अरहर की खेती कब और कैसे करे

नमस्कार किसान बंधुओ आप सब के लिए आज मैं अरहर की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी साझा करुगा । जैसा की आप जानते है कीअरहर एक खरीफ की फसल है और खरीफ की मुख्य फसल है । अरहर एक दलहनी फसल है तथा यह दलहनी फसलों में अपना एक विशेष स्थान प्राप्त किया है विशेष स्थान प्राप्त करने का कारण यह है की अरहर की दाल में 20 से 25 प्रतिशत तक प्रोटीन पायी जाती है और साथ में ये भी है की प्रोटीन में पाच्य मूल्य भी अन्य प्रोटीनों से बहुत ज्यादा अच्छा है और इसमें कार्बोहाइड्रेट , कैल्शियम , लोहा और खनिज पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है ।

अरहर की दीर्घकालीन किस्मे मृदा में 200 किलोग्राम तथा वायुमंडलीय नाइट्रोजन काेस्थीकरण कर मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता में वृद्धि करता है अरहर की खेती को शुष्क क्षेत्रो में किसानो द्वारा प्राथिमिकता दी गयी है तथा साथ में ये भी की यह असिंचित क्षेत्रो में अरहर की खेती करने से ज्यादा से ज्यादा उपज प्राप्त होती है और सफलता पूर्वक प्राप्त होती है अरहर की खेती असिंचित क्षेत्रो में इसलिए की जाती है क्योकि अरहर की जड़ गहरी होती है और अधिक तापक्रम कीस्थिति में पत्ती मोड़ लेता है । जिसके कारण यह शुष्क क्षेत्रो में सर्वोपयुक्त फसल है । इसकी खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र , गुजरात , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , कर्नाटक तथा आंध्रप्रदेश आदि और ये मुख्य अरहर उत्पादक राज्य है ।

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अरहर की खेती कैसे करे –

Table of Contents

जैसा की अब आप जान चुके होंगे की अरहर की खेती करने के लिए हमे बहुत से चीजों का ध्यान देना होगा जैसे की अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है , उपयुक्त मिटटी कोन सी है ,  अरहर की खेती के लिए खेत की यैयारी कैसे करे , अरहर की खेती में बीज बुआयी का समय कब है , अरहर की खेती के लिए कोन कोन से खाद एवं उर्वरक की जरूरत पड़ेगी तथा हमने अरहर की खेती के लिए सिंचाई की जरूरत है की नहीं या फिर अरहर की खेती में कितनी बार सिंचाई करे तथा अरहर की उन्नत किस्मे कोन सी है और अरहर की खेती में कोन कोन से रोग व किट लगते है तत्झा उन रोगो और कीटो का नियंत्रण और अरहर की खेती से कितनी पैदावार होता है आदि सभी जानकारी आपको इस पोस्ट में मिल जाएगा । अतः आप इस पोस्टके साथ बने रहिये तो आईये जानते है की अरहर की खेती कैसे और कब की जाती है ।

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु –

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु यह है की अरहर आद्र और शुष्क दोनों दोनों ही प्रकार के गर्म क्षेत्रो में भली प्रकार से उगाई जाती है। परन्तु आप शुष्क क्षेत्रो में अरहर की सिंचाई की जरूरत भी नहीं पड़ेगी । अरहर की फसल को परतंभी या शुरुआत के अवस्था में पौध के अच्छी विकास और वृद्धि के लिए नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है । अरहर की खेती के लिए 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा उपयुक्त होती है और सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है और यह ाहर की खेती के लिए उत्तम जलवायु है ।

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि –

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि की चुनाव बहुत सोच समझ के करना चाहिए तथा भूमि का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए की जिस खेत में आप अरहर की खेती करेंगे वो खेत ऊंचा और समतल होना चाहिए तथा उसमे जल निकास भी अच्छे से होना चाहिए और यह अरहर की खेती के लिए सबसे मत्वपूर्ण भाग है जो की खेत की अच्छी जल निकास । अरहर की खेती अधिकांश सभी प्रकार की मिट्टीमे की जाती है उत्तर भारत में अरहर की खेती मटियार दोमट मिटटी से लेकर रेतीली दोमट मिटटी में किया जाता है अरहर की फसल की बुआई दोमट मिटटी या दोमट मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए इस प्रकार की मिटटी में अरहर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है तथा वह मिटटी ऊँचा हो और अच्छी जल निकास वाली होनी चाहिए इस प्रकार की मिटटी में  अरहर की खेती करना उत्तम माना जाता है ।

