Litchi Ki Kheti – लीची की खेती से 12 से 15 लाख प्रति एकड़ की कमाई

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपकोलीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti )

Table of Contents

भारत को लीची का सबसे बड़ा उत्पादक देश कहा जाता है आज भी भारत में लगभग 1 लाख हेक्टेयर जमीन पर लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) करके लगभग 8 लाख टन से भी अधिक पैदावार की जा रही है शुरुआत में किसी की खेती जम्मू कश्मीर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) की जाती थी परंतु आज बिहार पश्चिम बंगाल ,त्रिपुरा ,छत्तीसगढ़ ,उत्तरांचल ,उड़ीसा ,हरियाणा तथा पंजाब के अतिरिक्त 13 राज्य में लीची का बंपर उत्पादन किया जाता है |

Litchi Ki Kheti

लीची की व्यावसायिक खेती ( commercial farming )करने पर किसानों को बहुत अधिक फायदा प्राप्त होगा क्योंकि लीची से जैम शरबत नेक्टर और कार्बोनेटेड डिस भी तैयार किए जाते हैं जिनका बाजार में काफी अधिक मांग होता है यही कारण है कि किसान लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) करके काफी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं |

लीची में उपस्थित पोषक तत्व और विटामिन ( Nutrients and vitamins present in litchi )

लीची को पानी का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। लीची में विटामिन सी, विटामिन बी6, नियासिन, राइबोफ्लेविन, फोलेट, तांबा, पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्निशियम और मैग्नीज जैसे खनिज पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर और पेट को ठंडक प्रदान करते है। लीची के सेवन करने से लीची में उपस्थित पोषक तत्व इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में सहायक होते है |

लीची खाने के फायदे (Benefits of eating litchi )

Litchi Ki Kheti

  • प्रतिदिन लीची का सेवन करने से डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं उत्पन्न होती है |
  • लीची में विटामिन सी बीटा कैरोटीन नियासिन राइबोफ्लेविन और फोलेट की भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है लीची खाने से हमारा पाचन तंत्र भी दुरुस्त रहता है |
  • लीची में फाइबर की अच्छी मात्रा उपलब्ध होने के कारण यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है |
  • गर्मी के समय में लीची का सेवन करने से उल्टी दस्त की समस्या नहीं होती है |

लीची के अधिक सेवन से होने वाला नुकसान ( Disadvantages of Litchi )

  • लीची का अधिक मात्रा में सेवन करने से मोटापा बढ़ता है |
  • लीची का सेवन अधिक मात्रा में करने से थायराइड की समस्या भी बढ़ जाती है |
  • गठिया रोग से पीड़ित मरीजों को लीची का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए |
  • लीची की तासीर गर्म होती है जिस कारण अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से गले में खराश और दर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है |

लीची की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी ( Suitable soil for litchi ki kheti )

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) लीची के किस्म के आधार पर अलग-अलग प्रकार के मिट्टी में उगाया जा सकता है यदि आप लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) करके लीची की अच्छी पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं तो इसकी खेती अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ भूमि मे करें भूमि का पीएच मान 7.5 से 8 के मध्य होना चाहिए इससे अधिक पीएच मान या नमक वाली मिट्टी में लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) नहीं करना चाहिए |

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लीची की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ( Suitable climate for Litchi Cultivation in India)

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) करने के लिए समशीतोष्ण जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त होता है समशीतोष्ण जलवायु में लीची की पैदावार अच्छी प्राप्त होती है जनवरी-फरवरी के महीने में मौसम साफ रहने पर तापमान वृद्धि एवं शुष्क जलवायु में लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) आसानी से की जा सकती है इस समय मंजर लगते हैं जिस कारण से लीची के पौधे में फूल एवं फल ज्यादा मात्रा में आते हैं अप्रैल में में वातावरण में सामान्य आद्रता रहने से फलों में गुर्दे का विकास एवं गुणवत्ता में सुधार होता है यदि फल के पटे समय वर्षा हो जाती है तो फलों के रंग पर प्रभाव पड़ता है |

