हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti )
Table of Contents
अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) एक मुलायम और रिश्तेदार मीठा फल के रूप में की जाती है भारत में अंगूर का उत्पादन अत्यधिक मात्रा में किया जाता है और इस समय महाराष्ट्र को अंगूर की खेती वाला क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि महाराष्ट्र की ज्यादातर भूमि अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) की जाती है भारत को विश्व का सर्वोच्च अंगूर ( angur ) उत्पादक देश कहा जाता है किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार अंगूर की खेती करने के लिए काफी अधिक प्रोत्साहित करती है |
अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करके किसान काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं यदि आप भी अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करके अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो इस ब्लाॅग को अंत तक अवश्य पढ़े क्योंकि इस ब्लॉग में अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियां प्रदान की जायेगी |
अंगूर की खेती कैसे करें ( Grapes farming in india )
भारत में अंगूर की खेती ( grapes cultivation in india ) से अच्छे मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही विधि का प्रयोग करना चाहिए यदि आप सही विधि प्रयोग करके अंगूर की खेती करते हैं तो पैदावार काफी अच्छा प्राप्त होता है और यदि आप सही विधि का प्रयोग नहीं करते हैं तो इसका प्रभाव पैदावार में देखने को मिलता है सही विधि से अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए नीचे दिए के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान से पढ़ें |
- अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए सबसे पहले खेतों को अच्छे तरीके से तैयार कर लेना चाहिए |
- अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए खेतों की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लें उसके पश्चात इसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दिया |
- यदि खेतों को खुला छोड़ देते हैं तो खेत की मिट्टी में अच्छे तरीके से धूप लग जाती है |
- रोटावेटर लगाकर दो से तीन बार तिरछी जताई कर दें जिससे खेत की मिट्टी पूरी तरह से भुरभुरी हो जाए |
- और फिर आपको पता लगाकर फिर से जुताई कर देनी है ऐसा करने से आपका खेत समतल हो जाएगा और जल भराव की समस्या नहीं उत्पन्न होगी |
- और कुछ दोनों के पश्चात 15 से 18 ट्रॉली सड़ी हुई गोबर की खाद को डाल देना चाहिए |
- इसके पश्चात पुनः जुताई कर दे जिससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छे तरीके से मिल जाए |
- इसके पश्चात आपको खेत में गड्ढे तैयार कर लेना है गढ़ों की दूरी आप अपने अनुसार रख सकते हैं |
- गड्ढो को तैयार करते समय उचित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करें |
- और जब गड्ढे अच्छे तरीके से तैयार हो जाए तो अंगूर की कलम को खेत में लगा दें कलम को लगाते समय या अवश्य ध्यान रखें की कलम एक वर्ष पुरानी होनी चाहिए |
- अंगूर ( grapes ) के कलम को खेत में लगाने के पश्चात हल्की की मात्रा में सिंचाई कर दें |
- इसके पश्चात समय-समय पर सिंचाई का ध्यान देते रहें |
भारत में अंगूर की खेती वाले राज्य ( Angur Ki Kheti growing states in India )
भारत में बागवानी फसलों में अंगूर की खेती का एक प्रमुख स्थान है भारत के विभिन्न राज्य जैसे पंजाब , राजस्थान , दिल्ली ,हरियाणा ,बिहार , उत्तर प्रदेश , और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अत्यधिक मात्रा में की जाती है लगभग 85 फ़ीसदी अंगूर का उत्पादन महाराष्ट्र राज्य में किया जाता है इसीलिए महाराष्ट्र को अंगूर उत्पादक राज्य कहा जाता है |
अंगूर की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन ( Selection of improved varieties for Angur Ki Kheti )
भारत में अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्म उपलब्ध है जो की निम्नलिखित है |
1.परलेट किस्म ( Parlet variety )
यह किस्म उत्तर भारत में शीघ्र पकने वाले किस्मों में से एक है इसकी बिल अधिक फलदाई और ओजस्वी होती है इसमें लगने वाले गुच्छे मध्यम बड़े तथा गठीले होते हैं और उनके फल सफेद लिए हरे रंग तथा गोलाकार होते हैं इस किस्म के फलों की पहचान छोटे-छोटे गुच्छे और अविकसित फलों से की जाती है |
