Bajara ki kheti | बाजरे की लाभकारी खेती एवं उसका महत्तव

बाजारा की खेती ( Bajara ki kheti )

बाजारा एक ऐसी फसल होती है जो किसानों को विपरीत परिस्थितियों एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्र तथा बहुत काम उर्वरक की मात्रा में अच्छा उत्पादन देते हैं यह स्वादिष्ट और पौष्टिक ज्यादा प्रदान करता है या दक्षिणी पूर्वी एशिया चीन भारत पाकिस्तान अब सूडान रूस और नाइजीरिया की महत्वपूर्ण फसलों में से एक भारत में इसकी खेती हरियाणा गुजरात महाराष्ट्र राजस्थान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है बाजार की खेती मध्य प्रदेश में लगभग 2 लाख हेक्टेयर ढूंढने के जाते हैं जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग भिंड मुरैना शिवपुरी तथा ग्वालियर जिले में उगाई जाती है

भिंड जिले में बाजारा की खेती लगभग 45000 हेक्टेयर भूमि की जाती है बाजारा के दोनों में ज्वार से अच्छी गुणवत्ता एवं पोषक तत्व पाए जाते हैं बाजारा कम आद्रता कम उर्वरक और उच्च तापमान वाली क्षेत्र की मिट्टी के लिए एक आदर्श आवरण का फसल माना जाता है जो गर्म शुष्क स्थितियों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है बाजारा की फसल गरीबों का मुख्य स्रोत है जो ऊर्जा प्रोटीन विटामिन एवं मिनरल के साथ-साथ जोर से अच्छे गुणवत्ता वाले पोषक तत्व पाए जाते हैं उनके दोनों में 12.4% नामी 11.6% प्रोटीन 5% वर्षा 76% कार्बोहाइड्रेट तथा 2.7% मिनरल्स पाए जाते हैं

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बाजारा की खेती ( Bajara ki kheti ) के लिए उन्नत किस्म :-

अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अच्छे बीज का होना अनिवार्य है बीज की किस्म और उसके गुणवत्ता दोनों ही अच्छे होने चाहिए बाजरे की खेती Bajare ki kheti करने के लिए विभिन्न प्रकार की शंकर किस्म विकसित की गई है जिस कारण से उनके द्वारा अनाज एवं चारे की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है

Bajara ki kheti

1.PHN 2884 :- यह एक प्रकार के हाइब्रिड किस्म होती है जिसकी लंबाई 230 सेंटीमीटर सर 28 सेंटीमीटर लंबा और व्यास 12 सेंटीमीटर होता है उनके दानो का रंग गहरी और स्लेटी रंग के होते हैं या किसी में लगभग सभी बीमारियों को सहन कर सकती है जो 28 दिनों में पकती है और उसकी औसत उत्पादन 13.02 कुंतल प्रति एकड़ होती है |

PHN 2168 :- यह किस्म भी एक प्रकार की हाइब्रिड किस्म में होती है जिसकी लंबाई 210 सेंटीमीटर होती है यह किस्मत 83 दिनों में पक जाती है इसके दानों का रंग गहरे स्लेटी रंग के होते हैं |

PSB 164:- इसके पौधों की ऊंचाई 207 सेंटीमीटर होती है इसका सिर्फ अनाज से भरा होता है इनमें लगने वाले दाने भरपूर होते हैं इस किस्म के पत्ते के नीचे धब्बे की बीमारी के लिए प्रतिरोधी है यह किस्म 80 दिनों में तैयार हो जाती है और इसका औसत उत्पादन 15 कुंतल प्रति एकड़ होते हैं |

इसके अलावा भी बाजरे की खेती करने के लिए विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्मे उपलब्ध है जो की इस प्रकार से है PHN 47, PHBF 1,FBC 16, इत्यादि

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बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और भूमि की तैयारी :-

बाजरे की खेती ( Bajare ki kheti ) रेतीली दोमट मिट्टी मे सफलतापूर्वक की जा सकती है और खेती करते समय क्रिया की ध्यान देना चाहिए कि जिस भूमि में आप खेती करने जा रहे हैं वहां पर जल भराव की समस्या ना उत्पन्न होती है क्योंकि अधिक समय तक खेतों में पानी भरा रहने से फसलों को नुकसान पहुंच सकता है बाजरे की खेती में खेत को तैयार करने के लिए वर्षा के बाद पहले जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस हैरो द्वारा तिरछी जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए |

