हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट ईसबगोल की खेती कैसे करे (Isabgol farming in hindi) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको ईसबगोल की खेती के बारे में बताएंगे यदि आप भी ईसबगोल की खेती करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
ईसबगोल की खेती की जानकारी
Table of Contents
ईसबगोल की खेती एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में की जाती है अमेरिका विश्व में ईसबगोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है तथा फिलीपीन्स, ईराक, ईरान, अरब अमीरात, भारत जैसे देश में ईसबगोल का उत्पादन किया जा रहा है प्रतिवर्ष 120 करोड रुपए की ईसबगोल का निर्यात भारत से होता है इसके हिसाब से ईसबगोल के उत्पादन और क्षेत्रफल में भारत पहले स्थान पर स्थित है उनके दोनों का इस्तेमाल अनेक प्रकार की बीमारियों में किया जाता है।
लेकिन पेट संबंधी बीमारियों के उपचार में इसे महारत हासिल है ईसबगोल का इस्तेमाल औषधि के अलावा अन्य कई तरह के चीजे को तैयार करने में किया जाता है तथा आइसक्रीम और रंग रोगन की चीजों को बनाने में भी ईसबगोल का इस्तेमाल किया जाता है
ईसबगोल का पौधा तीन से चार फीट ऊंचा है और झाड़ीनुमा होता है इसके पौधे पर गेहूं की तरह ही बालिया लगते हैं भारत में ईसबगोल की खेती पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में लगभग 50000 हेक्टेयर के क्षेत्र में की जाती है यदि आप भी ईसबगोल की खेती करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें। इस पोस्ट में हम आपको ईसबगोल की खेती कैसे करें (Isabgol farming in hindi) तथा ईसबगोल की कीमत के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे
ईसबगोल की खेती (Isabgol farming in hindi) के लिए मिट्टी जलवायु एवं तापमान
ईसबगोल की खेती (Isabgol farming in hindi) आप किसी भी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में कर सकते हैं इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकास वाला होना आवश्यक होता है इसका पौधा अधिक नम भूमि में विकसित नहीं हो पता है। सामान्य पीएच मान वाले खेत में इसकी खेती आप आसानी से कर सकते हैं। ईसबगोल का पौधा उसे गठबंधन जलवायु वाला होता है जिसे रवि की फसल के साथ इसकी खेती की जाती है
शुरुआत में इसके पौधों को पानी की आवश्यकता होती है तथा पौधे के पकने के लिए गर्म जलवायु की भी आवश्यकता होती है सामान्य तापमान में ईसबगोल के पौधे अच्छे से वृद्धि करते हैं तथा पौधों की फलियां बनने के दौरान इन्हें अधिक तापमान की जरूरत होती है
ईसबगोल की उन्नत सील किस्में
ईसबगोल की कुल चार किस्म होती हैं
जवाहर ईसबगोल 4, आर.आई. 89, हरियाणा ईसबगोल 5, आई. आई. 1
- जवाहर ईसबगोल 4 के पौधों को तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन का समय लगता है इस किस्म को कैलाश नाथ काटजू उद्यानिकी महाविद्यालय मंदसौर द्वारा अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है (Isabgol farming in hindi) इस किस्म के पौधे 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देते हैं
- आर आई 89 ईसबगोल की इस किस्म को तैयार होने में लगभग 4 महीने का समय लगता है इस किस्म के पौधे छोटे आकार के होते हैं और एक से डेढ़ फीट तक ही इनकी ऊंचाई होती है इसकी पैदावार 12 से 16 कुंतल प्रति हेक्टेयर में होती है
- हरियाणा ईसबगोल 5 किस्म के पौधे लगभग 90 से 100 दिन में तैयार हो जाते हैं इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा तैयार किया गया है इस किस्म के खेती करने से आपको 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है
- इर इस किस्म के पौधे 120 दिन के पश्चात कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं इनके पौधों की लंबाई लगभग डेढ़ फिट होती है तथा (Isabgol farming in hindi) किस्म से आपको 12 से 16 कुंतल की पैदावार प्रति हेक्टेयर होती है
ईसबगोल की खेती के लिए खेत की तैयारी
ईसबगोल की खेती (Isabgol farming in hindi) करने के लिए सबसे पहले आपको खेत को तैयार करना चाहिए इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हाल से खेत तो की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। जुताई करने से खेतों में पहले से मौजूद पुरानी फसलों के आवशे स नष्ट हो जाते हैं खेत की जुताई करने के पश्चात उसमें 10 से 12 गाड़ी गोबर की खाद डालकर जुताई करनी चाहिए इससे खेतों मैं गोबर की खाद अच्छी तरह से मिल जाती है।
खाद को मिट्टी में मिलने के पश्चात खेतों में पानी लगाकर पलेव करने की आवश्यकता होती है पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी सुखी दिखाई देने लगे तो उस दौरान रोटावेटर लगाकर 2 से 3 तिरछी जुताई करनी चाहिए इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है मिट्टी पूरा करने के पश्चात पता लगाकर खेत को बराबर कर लेना चाहिए इससे खेत में जल भराव की समस्या नहीं होती है।
