सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) कैसे करे

Jimikand Ki Kheti: नमस्कार किसान भाइयों आज हम आप लोगों को अपने इस content के माध्यम से  सूरन की खेती कैसे करें सूरन की खेती  के लिए उपयुक्त जलवायु का चुनाव कैसे करें सूरन की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव कैसे करें सूरन कितने प्रकार का होता है सूरन की खेती का उपयुक्त समय क्या है कौन-कौन से खाद्य और उर्वरक का प्रयोग करना है सिंचाई निराई गुड़ाई कब करें और रोकथाम तथा उत्पादन आदि सभी आदि सभी चीजों के बारे में विस्तार से बताएंगे|

सूरन की खेती कैसे करे 

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सूरन एक प्रकार का औषधीय फसल होता है परंतु इसका उपयोग हमारे घरों में सब्जियों के रूप में किया जाता है सूरन का वैज्ञानिक नाम अमोर्फोफैलुस कम्पानुलातुस होता है जिसे भारत के लोग सूरन ओल और जिमीकंद के नाम से भी जानते हैं सूरन बहुत अधिक गर्म होती है लगातार इसका सेवन करने से खुजली की समस्या उत्पन्न होने का खतरा रहता है परंतु इस समय सूरन की कुछ ऐसी प्रजातियां भी उपलब्ध है जिन्हें आप लगातार भी खाएंगे तो खुजली की समस्या उत्पन्न नहीं होगी सूरन के फलों का विकास भूमि के अंदर ही होता है सूरन में औषधीय गुण होने के  कारण इसे सभी सब्जियों से अलग स्थान पर रखा जाता है

पहले सूरन की खेती सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर ही की जाती थी परंतु अब भारत  देश में कई किसान ऐसे हैं जो सूरन की खेती करके लाखों कमा रहे हैं सूरन में पोषक तत्व के साथ-साथ औषधीय गुण भी पाया जाता है जिस कारण से इसका उपयोग आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता है कार्बोहाइड्रेट कैल्शियम फास्फोरस खनिज जैसे विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व सूरन के फलों में उपलब्ध होते हैं सूरन का उपयोग करने से बवासीर, पेचिश, खूनी बवासीर, दमा, फेफड़ों की सूजन, रक्त विकार  जैसी विभिन्न प्रकार की बीमारियां जड़ से खत्म हो जाती है सूरन की खेती छायादार स्थान पर भी सफलतापूर्वक की जा सकती है|

सूरन की खेती (Suran Ki Kheti)के लिए उपयुक्त मिट्टी तथा जलवायु का चयन

अभी तक भारत के किसान सूरन की खेती करने के लिए कम महत्व वाले जमीन का उपयोग कर रहे थ सूरन की खेती करने के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी का चयन करना चाहिए इस तरह की मिट्टी में सूरन की खेती करने से इसके पौधे अच्छी तरह से विकसित हो पाते हैं और पैदावार अच्छी होती है परंतु यदि आप इसकी खेती जल भराव वाले भूमि करते हैं तो इसके पौधे विकसित नहीं हो पाते हैं और पैदावार कम होती है कन्द वाली फसलों का उत्पादन करने के लिए खेत की जुताई करने के बाद बार-बार पता लगाना चाहिए जिससे मिट्टी पूरी तरह से भुरभुरी हो जाए.

सूरन की खेती

इसके लिए खेत की जुताई करके कुछ दिनों तक ऐसे ही खुला छोड़ दे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाए और इसकी खेती के लिए 5 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी बुवाई के बाद बीजों के अंकुरण के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है यही कारण है कि सूरन की बुवाई अप्रैल से जून के महीने तक ही की जाती है जबकि पौधों के विकास के लिए अच्छी बारिश का होना अत्यधिक आवश्यक है|