2.पूसा सीडलेस किस्म ( Pusa Seedless Variety )
इस किस्म के अंगूर में विभिन्न प्रकार के गुण उपलब्ध होते हैं और यह किस जून के तीसरे सप्ताह में पकाना शुरू हो जाते हैं इस किस में लगने वाले गच मध्य लंबे बेलनाकार सुगंध युक्त होते हैं इनमें लगने वाले फलों का आकार अंडाकार होता है पकाने के पश्चात फल हरे पीले सुनहरे रंग का होता है इस किस्म के अंगूर का उपयोग खाने के अतिरिक्त किसमिस बनाने में अत्यधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है |
3.पूसा नवरंग किस्म ( Pusa Navrang variety )
यह शंकर किस्म हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है यह किस्मत अधिक उत्पादन देने के साथ-साथ बहुत जल्दी पकाना प्रारंभ कर देती है इनके फलों में लगने वाले गुच्चो का आकार मध्य होता है और उनके फल बीज रहित गोलाकार एवं काले रंग के होते हैं इस किस्म के अंगूर में लाल रंग के गुच्छे भी होते हैं इस किस्म के अंगूर का उपयोग अधिक मात्रा में रस एवं मदिरा बनाने में किया जाता है |
4.भोकरी किस्म ( Bhokri variety )
इस किस्म का उत्पादन तमिलनाडु में अधिक मात्रा में की जाती है इनके बीच में लगने वाले अंगूर मध्यम आकार लंबी बीजदार और मध्यम पतली त्वचा वाली होती है इस किस्म की क्वालिटी कमजोर होती है जिस कारण से इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए किया जाता है यह जंग और कोमल फफूंदी के प्रति अति संवेदनशील है इस किस्म का उत्पादन एक हेक्टेयर में 35 क्विंटल प्रतिवर्ष होता है |
5.अनब ए शाही किस्म ( Anab e Shahi variety )
यह किस मुख्य रूप से पंजाब हरियाणा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में उगाई जाती है किस-किस से प्रत्येक मात्रा में उत्पादन प्राप्त होता है परंतु यह किस्म देर से पकती है किस किस में लगने वाले फल या पूरी तरह से परिपक्व हो जाते हैं तो लंबी बी वाली अंबर रंग की हो जाती है यह कोमल फफूंदी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है इसकी औसत उपज 36 टंन होती है |
6.गुलाबी किस्म ( Pink variety )
तमिलनाडु में इस किस्म का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है उनकी बोरियां छोटे आकार वाली गहरी बैगनी गोलाकार और बीजदार हो होती है इस किस्म की क्वालिटी अच्छी होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए अत्यधिक मात्रा में किया जाता है जो क्रैकिंग के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं परंतु जंग और कोमल का फोन देख प्रति अति संवेदनशील होते हैं इस किस्म का औसत उत्पादन 15 से 18 टन प्रति हेक्टेयर होती है |
इसके अलावा भी विभिन्न प्रकार की प्रजातियां जैसे काली शाहबी , थॉम्पसन सीडलेस , शरद सीडलेस , बंगलौर ब्लू (अंगूर का गुच्छा) जैसी विभिन्न प्रकार के किस्म उपलब्ध है |
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अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ( Suitable climate for grape cultivation in India )
भारत में अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए 35 से 38 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है तथा अंगूर की खेती के लिए गर्म शुष्क जलवायु अनुकूल रहती है इसकी खेती करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है यदि तापमान बहुत अधिक है तो अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) के लिए हानिकारक होता है और इसके अलावा यदि अधिक तापमान के साथ अधिक आद्रता है तो रोग लगने का खतरा रहता है |
अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त समय ( Suitable time for grape cultivation )
अंगूर के पौधे को लगाने का सबसे उपयुक्त समय दिसंबर और जनवरी के बीच का महीना होता है अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करने के लिए सबसे पहले खेतों की अच्छे से तैयारी करनी होगी इसके पश्चात अच्छे किस्म का चुनाव करना होगा यदि आप अंगूर की खेती कलम विधि द्वारा करते हैं तो कलम लगाने के बाद उचित सिंचाई और उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए अंगूर की खेती जुलाई से अगस्त माह के मध्य भी कर सकते हैं |
अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी ( Suitable soil for grape cultivation )
