हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको हल्दी की खेती के बारे में बताएंगे यदि आप भी कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) कैसे करे
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हमारे देश के 70% से भी अधिक लोग खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं आज के इस समय में किसान पारंपरिक खेती करने के साथ-साथ अपने आय में वृद्धि करने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं आज हम आप लोगों को कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) के बारे में बताएंगे जिसकी खेती करके आप काफी अधिक मुनाफा कमा सकते है कुसुम एक ऐसा फसल है जिसकी खेती आप वहां भी कर सकते हैं जहां पर सूखा पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है कुसुम के पौधे में अत्यधिक गर्मी सहने की क्षमता होती है यही कारण है कि अधिक गर्म क्षेत्र में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है |
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कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्य ( Major states For Kusum Ki Kheti )
भारत में कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करने वाले प्रमुख राज्य निम्नलिखित में जैसे महाराष्ट्र कर्नाटक गुजरात आंध्र प्रदेश उड़ीसा उत्तर प्रदेश और बिहार इत्यादि क्षेत्रों में बहुत बड़े पैमाने पर कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) की जाती है भारत में मुख्य रूप से कुसुम के फल के बीजों से निकले तेल का उपयोग ज्यादातर खाना बनाने में किया जाता है
कुसुम फल में उपस्थित औषधीय गुण ( Medicinal properties present in Safflower fruit )
कुसुम फल में विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं कुसुम के फल,बीज ,छिलका ,पत्ती, पंखुड़ियां ,तेल और शरबत सभी का उपयोग औषधीय के रूप में किया जाता है और यदि आप अपने भोजन में कुसुम के तेल का उपयोग करते हैं तो भोजन में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है
- कुसुम फल के बीजों से निकले तेल का उपयोग सर दर्द को दूर करने के लिए भी किया जाता है |
- कुसुम का फल डायबिटिक मरीज के लिए काफी अच्छा माना जाता है |
- कुसुम का फल खाने से कान दर्द में भी आराम मिलता है |
- कुसुम का फल खाने से अल्सर जैसे बीमारी को ठीक किया जा सकता है |
- जोड़ों में होने वाले दर्द को दूर करने के लिए कुसुम फल का उपयोग किया जाता है |
- चेहरे पर निखार बनाए रखने के लिए कुसुम फल का उपयोग करना चाहिए |
- कुसुम फल का उपयोग करने से कैंसर जैसी बीमारी को भी ठीक किया जा सकता है |
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कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु ( Suitable soil and climate for safflower cultivation in India )
कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करने के लिए कम से कम 15 डिग्री का तापमान होना आवश्यक है और यदि आप इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको 20 से 25 डिग्री तक के तापमान में इसकी खेती करना होगा और यदि हम कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) के लिए उपयुक्त मिट्टी की बात करें तो इसके लिए काली भूमि से लेकर भारी काली भूमि की मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है और मिट्टी का पीएच मान कम से कम 5 से 7 होना चाहिए
कुसुम के बीजों की बुवाई का समय ( Sowing time of safflower seeds )
कुसुम की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय सितंबर महीने के अंत तक और अक्टूबर महीने के प्रथम सप्ताह तक किया जाता है
कुसुम की खेती के लिए उन्नत के किस्मे ( Improved varieties for safflower Farming in India )
कुसुम की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्म का चयन करना काफी आवश्यक होता है |
के 65 किस्म :-
कुसुम फसल किया किस्म एक ऐसी प्रजाति है जो 180 से 190 दिन में पककर तैयार हो जाती है इसके बीजों में तेल की मात्रा 30 से 35% तक पाई जाती है और इस किस्म का उत्पादन 1 हेक्टेयर में 15 से 16 कुंतल तक प्राप्त होता है
मालवीय कुसुम 305 किस्म :-
कुसुम के यह उन्नत किस्म जो बुवाई के लगभग 155 से 165 दिन में टक्कर तैयार हो जाती है इस किस में तेल की मात्रा 37% तक पाए जाते हैं
ए 300 किस्म :-
कुसुम कि यह किस्म बुवाई के 155 से 165 दिनों में पक्कर तैयार हो जाती है इस किस्म की पैदावार 9 से 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है इस किस-किस में लगने वाले फूल के रंग पीले होते हैं तथा बीज़ माध्यम आकार एवं सफेद रंग के होते हैं इसके बीजों में 31.7% तक तेल की मात्रा पाई जाती है
