Chana Ki Kheti / चना की खेती से 5 महीने में करे बंपर कमाई

चने की खेती (Chana Ki Kheti )

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चना एक प्रकार की दलहनी फसल होती है जिसका साइंटिफिक नाम ” Cicer Arietinum ” है चने को आमतौर पर छोलिया या बंगाल ग्राम के नाम से भी जाना जाता है पूरे विश्व में चने का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में किया जाता है भारत लगभग 70 चना का उत्पादन किया जाता है रवि फसलों में चने की खेती करना सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाता है क्योंकि चना की खेती (Chana Ki Kheti )मे फसल कम लागत और कम समय में ही तैयार हो जाती है और काफी अच्छा मुनाफा देती है |

Chana Ki Kheti

चना मानव शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है क्योंकि चने में 21% प्रोटीन तथा 60% कार्बोहाइड्रेट की मात्रा उपलब्ध होती है सुबह के समय में भीगे हुए चने का सेवन करने से पूरे दिन शरीर में होती और एनर्जी बनी रहती है इसके अलावा भी चैन से कई प्रकार की वस्तुओं को बनाया जाता है चने की कच्ची पत्तियों से सभी चटनी और रोटी बनाकर भी खाया जाता है |

चने की खेती (Chana Ki Kheti ) की जानकारी

चने की खेती (Chana Ki Kheti ) किसानों के लिए लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकता है इसकी खेती करना के लिए महत्वपूर्ण चीजों की जानकारी होना आवश्यक है जैसे उपयुक्त भूमिका चयन करना जाने की अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेतों को तैयार करना उपयुक्त जलवायु का होना और उच्चतम किस्म के बीजों का चयन करना विजय को होने का सही समय और सही तरीका फसल की देखभाल उर्वरक देना और पौधों की प्रणालिकरण करना भी आवश्यक होता है |

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चने की खेती (Chana Ki Kheti ) किसी प्रकार की उपजाऊ भूमि तथा उचित चलने का सॉलिड मिट्टी में की जा सकती है वैसे तो चैन की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए दोमट मिट्टी को अत्यधिक उपयुक्त माना जाता है इसकी खेती करने वाली भूमिका पीएच मान कम से कम 6 से 7 होना चाहिए चने की खेती अच्छी अवशिष्ट नमी वाली मिट्टी को काफी पसंद करते हैं |

चने की खेती के लिए उपयुक्त समय (Suitable time for gram cultivation in India )

भारत में चने की खेती (Chana Ki Kheti ) के लिए बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 20 नवंबर होता है यदि आप इसके बाद चने की बुवाई करते हैं तो उत्पादन में कमी देखने को मिल जाता है उचित समय पर बजाई करना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि अगेती बुवाई से अनावश्यक विकास का खतरा बढ़ जाता है वहीं पछेटी बुवाई से पौधों में सुखा रोग का खतरा बढ़ जाता है तथा विकास और जेड भी उचित ढंग से नहीं बड़ पाती हैं और उत्पादन कम प्राप्त होता है |

चने की खेती करने वाले राज्य ( Gram Farming in India states )

भारत में चने की खेती (Chana Ki Kheti ) राजस्थान आंध्र प्रदेश उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में बहुत अधिक मात्रा में की जाती है वैसे तो भारत में चने का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश राज्य में होता है मध्य प्रदेश राज्य में चने का कुल उत्पादन 25.44 फीसदी पैदा करता है इसके बाद आंध्र प्रदेश 15.55 फीसदी चने की पैदावार करता है |

Chana Ki Kheti

चने की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु(Suitable climate for gram cultivation )

चने के पौधों की वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है किंतु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला चने के पौधों को अधिक हानि पहुंचती है सामान्य तापमान में चने की खेती आसानी से की जा सकती है इनके पौधों को 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छे से अंकुरित होते हैं चने का पौधा ज्यादा से ज्यादा तेज डिग्री तथा कम से कम 10 डिग्री का तापमान सहन करने की क्षमता रखते हैं |

चने की खेती के लिए उन्नत किस्मे ( Improved varieties for gram cultivation in India )