अरहर की खेती

अरहर की खेती के लिए भूमि की तैयारी –

अरहर की बीज की बुआई के लिए खेत को पहले अरहर की खेती करने योग्य तैयार किया जाता है । और खेत को तैयार करने के लिए खेत में अनेको प्रकार की क्रियाये की जाती है जैसे की सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी वो भी मिटटी पलट हल से लगभग 2 से 3 बार देशी हल से जुताई करे या भर आप कल्टीवेटर से भी कर सकते है । यदि आप कल्टीवेटर से गहरी जुताई कर रहे तो यह आपके लिए उचित रहेगा । एक जरुरी बात यह है की खेत में अच्छी जल निकास के लिए व्यवस्था होनी चाहिए क्योकि अरहर की खेती में जल निकास का बहुत बड़ा महत्व है ।

अरहर की बीज की बुआई का समय –

अरहर की बीज की बुआई के लिए उपयुक्त समय यह है की यदि आप शीघ्र पकने वाले किस्मो की बुआई कर रहे है तो यह जून महीने के पहले सप्ताह में खेत की पलेवा करके बुआई कर देनी चाहिए तथा यदि आप माध्यम देर से पकने वाली किस्मो की बुआई कर रहे तो आप जून से जुलाई के माह में बुआई करनी चाहिए यह बुआई का उचित समय है और इसे ही लोगो ने अरहर की बुआई का उत्तम समय माना है

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अरहर की उन्नत किस्मे –

अरहर की उन्नत किस्मो के नाम कुछ इस प्रकार है जो निचे दी सरणी में दर्शाया गया है ।

बांझपन रोग प्रतिरोधी किस्में- बी आर जी- 2, टी जे टी- 501, बी डी एन- 711, बी डी एन- 708, एन डी ए- 2, बी एस एम आर -853, पूसा- 992 और बी एस एम आर- 736 .
शीघ्र पकने वाली किस्में- पूसा- 855, पूसा- 33, पूसा अगेती, पी ए यू- 881, (ए एल- 1507) पंत, अरहर- 291, जाग्रति ( आई सी पी एल- 151) और आई सी पी एल- 84031 (दुर्गा) आदि.
मध्यम समय में पकने वाली किस्में- टाइप- 21, जवाहर अरहर- 4 और आई सी पी एल- 87119 (आशा).
देर से पकने वाली किस्में-   बहार, एम ए एल- 13, पूसा- 9 और शरद (डी ए- 11) आदि है.
हाईब्रिड किस्में-

पी पी एच- 4, आई सी पी एच- 8, जी टी एच- 1, आई सी पी एच- 2671 और  आई सी पी एच- 2740 आदि.

अरहर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा –

अरहर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा खेत की व्यवस्था के ऊपर निर्भर करता है जैसे की यदि आप सही खेत में तहत खेत की मिटटी की परीक्षण करवाए है तो उसमे उचित मात्रा में ही खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करेंगे ।  यानी की समस्त खाद एवं उर्वरक कोअन्तिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 5 सेंटीमीटर गहराई तथा 3 से 5 सेंटीमीटर बगल  में देना सर्वोत्तम रहता है। बुआई के समय 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 20 से 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर कतारों के निचे दे देना चाहिए |

अरहर की बीज की बुआई की मात्रा –

जल्दी पकने वाली किस्मों  का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है ।

 मध्यम पकने वाली किस्मों का 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है ।

अरहर की बीज की जैविक उपचार –

अरहर की बीज की बुआई से पहले अरहर की एक बार बिजोउपजार कर लेना चाहिए यदि आप जैविक उपचार कर रहे तो 10 किलोग्राम अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (100 ग्राम) पर्याप्त होता है। इसके लिए 50 ग्राम गुड़ या चीनी को 1/2 लीटर पानी में घोलकर उबाल ले। घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस कल्चर में 10 किलोग्राम बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें। जिससे  प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें। उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर, दूसरे दिन बोया जा सकता है।उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें तथा बीज उपचार दोपहर के बाद करें यह अच्छा रहेगा जिससे धुप लगने का कोई भी डर नहीं रहेगा ।