लीची की खेती के लिए प्रसिद्ध किस्में ( Famous varieties for litchi cultivation )

मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर लीची की विभिन्न प्रकार की  किस्मे उपलब्ध हैं |

कलकतिया किस्म ( Calcuttia variety )

लीची के इस किस्म के पौधों में लगने वाले फल बड़े और रंग में आकर्षित होते हैं इस किस्म के फलों की तुड़ाई जून महीने के अंत तक की जा सकती है इस किस्म में लगने वाले फल घने गुच्छे और अच्छे गुणवत्ता वाले होते हैं इनके फल बहुत ही ज्यादा रसेदार होते हैं |

देहरादून किस्म (Dehradun Variety )

लीची की याद में बहुत ही जल्दी पक कर तैयार हो जाती है और लगातार फल देता है इनके फलों की पढ़ाई जून महीने के दूसरे सप्ताह में कर लेनी चाहिए उन में लगने वाले फलों का रंग बहुत ही आकर्षक होता है परंतु इसमें बहुत ही जल्दी दरें पढ़ाने लगते हैं उनके फल मीठे नरम रस भरे और बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं |

बीज रहित पछेती किस्म ( Seedless Late Variety )

इस किस्म में लगने वाले फल गुदे  से भरपूर होते हैं इनका रंग गहरा लाल और स्वाद में बहुत ही ज्यादा मीठा होता है इसके फसलों की कटाई जून के तीसरे सप्ताह में कर ली जाती है |

इसके अलावा भी विभिन्न प्रकार के लीची की किस्म उपलब्ध हैं जो की निम्नलिखित है जैसे शाही, त्रिकोलिया, अझौली, ग्रीन, देशी, रोज सेंटेड,डी-रोज,अर्ली बेदाना, स्वर्ण, चाइना, पूर्वी, कसबा आदि विभिन प्रकार की उन्नत किस्में हैं।

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लीची की खेती के लिए खेत की तैयारी ( Preparation of field for litchi cultivation )

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) के लिए खेत को तैयार करने के लिए दो से तीन बार तिरछी जुटा कर लेनी चाहिए और फिर पाटा चला कर खेत को अच्छे तरीके से समतल करना चाहिए जिससे खेत में जलभराव की समस्या ना उत्पन्न हो और पैदावार अच्छी प्राप्त हो |

लीची के बीजों की बुआई ( Sowing of litchi seeds )

Litchi Ki Kheti

बुवाई ( Sowing )

लीची के बीजों की बुवाई मानसून के तुरंत बाद अगस्त से सितंबर के महीने में कर देना चाहिए कई बार तो पंजाब में इसकी खेती नवंबर महीने तक भी की जाती है लीजिए की बुवाई के लिए 2 से 3 साल पुराना पौधा लेना चाहिए |

दूरी ( Distance )

लीची के बीजों की बुवाई करने के लिए पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 8 से 10 मीटर और पौधों से पौधों के बीच की दूरी 8 से 10 मी रखा जाता है |

बुवाई का ढग ( Sowing Method )

इसकी बुवाई सीधे बीज लगाकर कर सकते हैं यदि सीधे बी लगाकर इसकी बुवाई नहीं करना चाहते हैं तो पनीरी विधि का प्रयोग करके बीजों की बुवाई कर सकते हैं |

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लीची की खेती में प्रयुक्त खाद और उर्वरक की मात्रा ( Amount of manure and fertilizer used in litchi cultivation )

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) में जब लीची का पौधा एक से तीन वर्ष का हो जाए तो 15 से 20 किलो सड़ी हुई रूडी के खाद के साथ 500 ग्राम यूरिया सिंगल सुपर फास्फेट 200 से 600 ग्राम और म्युरेट ऑफ पोटाश 70 से 150 ग्राम प्रति वृक्ष पर डाल देना चाहिए और जब लीची का पौधा 4 से 5 साल का हो जाए तो खाद की मात्रा को बढ़ाकर 30 से 40 किलोग्राम यूरिया 600 से 1000 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 200 से 300 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष पर डाल देना चाहिए जैसे-जैसे पौधों का विकास होता जाए वैसे-वैसे खाद और उर्वरक की मात्रा को बढ़ाते रहना चाहिए |

