अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha ki Kheti) भारत में बहुत तेजी से की जा रही है क्योकि इस खेती में कम लागत और कम समय में अधिक मुनाफा हो रहा है भारत में अश्वगंधा या असगंध जिसका वानस्पतिक नाम वीथानिया सोम्निफ़ेरा है यह एक औसधि फसल है साथ साथ ऐसे नकदी फसल में भी शामिल किया गया है अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकत्सा पद्धति में उपयोग में लाये जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण पौधा है अश्वगंधा के बारे में सभी ग्रंधो में इसके महत्व का वर्णन किया गया है अश्वगंधा के पौधे के सभी भागो को उपयोग में लाया जाता है जैसे जड़ , तना , पत्ती, फल और बीज ये सब औषधि के रूप में प्रयोग किये जाते है यह पौधा ठन्डे जगहों को छोड़कर बाकी सब जगहों पर पाया जाता है ।
नमस्कार किसान दोस्तों मैं आज आपको अपनी इस लेख में अश्वगंधा की खेती ( Ashwagandha ki Kheti ) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपसे साझा करुगा जैसे की अश्वगंधा की खेती कैसे की जाती है अश्वगंधा की खेती के लिए यपयुक्त जलवायु , मिटटी कौन कौन सी है एवं अश्वगंधा की खेती से क्या क्या फायदे है , अश्वगंधा की खेती के लिए कितनी लागत चाहिए तथा इसकी खेती करने से आपको कितना मुनाफा होगा आदि सभी के बारे सरल और आसानी शब्दों में आपको बताउगा यदि आप अश्वगंधा की खेती करके अधिक मुनाफा कामना चाहते है और अपनी आय में वृद्धि करना चाहते है तो आप इस लेख को पूरा और ध्यानपूर्वक पढ़े ।
अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु – Ashwagandha ki Kheti in hindi
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अश्वगंधा की खेती पछेती खरीफ की फसल है यह उष्ण कटिबंधी और समशीतोष्ण जलवायु की फसल है अश्वगंधा की खेती के लिए शुष्क मौसम की जरूरत होती है बारिश के महीने में अंतिम दिनों में बोया जाता है अश्वगंधा की फसल के लिए शुष्क मौसम अच्छा रहता है जिस स्थानों पर वर्षा 660-750 की मिमी की होती है वे स्थान फसल के विकास एवं वृद्धि के लिए उपयुक्त है ।
अश्वगंधा की उत्पादन के लिए उपयुक्त भूमि –
अश्वगंधा की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिटटी अथवा हल्की लाल मृदा की आवस्य्क्ता होती है यानी की मृदा का पीएच मान 7.5 – 8.0 तक की होना चाहिए कम उपजाऊ भूमि में अश्वगंधा की खेती से संतोषजनक उपज ली जा सकती है यानी की आप कम उपजाऊ वाली मिटटी में भी अश्वगंधा की खेती कर रहे है तो तभी आपको उपज अच्छी ही प्राप्त होगी अश्वगंधा की खेती के लिए जल निकास वाली जगह बहुत जरुरी है यानी की आपको उस भूमि का चयन करना है जहा पर अच्छी तरह से जल निकास हो यह अश्वगंधा की खेती ( Ashwagandha ki Kheti ) के लिए महत्त्वपूर्ण बात है ।
अश्वगंधा की खेती के लिए खेत की तैयारी-
इसकी खेत की तैयारी की बात करे तो 2 से 3 महीने पहले ही डिस्क या हैरो अथवा देशी हल से 2 या 3 बार अच्छी व गहरी जुताई करवाए जुताई के समय पाटा अवश्य लगाव ले जिससे खेत समतल हो जाये और खेत की ढेले फुट जाए और भुरभुरी हो जाये आपको यह बात याद रहनी चाहिए की खेत में खरपतवार नहीं होना चाहिए।