अरहर की बीज की बुआई की दूरी-

शीघ्र पकने वाली किस्मों हेतु- पंक्ति से पंक्ति की दुरी- 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दुरी- 10 से 15 सेंटीमीटर होना चाहिए 

मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्मों हेतु- पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60 से 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दुरी 15 से 20 सेंटीमीटर होना चाहिए ।

अरहर की फसल की सिंचाई –

अरहर की फसल में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है फिर भी आप सिंचाई कर सकते है आवश्यकतानुसार जैसे की बुवाई से 30 दिन बाद पुष्पावस्था और बुवाई से 70 दिन बाद फली बनते समय तथा बुवाई से 110 दिन बाद फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। तथा अधिक अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जल निकासी का होना अतयंत महत्वपूर्ण है  इसलिए निचले और अधो जल निकासी की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ों पर बुआई करना उचित  माना गया है ।मेड़ों पर बुवाई करने से अधिक जल भराव की स्थिति में भी अरहर की जड़ों के लिए पर्याप्त वायु संचार होता रहता है । 

अरहर की फसल में खरपतवारो का नियंत्रण कैसे करे –

अरहर की फसल में खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए हमें निम्न तरीको को फॉलो करना चाहिए जैसे की खरपतवारनाशक पेन्डीमिथालिन 0.75 से 1.00 किलोग्राम  प्रति हेक्टर बुआई के बाद और अंकुरण से पहले प्रयोग करने से खरपतवारो पर नियंत्रण पाया जा सकता है । खरपतवारनाशक प्रयोग करने के बादआप अरहर की फसल में एक निराई लगभग 30 से 40 दिन की अवस्था पर कर देना चाहिए । यदि  पिछले वर्षों में खेत में खरपतवारों की गम्भीर समस्या रही हो तो अन्तिम जुताई के समय खेत में फ्लूक्लोरेलीन 50 प्रतिशत की 1 किलोग्राम सकिय मात्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर या एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई सी की 2 से 2.5 किलोग्राम (सक्रिय तत्व) मात्रा को बीज अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।

अरहर की फसल में लगने वाले रोग एवं उसका नियंत्रण कैसे करे –

तना विगलन रोग –

तना विगलन रोग अरहर के पौधे की परवर्ती वृध्दि अवस्थाओं पर जल स्तर के निकट बाहरी पर्ण-छद पर छोटे, काले से अनियमित क्षतिचिह्नों के साथ प्रारंभ होता है। इससे पौधा सुख जाता है और नस्ट हो जाता है यह अरहर की फसल में लगने वाला प्रमुख्य रोग है । इसके रोकथाम के लिए आपको निचे दिए गए तरीको को फलो करना पड़ेगा ।

तना विगलन रोग का नियंत्रण –

 इस रोग की रोकथाम हेतु बीज को रोडोमिल 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करके बीज की बुआई करना चाहिए। और रोगरोधी किस्में जैसे- आशा, मारूति बी एस एम आर- 175 और बी एस एम आर- 736 का चुनाव करना चाहिए फिर उसे बोना चाहिए । 

झुलसा रोग-

झुलसा रोग से ग्रसित पौधे पीला होकर सूख जाते है। इसमें तने पर जमीन के ऊपर गठान नुमा असीमित वृद्धि दिखाई देती है और पौधे हवा आदि चलने पर यहीं से टूट जाते है और फिर सुख कर नस्ट हो जाते है ।

झुलसा रोग का नियंत्रण –

 झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए  ग्राम मेटालेक्सिल 35 डब्लू एस फफूदनाशक दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बुआई पाल (रिज) पर करना चाहिए। चवला या मूंग की फसल को साथ में लगाये।रोग रोधी किस्मे जैसे- जे ए- 4 और जे के एम- 189 को  का प्रयोग करना चाहिए ।

अरहर की फसल में लगने वाले किट एवं उनका नियंत्रण कैसे करे –

फलीमक्खी या फलीछेदक- 

यह फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है, इल्ली अपना जीवनकाल फली के अंदर दानों को खाकर पूरा करती है।जिसके कारण दानों का विकास रूक जाता है। दानों पर तिरछी सुरंग बन जाती है तथा दानों का आकार छोटा रह जाता है और उपज में गिरावट आ जाती है ।

फलीमक्खी या फलीछेदक किट का नियंत्रण –

इस किट के नियंत्रण के लिए क्विनालफास, 20 ई सी, 2 मिलीलीटर या एसीफेट 75 एस पी, 1 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