इसके अलावा भी कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करने के लिए विभिन्न प्रकार की किस्म उपलब्ध हैं जो की निम्नलिखित है जैसे जेएसएफ-1, जेएसएफ-7, पी.बी.एन.एस-40 आदि |
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कुसुम की खेती के लिए खेत की तैयारी ( Field preparation for safflower cultivation )
कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छा तरीके से तैयार करना चाहिए इसके लिए आपको खेती मिट्टी को भुरभुरी बनाने की आवश्यकता है होती है इसके लिए सबसे पहले आपको मैट्रिक पलटने वाले हाल से खेत की जुताई करनी चाहिए इसके बाद दो से तीन जुटा देसी हर या कल्टीवेटर के माध्यम से करना चाहिए जुताई करने के बाद खेतों में नमी को बनाए रखने के लिए खेत समतल करने वाले पाटा की सहायता से खेत को समतल कर लेना चाहिए
कुसुम फसल की बुवाई ( Safflower crop sowing )
कुसुम की खेती ( kusum ki kheti )करते समय एक हेक्टेयर खेत में 10 किलोग्राम कुसुम का बीज का उपयोग करना चाहिए बुवाई करते समय कतर से कतर के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर या डेढ़ फुट रखना चाहिए और पौधों से पौधों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर या 9 इंच रखना आवश्यक होता है
कुसुम की खेती के लिए प्रयुक्त खाद और उर्वरक की मात्रा ( Amount of manure and fertilizer used for safflower cultivation )
जहां पर सिंचाई के लिए उचित साधन उपलब्ध न हो वहां पर नाइट्रोजन 40 किलोग्राम फास्फोरस 45 किलोग्राम और पोटाश 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में डाल देना चाहिए और जिन खेतों में सिंचाई का उपयुक्त साधन है वहां पर नाइट्रोजन 65 किलोग्राम फास्फोरस 45 किलोग्राम और पोटाश 25 किलोग्राम की मात्रा का उपयोग प्रति हेक्टेयर में कर देना चाहिए इसके अलावा खेत में 2 साल के समय अंतराल पर 5 से 6 तन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई करने से पहले खेतों में डाल देना चाहिए
कुसुम फसल की सिंचाई ( irrigation of safflower crop )
कुसमी एक ऐसा फसल है जिसको 90 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है कुसुम की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है इसकी फसल अवधि में एक से दो बार हल्के सिंचाई की जरूरत पड़ती है पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 50 दिनों बाद और दूसरी सिंचाई पचासी से 90 दोनों के अंतराल पर कर देनी चाहिए कुसुम के पौधों में फूल निकलने की अवस्था में सिंचाई नहीं करना चाहिए
कुसुम की खेती की निराई गुड़ाई ( Weeding and weeding of safflower cultivation )
कुसुम की खेती ( kusum ki kheti ) करते समय कुशल के फसल में काम से कम एक बार डोरा अवश्य चलना चाहिए तथा खरपतवार होने की स्थिति में एक से दो बार आवश्यकता के अनुसार हाथ से निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए निराई गुड़ाई से बी के अंकुरण होने के 15 से 20 दिनों के बाद करना चाहिए
कुसुम फसल की कटाई और उत्पादन ( Safflower harvesting and production )
कुसुम के पौधों में कांटे लगे होते हैं इसलिए इसकी कटाई करते समय हाथों में दस्ताने पहनकर सावधानीपूर्वक कटाई करना चाहिए और यदि हम बात करें इसके उत्पादन की तो इसका उत्पादन एक हेक्टेयर खेत में 10 से 15 कुंतल तक होती है उत्पादन की मात्रा कुसुम के बीजों की किस्म पर निर्भर करता है
सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
कुसुम की खेती ( Kusum Ki Kheti ) यदि आप उसे समय करते हैं जिस समय सोयाबीन की खेती की जाती है तो कुसुम फसल को बोने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर महीने का अंत तक की जाती है और यदि आप खरीफ में कोई भी फसल नहीं लगे तो सितंबर के अंत से अक्टूबर महीने के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल की खेती सफलतापूर्वक किया जा सकता है |
कुसुम के पुष्प और बीजों का तेल एडिबल मिल बनाने के काम में आता है इसके अलावा सौंदर्य उत्पादन बनाने मसाले तथा आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में भी कुसुम के पुष्प और बीजों का उपयोग किया जाता है |
कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार किसानों को 45 फीसदी तक सब्सिडी प्रदान करती है माही राज्य सरकार भी अलग से सब्सिडी देती है हरियाणा सरकार इस योजना के अंतर्गत 30 फीसदी सब्सिडी देती है इसका मतलब यह है कि हरियाणा के किसानों को भी इस योजना के तहत 45 फ़ीसदी की सब्सिडी दी जाती है |