Haldi Ki Kheti : हल्दी की खेती करने का जाने सीक्रेट तरीका

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti )

Table of Contents

हल्दी एक प्रकार का  उष्णकटिबंधीय मसाला होता है समान्यता हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) कंद के रूप में की जाती है। हल्दी का उपयोग मसाला, रंग-रोगन, दवा और  सौन्दर्य प्रसाधन वाले क्षेत्रो में किया जाता है। इसके कंद से पीला रंग का पदार्थ- कुर्कुमीन व एक उच्च उड़नशील तैलीय पदार्थ-टर्मेरॉल का उत्पादन प्राप्त होता है। हल्दी के कंद में उच्च मात्रा में उर्जा (कार्बोहाइड्रेट के रूप में ) व खनिज उपस्थित होते हैं। हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में   हल्दी की उपज पर भारत का पूरा अधिकार है। हमारे देश का मध्य व दक्षिण का क्षेत्र एवं असम इसके उत्पादन अत्याधिक मात्रा में किया जाता है।

Haldi Ki Kheti

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ( Suitable climate for Turmeric Cultivation In India )

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) के लिए अच्छी बारिश वाले गर्म जलवायु व आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र इसके उत्पादन के लिए योग्य होते हैं। हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) लगभग 1200 मीटर उंचाई वाले  क्षेत्रो  में सफलता पूर्वक की जा सकती है।

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable soil for

Haldi Ki Kheti )

यदि आप हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) से अच्छी उपज प्राप्त करना चाहते है तो इसकी खेती दोमट अथवा काली मिट्टी में करे है। तथा कम्पोस्ट देकर कम उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में भी हल्दी  की फसल ( haldi ki fasal ) कीअच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। और यह भी ध्यान रखे की मिट्टी क्षारीय ना हो क्यूकि क्षारीय मिट्टी हल्दी के कंद के सड़न का कारण बन सकती है ऐसे क्षेत्र में कम-कम-से दो वर्ष तक फसल विन्यास पद्धति अपनाना चाहिए।

हल्दी की खेती के लिए उन्नत किस्म ( Improved variety for turmeric cultivation )

हल्दी की फसल तैयार होने में लगे समय के आधार पर इसकी किस्मों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।

1. हल्दी की यह किस्म कम समय में तैयार होने वाली ‘कस्तुरी’ वर्ग की किस्में – रसोई में उपयोगी, 7 महीने में फसल तैयार, उपज कम। जैसे-कस्तुरी पसुंतु

2. हल्दी की यह किस्म मध्यम समय में तैयार होने वाली केसरी वर्ग की किस्में – 8 महीने में तैयार, अच्छी उपज, अच्छे गुणों वाले कंद। जैसे-केसरी, अम्रुथापानी, कोठापेटा।

3. हल्दी की यह किस्म लंबी अवधि वाली किस्में – 9 महीने में तैयार, सबसे अधिक उपज, गुणों में सर्वेश्रेष्ठ। जैसे दुग्गीराला, तेकुरपेट, मिदकुर, अरमुर

अन्य किस्में

मीठापुर, राजेन्द्र सोनिया, सुगंधम, सुदर्शना, रशिम व मेघा हल्दी-1।

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 हल्दी के बीजों की रोपाई ( Planting Turmeric Seeds )

हल्दी के बीजों की रोपाई करने के लिए भारी मिट्टी वाले क्षेत्र में खेत की अच्छी तरह जुताई करके  नाली-मेढ़ पद्धति में खेत तैयार कर लेते हैं। हल्की मिट्टी वाले क्षेत्र में यदि आप समतल जमीन में ही हल्दी के कंदों अथवा उत्तक संवर्धित पौधों की रोपाई की जा सकती है। इसके लिए क्यारियों का आकार आप अपने अनुसार कर सकते है  इसकी रोपाई करने के लिए मातृ कंद अथवा नये कंद-दोनों का प्रयोग किया जा जाता है |