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सूरन की उन्नत किस्मे

यदि आप भी Jimikand Ki Kheti करना चाहते हैं तो Suran Ki Kheti के लिए विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्मे उपलब्ध है जिन्हें उनकी गुणवत्ता पैदावार और उगने के मौसम के आधार पर तैयार किया गया है जैसे गजेंद्र, एम-15, संतरागाछी, संतरा गाची जैसी उन्नत किस्म उपलब्ध है अपने क्षेत्र के जलवायु के आधार पर ही आप सूरन के किस्मों का चयन करें|

1.गजेंद्र किस्म के पौधे

कृषि विज्ञान केंद्र सबलपुर द्वारा इस किस्म को तैयार किया गया है काम गर्मी वाले समय में इसके पौधे में फल लगते हैं इसे खाने से खुजली नहीं होती है गजेंद्र किस्म के पौधों को हल्के गर्मी के दिनों में उगाया जाता है इस प्रकार के पौधे में केवल एक ही फल निकलता है तथा इसके अंदर हल्के नारंगी रंग का गुदा पाया जाता है प्रति हेक्टेयर में लगभग 80 से 85 टन पैदावार होती है|

2.संतरागाछी किस्म के पौधे

संतरागाछी किस्म के एक ही पौधे में कई सारे फल पाए जाते हैं इन फलों की तासीर हल्का गर्म होती है हमें खाने से खुजली जैसी समस्या देखने को मिलती है इस फसल  की पैदावार लगभग 6 से 7 महीने में होना आरंभ हो जाता है इस किस्म की पैदावार 50 टन प्रति हेक्टेयर होती है|

3.एम-15 किस्म के पौधे

एम-15 दक्षिण भारत के स्थानीय किस में है इसे पद्या के नाम से जाना जाता है इसके फलों की तासीर भी कम गर्मी वाली होती है परंतु इसे खाने से किसी भी प्रकार की खुजली की समस्या उत्पन्न नहीं होती है इस प्रजाति में एक ही पौधे में एक ही फल प्राप्त होता है इसमें 80 टन की पैदावार प्रति हेक्टेयर में होती है|

सूरन की बुवाई और बीज उपचार

सूरन की बुवाई आलू की तरह की जाती है आलू को काटकर लगाया जाता है परंतु सूरन को आप पूरा ही लगा सकते है यदि आप सूरन को आलू की तरह काट कर लगाते है तो इसके लिए कटिंग वाले कन्दो के अंकुरित होने के लिए. कालिका आंखों का होना बहुत ही जरुरी होता  है सूरन की बुवाई करने से पहले उसका उपचार करना बहुत ही आवश्यक होता है उपचार करने के एमिसान 5 ग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन0. 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्द को 30 से 35 मिनट तक. भिगोकर रखने के बाद छाया में सुखाएं या फिर ताजी गोबर का गाढ़ा घोल बनाकर उसमें दो ग्राम कार्बोडाइजिम् पाउडर का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर कन्द को अच्छे से भिगो दे और फिर उसे छाया में अच्छी तरह से सुखाने के बाद ही लगाये |

Jimikand Ki Kheti का उपयुक्त समय क्या है

भारत में Suran Ki Kheti करने का सबसे उपयुक्त समय बारिश मौसम के पहले या बारिश मौसम के बाद होता है अप्रैल मई और जून का महीना भी सूरन की खेती के लिए उपयुक्त होता है परंतु यदि आप लोगों के पास सिंचाई का साधन उपलब्ध है तोआप सूरन की बुवाई मार्च महीने में भी कर सकते हैं|