चने की खेती (Chana Ki Kheti ) से अधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए बाजारों में विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्म उपलब्ध है इन सभी किस्म को दो प्रजातियों में विभाजित किया गया है जिसमे देसी और काबुली प्रजाति भी शामिल है |

देसी किस्म के चने

देसी किस्म के प्रजाति के चनो में दानों का आकार छोटा पाया जाता है इस किस्म के चल बनाने में किया जाता है देसी चने की खेती भारत में सबसे ज्यादा की जाती है |

जे. जी. 11 किस्म

इस किस्म के चने के पौधों को तैयार होने में 110 से 115 दिन का समय लगता है हल्के पीले रंग के होते हैं सिंचित तथा आसिंचित दोनों ही क्षेत्र में आसानी से उगाया जा सकता है चने के इस किस्म से प्रति हेक्टेयर में 18 कुंतल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है |

इंदिरा चना 

इस किस्म के पौधों पर फफूंद जनित कटवा और उखटा रोग नहीं देखने को मिलता है इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं जिन्हें कम सिंचाई की आवश्यकता होती है चने की या किसी पौधे रोपाई के 120 से 130 दिनों के बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है जिससे एक हेक्टेयर खेत में 20 से 22 कुंतल तक चनो का उत्पादन प्राप्त होता है |

वैभव किस्म

इस किस्म के पौधे पौध रोपाई के 115 से 120 दोनों के बाद तैयार हो जाते हैं जिसे निकालने वाले दोनों का आकार सामान्य से थोड़ा बड़ा होता है उनके दोनों का रंग कत्थई कलर का होता है इस किस्म के पौधे अधिक तापमान को सहन नहीं कर पाते हैं यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 से 16 कुंतल तक के पैदावार देती है |

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काबुली किस्म का चना

काबुली प्रजाति के चरणों को संचित जगह पर उगाने के लिए तैयार किया गया है इस क्वेश्चन के चरणों की दाल अधिक इस्तेमाल किया जाता है तथा इसकी खेती भी व्यापारिक तौर पर तैयार करने के लिए की जाती है |

जे. जी. के -2

चने की यह किस में कम समय में उगाने के लिए बोई जाती है इसके पौधे बीज़ रोपाई के 90 से 100 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाते हैं जिसे निकालने वाले दोनों का रंग हल्का पीला और सफेद पाया जाता है यह किस में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 22 कुंतल तक के पैदावार देती है |

मैक्सिकन बोल्ड

चने की यह किस्म कम समय में पैदावार प्राप्त करने के लिए उगाई जाती है इसका पौधा बी रोपाई के 90 से 95 दिन में पैक कर तैयार हो जाती है इस किस्म से निकलने वाले दाने सफेद चमकदार और आकर्षक रंग के पाए जाते हैं जिसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 25 से 26 क्विंटल तक होता है |

चने की खेती के लिए खेत की तैयारी और उर्वरक की मात्रा ( Field preparation and quantity of fertilizer for Chana Ki Kheti )

चने के बीजों की रोपाई करने से पहले खेत को अच्छी तरीके से तैयार करना चाहिए इसके लिए सबसे पहले आपको खेत की अच्छी तरीके से गहरी जुताई करनी होगी जुताई करने के बाद कुछ समय के लिए खेतों को खुला छोड़ देना चाहिए जिससे खेतों में अच्छे तरीके से धूप लग जाए और मिट्टी में उपस्थित हानिकारक तत्व पूरी तरह से नष्ट हो जाए खेत की पहली जुताई करने के बाद 12 से 15 ताली सड़ी हुई गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डाल देना चाहिए खाद को खेत में डालने के पश्चात खेत की जुताई कर देना चाहिए जिससे खाद और मिट्टी आपस में मिल जाए |

इसके बाद खेत में पानी लगाकर पहले वह कर दिया जाता है पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी सुखी दिखाई देने लगती है तो कल्टीवेटर की सहायता से खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दी जाती है जुताई करने के पश्चात खेत में पाटा लगाकर खेत को अच्छे तरीके से समतल कर लेना चाहिए जिससे जल भराव की समस्या ना उत्पन्न चने की जादू में गांठे भूमि में होती हैं जो नाइट्रोजन की पूर्ति करती हैं |

