूमि के लिए – नरेंद्र राई , सी एस -52 और सी एस – 54 प्रमुख है ।

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सरसों की बीज की मात्रा कितनी होनी चाहिए –

किसान दोस्तों सरसो की खेती (sarso ki kheti) के लिए सिंचित क्षेत्रो में सरसो की फसल की बुआई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए तथा असिंचित क्षेत्रो के लिए सरसो की बीज की मात्रा जो सिंचित क्षेत्रो की मात्रा है उसी मात्रा में 10 से 15 % बढ़ा देना चाहिए फिर प्रयोग करे और पिली सरसो के लिए 4 किलोग्राम बीज का प्रयोग प्रति हेक्टेयर करना उपयुक्त होता है ।

सरसो की बुआई का समय –

सरसो की खेती के लिए यदि आप सरसो की फसल से अधिक उपज चाहते है तो आप इसे 25 सितंबर से 15 अक्टूबर के बिच में कर देनी चाहिए और सिंचित क्षेत्रो के लिए 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बिच में कर देनी चाहिए और पिली सरसो के लिए 15 सितंबर से 30 सितंबर उपयुक्त मानी जाती है ।

सरसो बीजोपचार –

  • किसानो को सरसो के बीज को जड़ सड़न रोग से बचने के लिए बीज की बुआई से पहले फफूंदनाशक वीटवैक्स , कैपटान, साफ , सिक्सर , थीरम आदि कोई एक में से 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज से उपचारित करे 
  • कीटो से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू पी , 10 मिली लीटर से प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करे 
  • कीटनाशक उपचार के बाद एजेटोबक्टर तथा फास्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनों को 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलो बीज को उपचारित करे ।

सरसो की खेती के लिए खाद और उर्वरको की मात्रा –

किसानो को उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करनी चाहिए सिंचित क्षेत्रो के लिए – नाइट्रोजन 120 किलोग्राम , फास्फेट 60 किलोग्राम एवं पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए इन सब का सभी मात्रा में प्रयोग करने से उपज अधिक होता है फास्फोरस का उपयोग सिंगल फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है क्योकि इसमें सल्फर की उपलब्धता अधिक होती है यदि आप खेत की आखिरी जुताई के समय पूर्ण रूप से सड़ी हुयी गोबर की खाद 15 से 20 टन मिला दे तो सरसो की फसल के लिए अधिक उपयोगी होती है और पैदावार भी अधिक होती है ।

असिंचित क्षेत्रो के लिए उर्वरको की आधी मात्रा में बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए यदि आप डीएपी का प्रयोग कर रहे है तो बुआई के समय 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना लाभदायक माना जाता है और आधी उपज प्राप्त करने के लिए 80 किवंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुयी गोबर की खाद बुआई से पहले प्रयोग करना चाहिए ।

सिंचित क्षेत्रो के लिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा में फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कूडो में बीज के 2 से 3 मीटर निचे चोंगो से दे देनी चाहिए नाइट्रोजन की शेष बची हुयी मात्रा को पहली सिंचाई के 20 से 25 दिन बाद डाल देनी चाहिए ।

सिंचाई –

तीन सिंचाई उपलब्ध होने पर –

  • पहली सिंचाई बीज बोन के बाद 30 से 40 दिनों के अंदर करनी चाहिए  ( पौध की बढ़वार के समय )
  • दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 35 से 40 दिनों के बाद ही करनी चाहिए ( पुष्पन के समय ) 
  • तीसरी सिंचाई दूसरी सिंचाई के 30 से 35 दिनों के बाद करनी चाहिए ( दाने पड़ने के समय पर )  

दो सिंचाई पानी की कमी होने पर – 

  • पहली सिंचाई बीज बुआई के 40 से 45 दिनों के बाद करनी चाहिए 
  • दूसरी सिंचाई बीज की बुआई के 90 से 100 दिनों के बाद करनी चाहिए 

भारी मिटटी वाली मृदाओ में 2 से अधिक बार सिंचाई नहीं करनी चाहिए नहीं तो फसल की जेड व तना सड़ गाल जाती है और रोगो के प्रकोप से गिर कर नस्ट हो जाती है ।

सरसो की फसल में खरपतवारो  का नियंत्रण –

फसल की बुआई के तुरंत बाद पेंडा मैथलीन 38.7 % सीएस की 485 मिली या पेंडा मैथलीन 30 % 600 मिली मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति बीघा की दर से पुरे खेत में छिड़काव कर देनी चाहिए जिससे उसमे का खरपतवार नस्ट हो जाए ।

सरसो की फसल में लगने वाले प्रमुख किट –

माहु : 

यह सरसो की फसल में लगने वाला प्रमुख किट है अधिकांश सभी किसानो की परेशानी है की उनकी सरसो की फसल माहु नामक किट से करब हो गयी थी जिसके वजह से कम पैदावार हुआ है या हुआ ही नहीं है यह की शीशी तथा प्रौढ़ लिए हुए हरे रंग का होता है यह सरसो की पौधे की कोमल तना और पत्तियों को और फूलो एवं नए फलियों को चूसकर कमजोर कर देती है माहु मधुस्रव करते है जिसके वजह से पौधों पर काली रंग के फफूंद लग जाते है जिससे सरसो के पौधों को प्रकाश संश्लेषण लेने असुविधा होती है ।

चित्रित बग :