पत्ती लपेटक-

 यह पत्ती लपेटक किट मादा आमतौर पर फलियों पर गुच्छों में अंडे देती है। इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों ही फली तथा दानों का रस चूसते हैं।जिससे फलियाँ आड़ी-तिरछी हो जाती है व दाने सिकुड़ जाते है। आपना जीवन चक्र लगभग चार सप्ताह में पूरा करते है। 

पत्ती लपेटक किट का नियंत्रण –

इस किट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 36 एस एल, 1 मिलीलीटर + डाईक्लोरोवास 76 ई सी, 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

अरहर की फसल की कटाई कब करे –

अरहर की फसल की कटाई करने का उपयुक्त समय यह है की जब अरहर को पौधों पर लगने वाली फलियाँ 80 प्रतिशत तक पककर भूरे रंग की हो जाये तब अरहर की फसल की कटाई कर लेनी चाहिए ।इसके बाद कटाई के 7 से 10 दिन बाद जब पौधे पूरी तरह से सूख जाये तो उसकी लकड़ी को पीट-पीट कर फलियों को अरहर के पौधों से अलग कर लेना चाहिए ।इसके बाद डंडे व बैलो के द्वारा अरहर के दानो को निकाल सकते है।  अरहर की दाल के निकाले गए दानो को 7 से 10 दिन तक धुप में अच्छे सूखा कर भंडारित कर लेना चाहिए।

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अरहर की फसल से कितना उत्पादन होता है –

यदि सभी प्रकार की उन्नत तकनीकी को अपना कर अरहर की खेती करे तो 15 से 30 किंवटल प्रति हेक्टेयर असिंचित अवस्था में और 25 से 40 किंवटल प्रति हेक्टेयर पैदावार सिंचित अवस्था में प्राप्त कर सकते है ।और 50 से 60 क्विंटल फसल अवशेष प्राप्त होते है।

अरहर की खेती से कितना होता है मुनाफा –

अरहर की खेती से मुनाफे की बात करे तो आप इस बात से यह अंदाज लगा सकते है की अरहर की दाल उत्तर प्रदेश में कितनी मंहगी है  80-100 रूपए किलो के हिसाब से होता है।जिसे बेचकर किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते है यानी की आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है की 1 किलो अरहर की दाल 80 से 100 रूपी में मिलती है जबकि आप एक हेक्टेयर में 25 से 40 कुंतल उपज प्राप्त कर सकते है । और यह बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते है ।

अरहर की खेती में होने वाली हानि / नुक्सान –

अरहर की खेती में वैसे तो ज्यादा नुकसान नहीं होता है फिर यदि थोड़ा सा भी आप चूक कर देंगे तो नुक्सान हो सकता है जैसे की आप सही समय पर बीज की बुआई न करना तथा उचित जलवायु में बुआई न करना काफी नुकसानदेह हो सकता है तथा जब आप सही समय और उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग नहीं करेंगे तो फसल के विकास और वृद्धि रुक जाएगी जिससे उपज पर प्रभाव पड़ेगा और फसल में लगने वाले किट एवं रोगो को उचित समय पर उनका नियंत्रण नहीं किया जायेगा तो काफी नुकसान हो सकता है । आपकी फसल में किट एवं रोगो के वजह से दाने नहीं बनेगे जिससे उत्पादन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा ।

सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न-

अरहर की उन्नत किस्मो के नाम कोन कोन से है ? 

पूसा- 855, पूसा- 33, पूसा अगेती, पी ए यू- 881, (ए एल- 1507) पंत, अरहर- 291, जाग्रति ( आई सी पी एल- 151) और आई सी पी एल- 84031 (दुर्गा), टाइप- 21, जवाहर अरहर- 4 और आई सी पी एल- 87119 (आशा) आदि ।

अरहर की फसल में कोन कोन से खाद एवं उर्वरक का प्रयोग किया जाता है व कितनी मात्रा में ?

अरहर की फसल में प्रयोग होने वाले खाद एवं उर्वरक तथा उनकी मात्रा – बुआई के समय 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 20 से 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर  की दर से ।

अरहर की खेती के लिए बीज बुआई की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?

अरहर की खेती में बीज की बुआई की मात्रा कुछ इस प्रकार है -जल्दी पकने वाली किस्मों  का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है । तथा  मध्यम पकने वाली किस्मों का 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है।

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