लौकी का वैज्ञानिक नाम लागेनारिअ सिसरारीअ (Lagenaria Siceraria) है। लौकी को अंग्रेजी में कालबस (Calabash) कहते हैं। लौकी एक प्रकार की सब्जी है। जिससे हम कद्दू भी कहते हैं। लौकी का पौधा लता होता है। जिस पर लौकी फलती है। लौकी के जूस में 96% पानी होता है ।लौकी का सेवन करने से कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं ।लौकी में कई प्रकार के विटामिंस पाए जाती है। जैसे विटामिन ए, विटामिन बी ,विटामिन सी, विटामिन डी, विटामिन ई, विटामिन के करीब सारे ही विटामिंस पाए जाते हैं। लौकी के जूस में सोडियम, मैग्नीस ,आयरन, मैग्नीशियम, कार्बोहाइड्रेट मिलता है ।लौकी में कैलोरी बहुत कम होती है । लौकी के एक कब जूस में 12 ग्राम कैलोरी होती है। और 1 ग्राम फैट होता है । फैट ना के बराबर होता है। लौकी दो प्रकार की होती है। गोल तथा लंबे बेलनाकार।
लौकी की किस्में (प्रजातियां)
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पंजाब कोमल- लौकी के इस किस्म को वर्षा ऋतु में लगाया जाए ।तो बहुत ही उपयोगी एवं अच्छी उपज होती है ।इसके उपज 75 से 80 क्विंटल प्रति एकड़ होता है ।यह हरे लंबे कोमल होते है
आजाद नूतन- यह किस्म काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है। यह ऊपर 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। इसकी बीज की बुवाई के 70 से 75 दिन बाद ही फल देना आरंभ कर देती है।
पुष्पा नवीन- यह किसी अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी तैयार हो जाते हैं ।या किस छोटे लंबे बेलनाकार होते हैं। और हरे रंग का होता है। इसकी उपज 80 से 85 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
पूसा संदेश –इस किस्म को दोनों ऋतुओ में बोया जा सकता है। इसके बीज की बुवाई के 60 से 65 दिनों बाद ही फल देना आरंभ कर देती है। इसके फल का औसत वजन 600 ग्राम होता है ।और यह 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
पूसा हाइब्रिड-3 – यह लौकी के शंकर किस्म के होते हैं ।इस किस्म को दोनों की ऋतुओ में बोया जा सकता है ।इसका फल हरे रंग का होता है ।तथा लंबे एवं सीधे होते हैं। इसके बीज की बुवाई के 60 से 65 दिनों बाद फल निकलने लगता है। यह 225 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।
कोयंबटूर-1 – लौकी के इस किस्म को जून व दिसंबर में बोया जाता है। यहां उपज के लिए लवणीय क्षारीय और सीमांत मिट्टियों में उगाने के लिए उपयुक्त होता है ।इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होता है।
नरेंद्र रेसिंग- यह किसी किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले काफी अच्छा है। इसमें फल हल्के रंग के होते हैं। बीज की बुवाई के बाद लगभग 60 दिन बाद पौधे में फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसमें प्रति हेक्टेयर 300 कुंटल की उत्पादन होती है।
अर्को बहार- लौकी के यह किस्म को गर्मी और बारिश के मौसम में लगाया जाता है ।इसका रंग हल्का हरा होता है ।और इसकी फसल सीधी व माध्यम की होती है। जिसमें एक फल का वजन लगभग 1 किलो का होता है ।इसके बुवाई के 50 से 60 दिन के अंतराल में ही फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाता है। यह लगभग 450 से 500 के प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
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प्रमुख किस्में
लौकी के फल आमतौर पर दो प्रकार की होती है। लंबी और गोल
लंबी किस्मे- पंजाब कोमल ,पंजाब लंबी ,शंकर पूछा ,मेघदूत, हिसार सिलेक्शन लंबी,पूसा समर प्रोलिफिक लौग आदि।
गोल किसने- पूसा समर प्रोलिफिक राउंड ,शंकर पूसा मंजरी, पूसा संदेश ,हिसार सिलेक्शन लंबी आदि।
नवीनतम किस्में – कोयंबटूर-9, अर्का बहार, पंत शंकर लौकी -1, पूसा शंकर -3,नरेंद्र शंकर लौकी-4, आजाद नूतन प्रमुख है।
लौकी की खेती कब करें
लौकी की खेती ग्रीष्म कालीन तथा वर्षा कालीन दोनों ही ऋतु में की जाती है। जायद की खेती के लिए जनवरी से मार्च का महीना ,खरीद की खेती के लिए जून से जुलाई का महीना तथा रवि की खेती के लिए सितंबर से अक्टूबर का महीना है। इस समय लौकी की खेती करने से किसान भाइयों को अच्छा लाभ मिलता है।
लौकी की खेत को कैसे तैयार करें