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अश्वगंधा बोने का समय –
अश्वगंधा को बोने की बात करे तो इसकी बुआई के समय खेत में अच्छी तरह से नमि होनी चाहिए जब एक से दो बार वर्षा हो जाये और खेत में पर्याप्त मात्रा में नमि हो जाए तब अश्वगंधा की बुआई करनी चाहिए यानी की अगस्त का महीना अश्वगंधा की बुआई के लिए उत्तम है यदि आप सिंचित अवस्था में बुआई करना चाहते है तो आप इसकी बुआई सितम्बर के माह में भी कर सकते है ।
अश्वगंधा बोने का विधि –
यदि आप सीधे बीज से अश्वगंधा की बुआई कर है तो आप इसे छिड़काव विधि द्वारा कर सकते है इस बात का ध्यान रहे की बीज को बोने से पहले निम् के पत्ते से बने काढ़े से उपचारित करके ही बोये या फिर आप बीज को डायथन ऍम – 45 से उपचारित करते है अश्वगंधा के 1 किलो बीजो को उपचारित करने के लिए 3 ग्राम डायथन ऍम का प्रयोग किया जाता है इसका उपयोग करने से फफूंदी व आदि प्रकार किट व रोगो से बचाव के लिए किया जाता है अश्वगंधा की अच्छी फसल के लिए कतार से कतार का दुरी 20 से 25 सेंटीमीटर की दुरी व पौधे से पौधे की दुरी 4-6 सेंटीमीटर होना चाहिए ।
अश्वगंधा के बीज को 2-3 सैंटीमीटर से अधिक गहरा पर नहीं बोना चाहिए ऐसे एक एकड़ में लगभग आप 3 से 4 लाख पौधे लगा सकते है अश्वगंधा की बुआई के 15 दिनों बाद अंकुरण होना प्रारम्भ हो जाता है अश्वगंधा की खेती नरसरी से तैयार पौधे से भी की जा सकती है यदि आप अश्वगंधा की नरसरी तैयार कर है तो यह नरसरी 3 से 4 सप्ताह में तैयार हो जाता है यानी की अश्वगंधा का पौधा खेत में लगाने योग्य हो जाता है एक एकड़ नरसरी के लिए 200 वर्गमीटर क्षेत्र फल काफी होता है ।
नरसरी की क्यारिया 1.5 मीटर चौड़ी और आप लम्बाई सुविधा अनुसार रखकर बनाये अश्वगंधा की नरसरी जमीन से 15 से 20 सेमि ऊंचा होना चाहिए और अच्छे जमाव के लिए नरसरी में नमि हमेशा बनाये रखे ।
अश्वगंधा की बीज की मात्रा –
अश्वगंधा की बीज की मात्रा की बात करे तो नरसरी के लिए प्रति हेक्टेयर के लिए 5 किलोग्राम बीज की आवस्य्क्ता होगी तथा छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेयर के लिए 10 से 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती है अश्वगंधा की बुआई के लिए जुलाई से सितम्बर माह बहुत ही उत्तम मानी जाती है
अश्वगंधा की किस्म / प्रकार
- डब्लू एस – 20 ( जवाहर )
- डब्लू एस आर
- जवाहर अश्वगंधा -20
- जवाहर अश्वगंधा -134
ये अश्वगंधा की प्रमुख किस्म है
अश्वगंधा की खेती के लिए खाद व सिंचाई –
अश्वगंधा की अच्छी फसल के लिए व अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha ki Kheti) से अधिक उपज लेने के लिए खेत के तैयारी के समय ही खेत में 8 से 10 टन अच्छी तरह से सड़ी हुयी गोबर की खाद मिला दे अश्वगंधा की फसल के लिए पानी की अधिक जरूरत नहीं होती है यानी की अश्वगंधा की खेती के लिए नाम मात्रा पानी की अवस्य्क्ता होती है यदि वर्षा समय पर न हो तो अच्छी फसल लेने के लिए 2 से 3 बार सिंचाई कर देनी चाहिए ।
अश्वगंधा की खेती के लिए निराई गुड़ाई –