मातृ कंद 12 क्विंटल और नये कंद 9 किवंटल अथवा 95 हजार उत्तक संवर्धित पौधे प्रति एकड़ की दर से रोपाई की जाती है। इनके पौधों की रोपाई लाल मिट्टी वाले क्षेत्र में 6”x12” की दूरी पर तथा काली मिट्टी वलाए 6”x16” की दूरी पर करते हैं। 18” की दूरी पर बने मेढों पर 8” की दुरी पर भी रोपाई की जा सकती है।

हलदी के बीज रोपण का समय ( Turmeric seeds planting time )

कम समय में तैयार होने वाली हल्दी की किस्मों का रोपण मई महीने में करना चाहिए |

मध्यम समय में तैयार होने वाली हल्दी की किस्मों का रोपण जून के प्रारंभ में ही कर देना चाहिए |

लंबी अवधि वाले किस्मों हल्दी की किस्मों का रोपण जून-जुलाई महीने में कर देना चाहिए |

यदि पौधों की रोपाई देरी से करते है तो यह पौधों के विकास और उपज दोनों प्रभावित होते है हल्दी के बीज का रोपण करने से पहले डाईथेन एम-45 के 0.3% घोल से इसके कंदों को उपचारित कर लेना चाहिए जिससे कंदों में सडन की समस्या उत्पन्न नहीं होती है |

हल्दी की खेती में खाद की मात्रा ( Amount of fertilizer in turmeric cultivation )

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में कार्बिनक व रसायनिक खाद दोनों तरह के खाद प्रयोग कर सकते है |

1.कार्बनिक विधि ( Organic Method )

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में पूरे कम्पोस्ट का प्रयोग करते वक्त व खल्ली को कई बार में प्रयोग करना उचित अधिक उचित होता है |

2.रासायनिक विधि ( Chemical Method )

फास्फेट की पूरी, पोटाश की आधी या यूरिया की एक तिहाई मात्रा रोपाई के वक्त, एक तिहाई यूरिया के दो माह बाद तथा पोटाश की शेष आधा व यूरिया की लगभग 1/3 मात्रा रोपाई के लगभग 4-5 महीने बाद प्रयोग करना चाहिए |

हल्दी की खेती में पलवार के फायदे ( Benefits of mulching in turmeric cultivation )

Haldi Ki Kheti

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में सूखे पत्तों द्वारा  पलवार डालने से मिट्टी की नमी अधिक दिनों तक बनी रहती है तथा पलवार डालने से खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं।

अंत-सस्यन ( End-Crop )

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में 4 वर्ग मी. क्षेत्र में एक अरंडी के पौधों का रोपण करके हल्दी के खेतों में अर्द्धछाया और अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते है  और प्रत्येक दो पंक्ति हल्दी के बाद एक पंक्ति में मकई अथवा मिर्च की खेती भी करके अधिक मुनाफा कमा सकते है |

देखभाल (Care)

हल्दी के फसलों की देखभाल करने के लिए  प्रारंभिक अवस्था में प्रायः चार बार निकाई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रित किया जाता है |

हल्दी की सिंचाई ( Turmeric Irrigation )

हल्दी की सिचाई 6 से 7 दिनों में से बार करना पड़ता है भारी मिट्टी वाले क्षेत्र में पुरे फसल को तैयार होने में 20 बार सिचाई तथा हल्की मिट्टी वाले क्षेत्र में 30 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है |

हल्दी के पौधा में लगने वाले कीट तथा रोकथाम (Pests and prevention of turmeric plant )

कंद मक्खी ( Tuber Fly )

यह मक्खी हल्दी कंद के विकास कों काम कर देता है और कंद को सड़ा देता है। फोरट 10 जी के दाने कों 10 किली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करने से कंद मक्खी को नियंत्रित किया जा सकता है।

बारुथ कीड़े ( Gunpowder Worms )

ये कीड़े हल्दी के पत्तियों को खाकर नस्ट कर देते है इन कीड़ो कों नियंत्रित करने के लिए डाईमेथोएट या मिथाएल डेमेटॉन का 2 मिलि० प्रति लीटर पानी का घोल अथवा केल्थेन या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव कर दे |

हल्दी के पौधा में लगने वाले रोग (diseases of turmeric plant )

कुछ रोग इस फसल को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाते हैं वे हैं-