ईसबगोल के बीज (Isabgol farming in hindi) की रोपाई मेड और समतल भूमि दोनों तरह से आप कर सकते हैं यदि आप मेढ़ों पर बीज की रोपाई करते हैं तो उसके लिए आपको उचित दूरी पर तैयार करनी होती है इसके अलावा यदि आप ईसबगोल की फसल की रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उसमें आपको एक बोरा एनपीके की उचित मात्रा का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
ईसबगोल के बीच की रोपाई का उचित समय तथा तरीका
ईसबगोल के बीज की रोपाई (Isabgol farming in hindi) बीजों के रूप में की जाती है एक हेक्टेयर खेत में लगभग 4 से 5 किलो बीज की जरूरत होती है बीज की रोपाई से पहले उन्हें मैटेलिक जिन की उचित मात्रा से उपचारित करना चाहिए इससे बीजों की रोपाई समतल और मीडो दोनों तरह के भूमि कर सकते हैं समतल भूमि में बीजों की रुपए छिड़काव विधि द्वारा भी की जाती है तथा मेड़ों पर रोपाई ड्रिल के माध्यम से की जाती है
समतल भूमि में बीजों की रोपाई के लिए बीजों को खेतों में छिड़ एक दिया जाता है उसके पश्चात खेत में कल्टीवेटर के पीछे हल्का पता लगाकर 2 से 3 जुटा की जाती है इसे बी भूमि कुछ गहराई तक नीचे दब जाते हैं इसके आंतरिक ड्रिल विधि द्वारा बी उपाय के लिए एक फीट की दूरी पर पंख में मेड़ता यार किया जाता है इन्हीं मैडम पर 5 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बीजों की रुपए की जाती है ईसबगोल के बीजों की रोपाई (Isabgol farming in hindi) अक्टूबर से नवंबर माह के मध्य की जाती है
ईसबगोल के पौधों की सिंचाई
इसके पौधे की प्रारंभिक सिंचाई रोपाई (Isabgol farming in hindi) के तुरंत बाद करनी चाहिए तथा बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए पहली सिंचाई के 5 दिन के अंतराल पर ही तथा दूसरी सिंचाई करना चाहिए इसके बाद जब बीज अंकुरित हो जाते हैं तब उनकी एक बार फिर से सिंचाई करनी चाहिए तथा 20 दिन के अंतराल पर आपको दूसरी सिंचाई करने की आवश्यकता होती है
ईसबगोल के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
ईसबगोल के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए आप प्राकृतिक एवं रासायनिक दोनों तरीको का प्रयोग कर सकते हैं प्राकृतिक विधि में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए आपको पौधों की निराई गुड़ाई करनी होती है इसके लिए पौधों की पहली गुड़ाई बी के रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए तथा दूसरी गुड़ाई 15 दिन के अंतराल पर की जाती है इससे पौधे को केवल दो ही गुड़ाई की जरूरत होती है रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए आपको सल्फोसल्फरण या आइसोप्रोटरों की उचित मात्रा का छिड़काव बी रोपाई के बाद करना होता है
ईसबगोल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनके रोकथाम
ईसबगोल के पौधों में मृदुरोमिल आसिता तथा मोयला दो प्रकार के रोग लगते हैं
- मृदुरोमिल आसिता रोग ईसबगोल की पौधों में पर बाली में लगने के दौरान देखने को मिलता है यह रोग पौधों को विकसित होने से रोक देता है (Isabgol farming in hindi) जिससे पैदावार कम हो जाता है इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण एकत्रित हो जाते हैं इस रोग से बचाव के लिए आपको कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब का उपयोग करना चाहिए
- मोयला यह एक कीट रोग होता है जो पौधों पर आक्रमण करके उन्हें काफी हानि पहुंचती है इस रोग का प्रभाव बीज रोपाई के दो माह के बाद पौधों पर फूल आने के समय दिखता है इस रोग का कीट पौधों के की कोमल भागों का रस चूस कर उन्हें नष्ट करते हैं (Isabgol farming in hindi) जिससे पौधे कुछ समय पश्चात ही खराब हो जाते हैं ईसबगोल के पौधे को इस रोग से बचने के लिए आपको इमिडाक्लोप्रिड या ऑक्सी मिथाइल डेमेटान का उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए
ईसबगोल के फसल की कटाई पैदावार एवं लाभ
ईसबगोल के पौधे बिजाई, रोपाई के लगभग 100 से 120 दिन के पश्चात तैयार हो जाते हैं जब इसके पौधे की पत्तियां सूखकर हल्के पीले रंग के दिखने लगे तो आपको उनके फसलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए इसके पौधों की कटाई के लिए सुबह का समय उपयुक्त माना जाता है क्योंकि इस दौरान बलियो के बीज कम मात्रा में टूटते हैं पौधों की कटाई के बाद उन्हें खेत में ठीक तरह से सुख लेना चाहिए।
उसके बाद उन्हें हाथों से मिलकर उनके दोनों को निकाल लेना चाहिए यदि फसल अधिक मात्रा में हो तो दोनों को मशीन की सहायता से निकाल सकते हैं तथा पौधों से प्राप्त भूसी का इस्तेमाल आप चारे के लिए कर सकते हैं ईसबगोल के एक हेक्टेयर में लगभग 10 से 12 कुंतल के पैदावार होती है जिसके दाने से 20 से 30 प्रतिशत तक की भूसी मिलती है
ईसबगोल की कीमत ₹8000 तक होता है तथा उनके भूसे का भाव इनके मांग के ऊपर निर्भर करता है यदि आप इसकी फसल की खेती करते हैं तो आप एक से डेढ़ लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।