Jimikand Ki Kheti में ध्यान रखने योग्य बातें

1.सूरन की बुवाई करने के बाद उसे पुआल या पत्तियों से ढंग दे
2.यह बहुत अच्छे उर्वरक का काम करता है
3.अंकुरण जल्दी प्राप्त करने के लिए मल्चिंग नहीं का उपयोग करें जिस खेत में नमी बनी रहती है
4.मल्चिंग विधि का उपयोग करने से खेतों में खरपतवार के काम होने के साथ-साथ पैदावार भी अच्छी होती है
5.खेतों में नमी को बरकरार रखने के लिए एक या दो बार हल्के सिंचाई अवश्य कर दें
6.बरसात के मौसम में सूरन के पौधों के पास जल को एकत्रित न होने दें
7.सूरन के साथ-साथ और अधिक मात्रा में कमाई करने के लिए आप उसके अंदर खाली स्थान में मेहंदी मूंग मक्का खीर लौकी कद्दू आदि      फसल की बुवाई कर सकते हैं

सूरन का बीज लगाने की विधि

सूरन की बुवाई करने के दो विधियां निम्नलिखित है पहले गड्ढा में दूसरा चौरस खेत में
गद्दा विधि द्वारा सूरन की बुवाई

 1.गड्ढा विधि द्वारा सूरन की बुवाई 

इस विधि द्वारा सूरन की बुवाई करने के लिए 75×75×30 सेंटीमीटर का गड्ढा खोदकर सूरन की बुवाई की जाती है बिजो का उपचार करने से पहले  उचित मात्रा में खाद  एवं उर्वरक को गड्ढे में डाल दिया जाता है सूरन की बुवाई के बाद मिट्टी को 15 सेंटीमीटर पिरामिड के आकार में ऊंचा कर दे सूरन के बीच की बुवाई इस तरह करते हैं ताकि सूरन में निकला कालिका युक्त भाग ऊपर की तरफ सीधा रहे इस प्रकार से गड्ढा विधि द्वारा सूरन की बुवाई की जाती है|

2.चौरस खेत में सूरन की बुवाई की विधि

सूरन की बुवाई करने से पहले गोबर की सड़ी हुई खाद्य रासायनिक उर्वरक पोटाश का एक तिहाई भाग एवं फास्फोरस की पूर्ण मात्रा में  मिलकर खेतों में डाल दिया जाता है इसके बाद खेत की जुताई अच्छे से कर दे इसके बाद सूरन के बीज़ों के आकार के अनुसार 80 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर कुदाल की सहायता से 25 से 30 सेंटीमीटर की गहरी नाली बनाकर सूरन की बुवाई कर दे इसके बाद नालियों में मिट्टी डालकर उसे अच्छे तरीके से ढक दे

Jimikand Ki Kheti

बीजों की दर 250 ग्राम वाले कांड को 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाने पर 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है और यदि 500 ग्राम सूरन के बीच को 75 सेंटीमीटर की दूरी में लगाने पर 80 कुंतल प्रति हेक्टेयर के पैदावार प्राप्त होती है और यदि ढाई सौ ग्राम सूरन के बीच को 1 मीटर की दूरी पर लगाया जाए तो 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर कि दर से पैदावार होती है और यदि इस स्थान पर हम 500 ग्राम वाले सूरन के बीज को 1 मीटर की दूरी पर लगे तो 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर कि दर से पैदावार होती है|

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सूरन की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त खाद एवं उर्वरक की मात्रा

यदि आप लोग भी सूरन की अच्छी पैदावार करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने खेत को अच्छी तरह से तैयार करना होगा खेतों को तैयार करने के लिए 15 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद फास्फोरस 60 किलोग्राम पोटाश 80 किलोग्राम के अनुपात को प्रति हेक्टेयर की मात्रा में डालकर खेतों की तिरछी जुताई करें ताकि खाद अच्छे से मिल जाए. इसके बाद खेतों में पानी भरकर प्लेव कर देना चाहिए. और फिर कुछ दिनों के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह से सुख जाए तो कल्टीवेटर से जुताई कर देना चाहिए|

1.मल्चिंग

सूरन की बुवाई करने के बाद उसे पुआल तथा शीशम की पत्तियों से अच्छी तरीके से ढक दे जिससे सूरन के बीज़ बहुत जल्दी अंकुरित हो जाते हैं जिससे अंकुरण का प्रभाव भी नम नहीं पड़ता है इस विधि का प्रयोग करने से खरपतवार की समस्या उत्पन्न नहीं होती है|