अश्वगंधा की खेती ( Ashwagandha ki Kheti )की निराई गुड़ाई की बात करे तो यदि आप अश्वगंधा की खेती से अधिक उपज लेना चाहते है तो आपको अश्वगंधा की फसल में समय समय पर खरपतवार और उअसके नियंत्रण के लिए अनेक प्रकार की विधिया अपनाईये जिससे जड़ो में अच्छी बढ़त हो सके इसके लिए बीज बुआई के 25 से 30 दिन बाद खुरपी से तथा 40 से 45 दिन के बाद कसौल से गुड़ाई करे यदि खेत में दो या दो से अधिक पौधे एक साथ हो तो उसे छटाई भी कर देनी चाहिए ।
अश्वगंधा की फसल में उर्वरक का प्रयोग –
अश्वगंधा के बुआई के 1 माह पूर्व यानी की 1 महीने पहले प्रति हेक्टेयर 5 ट्राली गोबर की खाद या कम्पोस्ट की खाद खेत में मिला देना चाहिए बुआई के समय 15 किलो नाइट्रोजन व 15 किलो फास्फोरस का छिड़काव करे ।
अश्वगंधा फसल की सुरक्षा कैसे करे –
अश्वगंधा की फसल की सुरक्षा की बात करे तो अश्वगंधा पर रोग व कीटो का विशेष प्रभाव नहीं होता है लेकिन कभी कभी माहु किट तथा पूर्णझुलसा रोग से फसल प्रभावित होती है ऐसी परिस्थिति में मोनोक्रोटोफास का डायएन ऍम -45 तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बुआई के 30 दिन के अंदर छिड़काव करे जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के अंदर दोबारा से छिड़काव कर देनी चाहिए ।
अश्वगंधा की फसल से उत्पादन –
- अश्वगंधा की फसल से उत्पादन की बात करे तो यह फसल बुआई के 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है अश्वगंधा की फसल से प्रति हेक्टेयर 3 से 4 कुंतल जड़ तथा 50 किग्रा बीज प्राप्त होता है अश्वगंधा की फसल से लागत से तीन गुना अधिक मुनाफा होता है ।
अश्वगंधा के उपयोग –
अश्वगंधा की जड़े व पत्तिया औषधि के रूप में काम में लायी जाती है जो की निम्नलिखित बीमारियों में उपयोगी है –
विथेफेरिन : ट्यूमर प्रतिरोधी है
विथेफेरिन – ए : जीवाणु प्रतिरोधक है
विथेनिन ; उपशामक व निद्रादायक होती है
अश्वगंधा के जड़ो का उपयोग –
अश्वगंधा के सुखी जड़ो से आयुर्वेदिक व यूनानी दवाईया बनायी जाती है अश्वगंधा की जड़ो से गठिया रोग , त्वचा की बीमारिया , फेफड़े में सूजन , पेट के फोड़ो आदि के उपचार में किया जाता है ।
अश्वगंधा की पत्तियों का उपयोग –
अश्वगंधा के पत्तियों से पेट के कीड़े मारने तथा गर्म पत्तियों से दुखती आँख की इलाज किया जाता है और इसके हरी पत्तियों से लेप बनाकर घुटनो की सूजन व क्षय रोग के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है इसके प्रयोग से रुके हुए पेशाब के मरीज को आराम मिलता है इसे भारतीय जिनसेंग की संज्ञा दी गयी है इसके न्यायमित सेवन से मानव को रोगो से लड़ने के लिए क्षमता बढ़ती है इसके अधिक मांग को देखते हुए इसके उत्पादन की आपार सम्भावनाये है ।
अश्वगंधा की खेती के लिए आय व व्यय का ब्यौरा –
अश्वगंधा की खेती के लिए एक हेक्टेयर में अश्वगंधा (Ashwagandha ki Kheti) पर अनुमानित व्यय रूपए 10000 आता है जबकि 5 किवंटल जड़ो तथा बीज का वर्तमान विक्रय मूल्य यानी की बेचने का मूल्य 78750 रूपए होता है तथा इसका शुद्ध लाभ 68750 रूपए प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है जबकि उन्नत प्रजातियो में यह लाभ और अधिक हो सकता है ।