बाजरे के पौधों की उचित बड़वार के लिए पोषक तत्व की आवश्यकता होती है तथा भूमि की तैयारी करते समय बाजरे की फसल के लिए पांच साड़ी का प्रयोग करना चाहिए और इसके बाद बाजरे की वर्षा पर आधारित फसल में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर में डाल देने से उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है |

बाजारा के फसलों की बुवाई का समय :-

बाजरे की फसल को तेजी से बढ़ाने के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है जो साथ से 80 सेंटीमीटर बाहर से वर्षा वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त होती है बाजरे की फसल दिखाओ सहन करने की शक्ति होती है सिंचित क्षेत्र में गर्मियों में बुवाई के लिए मार्च से मध्य अप्रैल का समय उपयुक्त माना जाता है जुलाई का पहला सप्ताह करीब की फसल के लिए प्रयुक्त होता है दक्षिण भारत में रबी मौसम के अनुसार अक्टूबर से नवंबर तक बुवाई की जाती है |

फसल चक्र :-

बाजरे की फसल से अत्यधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित फसल चक्र की आवश्यकता होती है जो आसंचित क्षेत्र के लिए बाजरे के बाद अगले वर्ष दुल्हन फसल जैसे ग्वार मूंग लेनी चाहिए सिंचित क्षेत्र के लिए बाजरा जीरा बाजरा सरसों बाजरा गेहूं फसल चक्र का उपयोग करना चाहिए

बाजरे की खेती में जल प्रबंधन :-

पौधों की उचित बढ़वार के लिए नमी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है वर्षा द्वारा प्राप्त जल के अधिक उपयोग के लिए खेत का पानी खेत में रहना आवश्यक है इसके लिए खेत के चारों तरफ मेड़बंदी करनी चाहिए जिससे पानी बाहर ना निकल पाए और भूमि जल कटाव से बच सके भूमि में नमी को बनाए रखने के लिए फसल की पत्तियों के बीच बिछावन का प्रयोग करना चाहिए बिछावन के लिए खरपतवार या फसल के और शिशु को प्रयोग में लाया जाता है |

इसके अतिरिक्त फसल की बुवाई मेड एवं कुड विधि द्वारा वर्षा जल गहरी खोलो में इकट्ठा हो जाता है तथा खेतों में नमी अधिक दिनों तक बनी रहती है और फसल की पैदावार अच्छी प्राप्त होती है |

बाजरे की फसल में लगने वाले हानिकारक कीट रोग और रोकथाम :-

कातरा :- बाजरे की फसल को कातरे की लट प्रारंभिक अवस्था में फसल को काटकर नुकसान पहुंचाते हैं कातरे के नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20-25 किलो/हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए |

सफेद लट :- बाजरे की फसल में सफेद लट के नियंत्रण के लिए 1 किलो बीज में 3 किलो कारबोफ्यूरान 3 प्रतिशत या क्यूनॉलफास 5 प्रतिशत कण 15 किलो डीएपी मिलाकर बोआई करें |

रूट बग – बाजरे में रूट बग के नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस डेढ़ प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।

जोगिया – इस रोग के नियंत्रण के लिए बुवाई के 21 बार मैंकोजेब 1 किलो/एकड़  का छिड़काव करे |

अरगट या चेपा – इस रोग की रोगथाम करने के लिए बीज को थिरम 75 प्रतिशत डब्लूएस 2.5 ग्राम और कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपीकी 2.0 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने के पश्चात ही बोना चाहिए। रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम+मैंकोजेब 40 ग्रा/15 लीटर पानी के साथ मिलकर छिड़काव करना चाहिए |

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कटाई एवं गहाई :-

बाजरे के सिटी जब हल्के भूरे रंग में बदलने लगे तथा पौधे सूखने लगे तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए इस समय दाने सख्त होने लगते हैं तथा नमी लगभग 20% रहती है कटाई के बाद सीटों को अलग कर लेना चाहिए तथा अच्छे प्रकार से सुखाकर थ्रेसर द्वारा दानों को अलग कर लिया जाता है खेसर की सुविधा न होने पर सीटों को डंडों से द्वारा पीटकर दानों को अलग-अलग करके अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए |

बाजरे की फसल से प्राप्त उपज और आर्थिक लाभ :-

उन्नत विधियों द्वारा खेती करने पर बाजरे की वर्षा आधारित फसल से औसतन उत्पादन 12 से 15 कुंतल दाने की एवं 30 से 40 कुंतल प्रति हेक्टेयर सूखे चारे की उपज प्राप्त होती है बाजरे का भाव 9 रुपए प्रति किलोग्राम होता है |

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