कंद सड़न रोग ( Tuber rot Disease )

हल्दी की सभी किस्में इस रोग से प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम उचित सस्यन विधि अथवा रसायनों द्वारा की जाती है। इस रोग से प्रभावित पौधों के ऊपरी भागों पर धब्बे दिखाई पड़ते है और अंत में पौधे सूख जाते है। इसकी रोकथाम हेतु प्रभावित क्षेत्र को खोदकर बौर्डियोक्स मिश्रण से उपचारित कर लेते हैं। कंद रोपण के समय कंदों को डाईथेन एम्-45 के 0.3% घोल से आधे घंटे के लिए उपचारित कर तब कंद का रोपण करें। कंद मक्खी को भी नियंत्रित करना चाहिए।

पर्णचित्ती पर्ण – झुलसन रोग ( Foliar Blight Disease )

हल्दी में यह रोग पत्तियों के विकास के समय में ही लगते है यह रोग पत्तों में धब्बों के रूप में विकसित होता है। और उत्पादन की मात्रा को काफी काम कर देता है इस रोग को नियंत्रित करने के लिए डाईथेन एम् – 45 के 0.3 % घोल 20 दिनों के अंतराल पर 3-4 बार करना चाहिए।

हल्दी के कंद को जमीन से निकालना (Digging Turmeric Tubers Out Of The Ground )

हल्दी के फसल कों तैयार होने में 7-9 का समय लगता है हल्दी के कंदों कों दो विधि से निकाला जा सकता है जोतकर अथवा खोदकर |

उपज ( Yield )

ताजा- 80-100 क्विंटल प्रति एकड़

क्योर्ड- 16-20 क्विंटल प्रति एकड़

क्योरिंग व सुखाना ( Curing and Drying )

यदि आप हल्दी का उपयोग व्यवसायिक रूप से सुखा हल्दी बनाने के लिए करना चाहते है तो हल्दी के कंदों को जमीन से निकालने के एक सप्ताह के अंदर उबाल लेना चाहिए। यही क्योरिंग है। यह दो प्रकार से किया जा सकता है।

घरेलू ( domestic )

मिट्टी अथवा लोहे के बर्तन में गाय के गोबर के घोल में उबालकर।

पादप प्रवर्धन में उत्तक संवर्धन का प्रयोग ( Use of tissue culture in plant propagation )

ज्यदातर हल्दी के कंद ही हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) के लिए प्रयोग किये जाते हैं। हल्दी के कंदों शीघ्र फैलाव के लिए कंद का प्रयोग के धीमी विधि है। इसकी कंदों में एक शिथिल काल की समस्या होती है जो अंकुरण के आड़े आता है। और यह  कंद सिर्फ वर्षा के समय में ही अंकुरित होते हैं। और इसके साथ – साथ ही एक कंद से अधिकतम 6-7 पौधे निकलते हैं।

हल्दी की खेती ( Haldi Ki Kheti ) में इस विधि के प्रयोग से अच्छी उपज वाले किस्मों के पौधे बड़े पैमाने पर तैयार कर सकते है और इस विधि में बिना कैलस बनाए सीधे तना उत्तक द्वारा हिस्से द्वारा विकसित व् नाडनौडा व अन्य द्वारा प्रमाणीकृत विधि का प्रयोग कर बड़े पैमाने पर पौधे तैयार करके उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है |

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न

हल्दी की बुवाई कौन से महीने में की जाती है ?

हल्दी की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून के मध्य का समय होता है हल्दी की बुवाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी लगभग 25 सेंटीमीटर रखना चाहिए |

भारत में हल्दी की खेती कौन-कौन से राज्य में की जाती है ?

भारत में हल्दी की लगभग 30 से अधिक किस्मो का उत्पादन किया जाता है हल्दी की खेती भारत के कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र तेलंगना कर्नाटक और तमिलनाडु में अधिक मात्रा में उगाई जाती है |

हल्दी को कब और कितनी मात्रा में लेना चाहिए ?

आयुर्वेद एक्सपर्ट में हमेशा यही सलाह देते हैं कि हल्दी को खाली पेट पानी में मिलाकर लेना चाहिए इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है |

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