2.सिंचाई

सूरन की फसल को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिए रोपाई के तुरंत बाद ही सिंचाई कर देना चाहिए जब तक बीज अंकुरित नहीं हो जाते तब तक खेतों में नमी को बनाए रखें जिसके लिए हमें एक सप्ताह में दो बार सिंचाई करना चाहिए सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन में एक बार इसी सिंचाई करें वही बारिश के मौसम में आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करें|

3.सूरन के खेतों की निराई गुड़ाई

Jimikand Ki Kheti करने के लिए सामान्य रूप से खरपतवारों को नियंत्रित करना अति आवश्यक होता है इसके लिए बीजों की बुवाई करने के लगभग 15 से 20 दिन बाद प्राकृतिक तरीके से निराई गुड़ाई करना चाहिए सूरन के पौधों को लगभग चार से पांच बार करना चाहिए|

सूरन के पौधों में लगने वाला रोग एवं उसकी रोकथाम

1.सूरन के पौधों मेंभृंग के रोग

इस तरह का रोग सूरन कि शाखों एवं पत्तियों में देखने को मिलता है यह एक प्रकार से कीट रोग होता है जो शाखा एवं पत्तियों को खाकर नष्ट कर देते हैं जिस कारण से सूरन का पौधा खराब होकर गिर जाता है जिस कारण से यह पैदावार को भी अधिक प्रभावित कर देता है पौधों को इस रोग से बचने के लिए हमें नीम के कड़े को माइक्रोजाइम के साथ मिश्रित करके छिड़काव कर देना चाहिए छिड़काव कर देने से यह रोग समाप्त हो जाता है|

2.सूरन के पौधों में लगने वाला झुलसा रोग

इस तरह का रोग जीवाणु जनित रोग होता है यह नवंबर दिसंबर महीने में पत्तियां पर आक्रमण करता है जिस कारण से पत्तियां हल्के भूरे रंग की दिखाई देने लगते हैं इस रोग से प्रभावित होने वाली पत्तियां भूरे रंग के होकर गिरने लगते हैं जिससे पौधों की वृद्धि होना बंद हो जाता है इस रोग का उपचार करने के के लिए बॉबी पीलिया विंडो स्टैंड का छिड़काव करके इस रोग का उपचार किया जाता है|

3.सूरन की खेती में लगने वाला तंबाकू सुन्डि रोग

यह एक प्रकार का कीट जनित रोग होता है तंबाकू सुंडी रोग हल्के भूरे रंग क्या होता है जो पौधों की पत्तियों का खाकर से पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं तंबाकू सुंडी रोग जून जुलाई के महीने में आक्रमण करते हैं इसरो को समाप्त करने के लिए मैनकोजेब एक यह कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की उचित मात्रा मे घोल बनाकर छिड़काव करने से या रोग समाप्त हो जाता है|

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सूरन की खेती Suran Ki Kheti से पैदावार और कमाई

1 हेक्टेयर में सूरन की पैदावार लगभग 70 से 80 टन होती है सूरन का भाव भारतीय बाजार में ₹2000 से 2500 प्रति कुंतल होता है इसके हिसाब से किसान भाइयों को एक बार की पैदावार में 4से 5 लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं

सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न
सूरन की खेती कब और कैसे करे?

सूरन की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयोगी मानी जाती है सूरन की बुवाई करने के लिए खेत की जुताईअच्छी तरीके से करें दे और फिर अंतिम जुताई करने से पहले 12 से 13 टन गोबर की खाद डालकर पाटा चला दे

सूरन की खेती कौन-कौन से महीने में की जाती है?

सूरन की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल में तथा जून का महीना होता है

सूरन का दूसरा नाम क्या है?

सूरन का दूसरा नाम जिमीकंद है

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