इस किट की पहचान यह शिशु और प्रौढ़ दोनों चमकीले काळा , नारंगी व लाल रंग के चपटे तरह से होते है यह सरसो की पत्तियों को और फूलो एवं फलियों को चूसकर उसे प्रभावित करती है जिससे प्रभावित पत्तिया किनारो से सुखकर गिर जाती है और प्रभावित पौधे में दाने कम पड़ते है और पैदावार कम होती है ।

आरा मख्खी :

इस किट की सुन्डिया काले स्लेटी रंग की होती है यह सरसो की पत्तियों को किनारो से अथवा पत्तियों में छेदकर तेजी से खाती है इसकी  तीव्रता  प्रकोप से पुरे पौधे नस्ट हो जाते है इस किट से काफी ज्यादा हानि होती है ।

पत्ती सुरंग किट :

इस प्रकार के किट यह झुण्ड में आकर पौधे के हरे भाग को खाती है जिससे पत्तियों में सफ़ेद रंग के लकीर बन जाते है और उसकी वजह से पौधा नस्ट हो जाता हैं ।

नियंत्रण –

  • सरसो की खेती (sarso ki kheti) हेतु खेत की जुताई गर्मियों में गहरी जुताई 1 से 2 बार करवा देना चाहिए 
  • सरसो की फसल में संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग करना चाहिए 
  • आरा मक्खी की सुंडियो को प्रातः काल इक्क्ठा करके उन्हें नस्ट कर देना चाहिए 
  • प्रारम्भिक अवस्था में पायी जाने वाली कीटो को नस्ट कर देना चाहिए 
  • आरा मक्खी का आर्थिक रूप से अधिक  प्रकोप हो तो उसके नियंत्रण मैलाथियान 5 % डब्लू पी की 20 से 25 किलो ग्राम  की मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देनी चाहिए ।
  • माहु चित्रित बग के अधिक प्रकोप के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 % मोनोक्रोटोफास 36 % 500 मिली प्रति हेकेटेयर की हिसाब से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देनी चाहिए ।

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सरसो की फसल की कटाई –

सरसो की फसल की कटाई के लिए आप जब फसल अधिक पकने पर फलियों को चटकने की यानी की बिखरने की आशंका बढ़ जाती है या फिर आप जब पौधे को पिले पड़ने एवं फलिया भूरी होने फसल की कटाई कर लेनी चाहिए फिर उसके बाद फसल को सुखाकर थ्रेसर या डंडो की सहायता से पीटकर दाने को अलग कर ले ।

सरसो की फसल की पैदावार –

किसान भाईयो सरसो की उपरोक्त उन्नत तकनिकी द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रो में लगभग 17 से 25 किवंटल तथा सिंचित क्षेत्रो में 20 से 30 किवंटल प्रति हेक्टेयर दाने की उपज प्राप्त होती है ।

सरसो कितने प्रकार की होती है –

सरसो मुख्यतः दो प्रकार की पायी जाती है – लाल और पिली या सफ़ेद इसे लोग मसाले के काम में भी लाते है सरसो के दाने से तेल निकला जाता है जिसे सामन्यतः लोग कडुआ बोलते है यह रोज काम में आने वाला पदार्थ है और आप इसके पाते से साग भी बनाते है लाल सरसो आकर में पिली सरसो से बड़ा होता है यह यह लाल और हलके काले रंग का होता है तथा पिली सरसो के दाने लाल सरसो के दाने की अपेक्षा में थोड़ा सा छोटा होता है लेकिन उपयोग में दोनों प्रकार के सरसो आते है ।

सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न

किसान भाई वैसे तो सरसो की खेती सभी प्रकार की मिट्टियो में करते है लेकिन अधिक पैदावार के लिए आप इसे बलुई दोमट मिटटी में करेंगे तो अधिक पैदावार होगी सरसो की खेती मुख्यतः शीत ऋतू में की जाती है यह सितंबर से अक्टूबर के माह में बोई जाती है ।

बसंती पिली , रोहणी , माया , उर्वशी ,  लक्ष्मी , नरेंद्र अगेती राई -4 , वरुणा टी -59 आदि ये सिंचित क्षेत्र के लिए प्रमुख सरसो के किस्म है तथा असिंचित क्षेत्र के लिए   पूसा बोल्ड , आरएच-30 , वरुणा टी -59 , वैभव आदि ।

सरसो की फसल में लगने वाले प्रमुख किट - माहु , आरा मक्खी , पत्ती सुरंग किट आदि इसके रोकथाम के लिए आरा मक्खी का आर्थिक रूप से अधिक  प्रकोप हो तो उसके नियंत्रण मैलाथियान 5 % डब्लू पी की 20 से 25 किलो ग्राम  की मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देनी चाहिए ।माहु चित्रित बग के अधिक प्रकोप के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 % मोनोक्रोटोफास 36 % 500 मिली प्रति हेकेटेयर की हिसाब से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें।

सरसो की फसल तब काटना चाहिए जब सरसो का पौधा पीला और फली चटकने की सम्भावना हो तो तब सरसो की फसल कटनी चाहिए ।

सरसो की फसल की सिंचाई 2 से 3 बार करनी चाहिए यदि आप के पास पानी की सुविधा है तो आप सरसो की फसल को तीन बार सींचे ओ भी 30 से 35 दिनों के अंतराल पर यदि पानी की सुविधा नहीं है तो आप 2 बार भी सिंचाई कर सकते है 40 से 45 दिनों के अंतराल पर इससे फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

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