लौकी की खेती दोमट तथा बनवाई मिट्टी में की जाती है। लौकी की खेती करने के लिए मिट्टी का P.H. मान 6 से 7 होना चाहिए ।लौकी के पौधे की रोपाई करने से पहले खेत को 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए ।जिस से खेत की सिंचाई करते समय पानी कहीं पर कम या ज्यादा ना है ।लौकी की खेती करने के लिए पुरानी गोबर की खाद डालकर जुदाई करवाना चाहिए ।उसके बाद खेत को पाटा की सहायता से बराबर कर लेना चाहिए ।उसके बाद क्यारियां बना ले क्यारियो के बीच में नाली बनाएं ।जिससे सिंचाई करने में कोई समस्या ना आए ।क्यारियों के बीच की दूरी लगभग 3 से 4 इंच होनी चाहिए। तथा चौड़ाई लगभग 10 से 12 इंच होना चाहिए ।और उन्हीं क्यारियों में गड्ढे बना ले ।प्रत्येक गड्ढे में लगभग 3 से 4 बीज की बुवाई करना चाहिए।
लौकी की खेती हेतु मानसून व जलवायु
लौकी की खेती के लिए मानसून गर्म वातावरण होना चाहिए। जिससे लौकी की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है ।लौकी की फसल खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाई जाती है ।बीज के अंकुरित के लिए उच्चतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए। और पौधे के विकास के लिए 32 से 36 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए। मिट्टी की नमी उपयुक्त मात्रा में हो और पीएच मान संतुलित मात्रा में हो।
लौकी के पौधे की रोपाई कैसे करें
लौकी के बीज को बोने पहले खेत में क्यारियां बना ले उसके बाद क्यारियों में हल्का पानी डाले हैं ।उसके बाद क्यारियों के बीच में बीज की रोपाई में प्रत्येक बीच के बीच में 2 से 3 फीट की दूरी होनी चाहिए। बीज को लगाने के बाद उसे मिट्टी से अच्छी तरह दवा देना चाहिए। 1 एकड़ जमीन में लगभग 2 किलो बीज की जरूरत होती है।
अगर आप पौधे की रोपाई करना चाहते हैं ।तो पौधे को खेत में लगाने के पहले नर्सरी में 20 से 25 दिन पहले बीज को तैयार कर लिया जाता है। उसके बाद खेत में पौधे की रोपाई की जाती है।
बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्र में लौकी के पौधे की रोपाई मार्च या अप्रैल के महीने में की जाती है। समतल खेत में लौकी की पौधे को किसी साहारे की जरूरत नहीं होती है। इसके पौधे जमीन में फैलते हैं ।मगर जमीन के ऊपर की खेती करने के लिए उसे सहारे की जरूरत होती है। जिसके लिए खेत में 10 से 12 फीट की दूरी पर बसों को काटकर जाल बनाकर तैयार कर लिया जाता है। जिससे लौकी के पौधे को चढ़ाया जा सके ।लौकी की इस विधि से खेती करने के लिए बारिश का मौसम होता है।
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लौकी के पौधे की सिंचाई
अगर लौकी के पौधे को रोपाई के रूप में की जाती है। तो पौधे के रोपाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई कर देना चाहिए ।बारिश के मौसम में जरूरत पड़े तभी पौधे की सिंचाई करना चाहिए ।बारिश के मौसम के बाद लौकी के पौधे की सिंचाई सप्ताह में लगभग एक बार करना चाहिए ।लौकी के पौधे को अधिक गर्मी के मौसम में सिंचाई आवश्यक जरूरी होता है ।इसलिए इन्हें 3 से 4 दिन के अंतराल में खेत की सिंचाई करते रहना चाहिए। जिससे पौधे में नमी बनी रहे। और जब पौधे पर फल लगने लगे। तब हल्की -हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जिससे अधिक मात्रा में फल प्राप्त हो ।और पौधे सूखे भी नहीं।
उर्वरक एवं खाद
लौकी की अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन ,फोटोस तथा पुरानी गोबर की खाद पुणे चाहिए । नाइट्रोजन कि आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देना चाहिए ।और एनपीके(NPK) के दो बोरे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालन चाहिए। जिसमें से एनपीके (NPK) एक बोरे को लौकी के पौधे के लिए तैयार की गई नालियों में डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दे। और दूसरे बोरे को आधा -आधा करके पौधे के सिंचाई के समय छिड़काव करें ।और थोड़ा( NPK) के बीच के रोपाई के 45 दिन बाद आधा बोरा डाले ।और लौकी के पौधे में फूल लगने के समय आधा बोरा पौधे में डालना चाहिए । खाद को समय समय पर खेत में छिड़काव करते रहना चाहिए। जिससे लौकी की पैदावार अच्छे से हो।
लौकी के पौधे की निराई गुड़ाई