लीची के पौधों की सिंचाई ( Irrigation of litchi plants )

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) में लीची के पौधों की शुरुआती विकास के लिए सिंचाई करना बहुत अधिक जरूरी होता है गर्मी के समय में नए पौधों को तीन से कर बार सिंचाई की आवश्यकता होती है और पुराने पौधों को 8 से 9 दिन में एक बार पानी की आवश्यकता होती है यदि आप लीची के पौधों में कार्य का प्रयोग करते हैं तो हाथ डालने के बाद एक बार सिंचाई अवश्य कर देना चाहिए |

फसलों को कोहरे से बचाने के लिए नवंबर के अंत और दिसंबर के पहले महीने में पानी दें फल बनाने के समय सिंचाई बहुत जरूरी होती है इस दौरान सप्ताह में दो से तीन बार सिंचाई करें ऐसा करने से लीची के फलों में दरारें नहीं पड़ती हैं और फलों का विकास अच्छा होता है |

लीची के फसल की कटाई ( Litchi harvest )

जब लीची के फल हरे रंग से गुलाबी रंग के होने लगते हैं और फल की सतह समतल होती है तो लीची के फसलों की कटाई कर ले जाती है फसलों की कटाई बच्चों के रूप में की जाती है फलों की कटाई करने के पश्चात कुछ टहनियां और पेट भी तोड़ना चाहिए इससे फल ज्यादा लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है घरेलू बाजार में लीची को बेचने के लिए इसकी कटाई पूरी तरह से पकने के बाद ही करनी चाहिए |

लीची की खेती से प्राप्त उत्पादन और लाभ ( Production and benefits obtained from litchi cultivation )

लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) से शुरुआत में लीची के पौधों से कम मात्रा में उत्पादन प्राप्त होता है परंतु जैसे-जैसे पौधों का आकार बढ़ता है फसल का उत्पादन भी बढ़ता है पूर्ण रूप से विकसित पौधों से 80 से 100 किलोग्राम तक फलों का उत्पादन प्राप्त होता है 1 हेक्टेयर खेत में लगभग 170 पौधे को लगा सकते हैं लीची का बाजरी भाव 65 से 70 रुपए प्रति किलो होता है इस हिसाब से किसान भाई लीची की खेती ( Litchi Ki Kheti ) से एक बार की पैदावार में 12 से 15 लाख की कमाई कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं |

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न 

भारत के किस राज्य में लीची का अत्यधिक उत्पादन किया जाता है ?

भारत के बिहार राज्य में 40% स्थान मे लीची का उत्पादन किया जाता है इसके पश्चात पश्चिम बंगाल में 12% तथा झारखंड में 10% स्थान पर लीची का उत्पादन किया जाता है |

लीची की खेती के लिए कौन सा शहर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है ?

लीची की खेती मुख्य रूप से उतरी बिहार देहरादून की घाटी उत्तर प्रदेश के तरई क्षेत्र तथा झारखंड प्रदेश के कुछ क्षेत्र प्रसिद्ध है |

लीची के खेती के लिए पेड़ कौन से महीने में लगाए जाते हैं ?

जनवरी से फरवरी माह मे मौसम साफ रहने पर जब तापमान में वृद्धि एवं शुष्क जलवायु में इसकी खेती कीजिए जाती है इससे ज्यादा मंजर लगते हैं जिस कारण से फूल और फल अत्यधिक मात्रा में लगते हैं अप्रैल से में में वातावरण में सामान्य आद्रता रहने से फलों में गुदो का विकास एवं गुणवत्ता में भी सुधार होता है |

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