जिस कारण से इसके पौधों को रासायनिक उर्वरक की अधिक जरूरत नहीं होती है और जैविक उर्वरक को सबसे उपयुक्त माना जाता है रासायनिक खाद्य के रूप में केवल एक बोरा डीएपी की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई करते समय डालना आवश्यक होता है तथा एक एकड़ खेत में 25 किलो जिप्सम का छिड़काव करें |

चने के पौधों की सिंचाई ( irrigation of gram plants )

वैसे तो चैन की 70 से 75% बुवाई असंचित क्षेत्र में की जाती है जिस कारण से चने के पौधों को अत्यधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है संचित जगह पर पौधों को पानी देना होता है इसके लिए पौधों को अधिकतम 3 से 4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है इसकी पहली सिंचाई बी रोपाई के 30 से 35 दिन बाद की जाती है तथा उसके बाद की सिंचाई 25 से 30 दिनों के अंतराल पर की जाती है |

चने की खेती में प्रयुक्त खाद और उर्वरक की मात्रा ( Amount of manure and fertilizer used in Chana Ki Kheti )

चने की खेती (Chana Ki Kheti ) में खाद और उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के अनुसार डालना चाहिए चने के पौधों के जुड़े भूमि में होती है जिस कारण से भूमि से ही पोषक तत्व का ग्रहण कर लेती हैं अच्छे उपज प्राप्त करने के लिए आपको उचित मात्रा में कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना होगा इसके अलावा आपको 20 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना होगा और यदि आप देर से चने की बुवाई करते हैं तो दो पीस दीजिए उड़िया का घोल का छिड़काव फूल आने के समय करना अधिक लाभदायक होता है |

चने की खेती के लाभ ( Benefits of Chane ki fasal )

  • चने की खेती (Chana Ki Kheti )करके विभिन्न प्रकार के लाभ प्रदान किया जा सकते हैं |
  • चने की खेती करके किसान अपनी आमदनी में बढ़ोतरी कर सकते हैं |
  • चने की खेती (Chana Ki Kheti ) में कम पानी और कम समय की आवश्यकता होती है |
  • चने में विभिन्न प्रकार के प्रोटीन विटामिन मिनरल्स फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है |

चने की खेती मे लागत और मुनाफा ( Cost and profit in Gram Cultivation in Hindi )

चने की उन्नत किस्म का चयन करके अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है इसकी खेती से किसान भाई लगभग 20 से 22 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं भारतीय बाजारों में चैन की कीमत 45 से ₹50 प्रति किलोग्राम तक होता है इस हिसाब से किसान चने की खेती (Chana Ki Kheti ) करके लगभग 1.5 से 2 लाख तक की कमाई कर सकते हैं |

चने की खेती ( Chana Ki Kheti ) कौन-कौन से महीने में की जाती है ?

सिंचित क्षेत्र में चने की बुवाई 20 अक्टूबर से 20 नवंबर के मध्य की जाती है वैसे तो चैन की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक माना जाता है इस समय चने की खेती करने के लिए प्रति हेक्टेयर में लगभग 60 किलो बीज की आवश्यकता होती है |

चने की फसल को कितने दिनों के अंतराल में पानी की आवश्यकता होती है ?

सिंचित क्षेत्र में चने की खेती के लिए तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है बुवाई से पहले प्रयोग करके फसल की बुवाई करना चाहिए इसके पश्चात फसल की बुराई करने के लिए बुवाई के 30 से 35 दिन बाद पहले से चाहिए करना चाहिए और 70 से 80 दिन बाद दूसरी सिंचाई करना चाहिए और अंतिम सिंचाई 105 से 110 दोनों के पश्चात करना चाहिए |

चने की खेती ( Chana Ki Kheti )के लिए बीज दर क्या होती है ?

देसी किस्म के बीज की बुवाई के लिए 60 से 70 किलो प्रति हेक्टेयर होती है बड़े बीज़ या काबुली चने किस्म के लिए बीज दर 75 से 80 किलो प्रति हेक्टेयर होती है |