यदि आप अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) सफलता पूर्वक करना चाहते हैं इसके लिए आपको अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी का उपयोग करना होगा परंतु अधिक चिकनी मिट्टी में इसकी खेती करना उपयुक्त नहीं होता है अंगूर की खेती करने के लिए गर्म शुष्क तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल रहती है यदि अंगूर के पकते समय वर्षा या बादल का मौसम हो जाता है तो यह अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) के लिए अधिक हानिकारक होता है क्योंकि इस समय दाने फटने लगते है और फलों के गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है |
अंगूर के पौधों की रोपाई ( Planting Grapes )
अंगूर के पौधों की रोपाई कलाम के रूप में किया जाता है अंगूर के कलम को खेत में लगाने के लिए सबसे पहले खेत में गड्ढो को तैयार करना होता है गड्ढो को तैयार करते उसमें उर्वरक की सही मात्रा का प्रयोग करना चाहिए इसके लिए बराबर मात्रा में मिट्टी और सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 30 GM क्लोरिपाईरीफास, 1 KM सुपर फास्फेट व 500 GM पोटेशीयम सल्फेट को मिलाकर गड्डो में भर देना चाहिए| गड्डो में लगाने वाली कलम 1 वर्ष पुरानी होनी चाहिए | बेल को खेत में लगाने के तुरंत बाद इसकी सिंचाई कर देनी चाहिए |
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अंगूर के पौधों की सिंचाई ( Irrigation of grape plants )
अंगूर के पौधों को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है परंतु जब पौधों में फल लगने लगे तो फलों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है यदि उस दौरान इसके पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है तो पैदावार काफी अधिक प्रभावित होती है इसके पश्चात तापमान और पर्यावरण के हिसाब से आवश्यकता पड़ने पर इसके पौधों की सिंचाई करना चाहिए |
अंगूर की खेती में खरपतवार नियंत्रण ( Weed control in viticulture )
अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) में पौधों को खरपतवार से बचने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है इसकी खेती मे पौधों को खरपतवार नियंत्रण की अत्यधिक आवश्यकता नहीं होती है परंतु जब खेत में खरपतवार दिखाई देने लगे तो उनके पौधों की निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए |
अंगूर के फलों की तुड़ाई पैदावार और लाभ ( Grape Fruit Harvesting Yields and Benefits )
अंगूर के पौधों से फल कलाम की रोपाई के लगभग 3 वर्ष बाद पैदावार देना प्रारंभ कर देते हैं अंगूर के फल के पक जाने के बाद उन्हें बाजार में बेचने के समय ही उनकी चौड़ाई करनी चाहिए इनके पके फलों की पहचान वृद्धि और अम्लता के अनुसार की जाती है अंगूर के फलों को तोड़ने का सबसे उपयुक्त समय सुबह या शाम का होता है यदि आप अंगूर के फलों का अच्छा दाम प्राप्त करना चाहते हैं तो उनके गुच्छो का वर्गीकरण करना चाहिए |
बाजार में अंगूर का भाव किस्म और गुणवत्ता के हिसाब से 80 से ₹100 प्रति किलो के हिसाब से होता है पूर्ण रूप से विकसित पौधा दो से तीन दशक तक लगातार पैदावार देता है अंगूर के पौधों से उत्पादन की मात्रा किस्म के आधार पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 25 से 35 टन तक की पैदावार देते हैं इस हिसाब से किसान अंगूर की खेती ( Angur Ki Kheti ) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं |
सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
अंगूर का पौधा पौध रोपाई के 2 वर्षों के अंदर ही फल देना शुरू कर देता है
अंगूर की खेती करते समय लाइन से लाइन के बीच की दूरी 9 फीट और पौधों से पौधों के बीच की दूरी 5 फीट रखने से एक एकड़ खेत में लगभग 1000 पौधे लगाए जा सकते हैं |
अंगूर के पौधों की रोपाई अंगूर की किस्म मौसम की स्थित और किस की प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है समान रूप से अंगूर के पौधों की रोपाई पूरे सर्दी के दौरान किसी भी महीने में कर सकते हैं |
नासिक जिले के महाराष्ट्र को भारत के अंगूर की राजधानी के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह देश में कुल अंगूर निर्यात के आधे से भी अधिक योगदान देता है |
उत्तर प्रदेश में अंगूर की खेती मुख्य रूप से पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिला जैसे सहारनपुर गाजियाबाद और बुलंदशहर मेरठ मुजफ्फरनगर जैसे जिलों में की जाती है क्योंकि इंजन में गर्म शुष्क हुआ सहित गर्मी तथा ठंड सर्दी के मौसम की आवश्यकता होती है इन जिलों में होने वाले अंगूर के किस्म का उत्पादन से प्राप्त फल बहुत ही मीठे रसदार और स्वादिष्ट होते हैं |