खरीद के मौसम में जब सिंचाई की जाती है ।तब निराई गुड़ाई की जरूरत होती है ।सिंचाई के बाद फसल में काफी खरपतवार उग जाते हैं। रसायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाकलोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के के तुरंत बाद करना चाहिए ।खरपतवार को हो खुरपी की सहायता से बाहर निकालते हैं ।लौकी के पौधे की निराई 20 से 25 दिन के अंतराल कर देनी चाहिए ।लौकी की अच्छी पैदावार के लिए कम से कम दो से तीन बार अच्छी निराई गुड़ाई करके पौधों की जड़ों के नीचे मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए ।समय-समय पर खरपतवार निकालने पर लौकी के पौधे में जो फल लगता है ।वह सड़ता या बेकार नहीं है।
लौकी के फल पर लगने वाले कीट एवं रोग
लालाडी कीट – लौकी के फल पर जब 2 पत्ते निकलते हैं। तब यह कीट पत्तियों पर लगना शुरू हो जाते हैं। और किट पत्तियों तथा फूलों को खाना शुरू कर देते हैं ।और भूमि के अंदर पौधे की जड़ों को काटता है।
फल पर मक्खी- यह मक्खी खरीफ वाली फसल को अधिक हानि पहुंचाती है ।यह मक्खी फल में प्रवेश करती है और फल में ही अंडे देती है। अंडों से सुडी बाहर निकलती हैं ।और वह फलो को खराब कर देतीहैं।
मोजैक- यह रोग विषाणु के द्वारा होता है ।जिस कारण पत्तियों का बड़ना रुक जाता है ।और वह मुड़ जाते हैं ।तथा फल छोटे बनते हैं ।और उपज में कमी हो जाती है।
लाल भृंग – इस किट का रंग लाल होता है। जब लौकी की फसल अंकुरित होने लगती है ।और नई पत्तियां निकलने लगती है ।तब उनको खाकर छेद कर देती हैं ।जिससे लौकी की फसल नष्ट हो जाती है।
एंथ्रोकनोज- यार रोग बीज के कारण फैलता है। जो रोग कोलेटोट्राईकम स्पीशीज के द्वारा होता है ।इस रोग के कारण पत्तियां और फल पर लाल और काले धब्बे बन जाते हैं।
सफेद ग्रब– यह कीट भूमि के अंदर रहते हैं। जो पौधे के जड़ों को खाते हैं। जिसके कारण पौधे सूख जाते हैं। और लौकी की फसल खराब हो गई।
नियंत्रण- जब पौधे में फल लगने लगे तभी कीटों को रोकने के लिए कलोर साइरप प्रोफेनोफाॅल 2ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए ।दूसरा छिड़काव समस्या पर निर्भर करता है। लौकी के खेत को स्वास्थ्य एवं साफ सुथरा बनाए रखना चाहिए।
लौकी के फलों की तुड़ाई
लौकी के फलों की तुडाई तब करना चाहिए ।जब फल मुलायम अवस्था में हो ।फलों का वनज समूह पर निर्भर करता है। लौकी के फलों की तुडाई डंठल के पास से की जाती है ।डंठल को चाकू की सहायता से काटना चाहिए। फलों को 3 से 4 दिन के अंतराल में तोड़ना चाहिए। ताकि पौधों पर ज्यादा फल न लगे और वह ज्यादा कड़े ना ।हो मुलायम ही रहे।
लौकी से होने वाले फायदे
- लौकी का जूस(Gourd juice) पीने से ब्लड प्रेशर(Blood pressure) क्योर( Cures) हो जाता है।
- लौकी खाने से कैंसर( Prostate cancer) मे बहुत लाभदायक होता है।
- लौकी खाने से वजन (Weight)भी कम होता है।
- गर्मी (Summer)qजब लू लग जाता है तब लौकी का जूस पीने से राहत मिलती है।
- सुबह खाली पेट लौकी का जूस पीने से हमारे पाचन के लिए बहुत फायदा होता है
- लौकी का जूस खाली पेट सेवन करने से हमारा ब्लड प्रेशर (Blood pressure)नियंत्रण रहता है।
- रोज सुबह खाली पेट लौकी का जूस पीने से डायबिटीज मरीजों के लिए फायदेमंद होता है ।
- रोज एक गिलास लोकी के रस का सेवन करने से पेशाब में जलन से आराम मिलता है।
- लौकी का जूस पीने से अन्य बीमारियों में बहुत फायदेमंद होता है जैसे लीवर में सूजन, पीलिया, एसिडिटी, हीमोग्लोबिन, तनाव, हार्ट अटैक इत्यादि।
- लौकी के जूस में ढेर सारे विटामिंस, पोटैशियम और आयरन के गुण पाए जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
- लौकी का जूस कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है ।और हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।
लौकी से होने वाले नुकसान
- अगर आप लौकी का जूस पी रहे हैं ।तो लौकी के जूस के साथ अन्य सब्जियों के जूस को ना मिलाएं। वरना आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है।
- यदि लौकी का पहला टुकड़ा स्वाद में कड़वा लगे। तो उसका जूस कभी न पिए ।क्योंकि लौकी के नुकसान भी हो सकते हैं।
- लौकी के जूस का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए ।क्योंकि अधिक सेवन करने से दस्त ,उल्टी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।
- लौकी का सेवन सामान्य मात्रा में ही करें। क्योंकि डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के स्तर असामान्य रूप से घट सकता है ।और घटने के कारण बेहोशी ,चक्कर ,आंखों के सामने अंधेरा छा जाना जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।
- लौकी की खेती कैसे करे और इसके हाइब्रिड बीज