Arandi Ki Kheti- हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको अरंडी की खेती के बारे में बताएंगे यदि आप भी अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
अरंडी की खेती से सम्बंधित जानकारी
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अरंडी खरीफ की एक प्रमुख तिलहन फसल है | अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) भारत में सबसे अधिक होती है | इसके बाद चीन तथा ब्राजील में इसकी खेती की जाती है | भारत में अरंडी की खेती गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है |
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) के लिए किसी खास भूमि की आवश्यकता नहीं होती है | इसकी खेती बंजर भूमि में भी की जा सकती है | यह एक ऐसी फसल है जिसकी खेती के लिए पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है | इसकी खेती सिर्फ बारिश के पानी से भी की जा सकती है | जिसमें इसकी पैदावार 10 से 15 कुंतल होगी | तथा सिंचित इलाकों में अरंडी की पैदावार 20 से 25 कुंतल प्रति एकड़ तक होती है |
अरंडी के बीज में 45 से 55% तेल तथा 12 से 16 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है | अरंडी के तेल में बहुत ही अधिक मात्रा में लगभग 93% रिसनोलिक नामक वसा अम्ल मौजूद होता है | जिसके कारण इसका तेल बहुत ही महंगा बिकता है | अरंडी के तेल का प्रयोग हमारे औद्योगिक रूप में किया जाता है | क्रीम, तेल, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, कार्बन पेपर, मोम, वार्निश, कृत्रिम रेजिन, नायलॉन, कार्बन पेपर, प्रिंटिंग इंक, आदि के निर्माण में अरंडी के तेल का प्रयोग किया जाता है |
इसका उपयोग बहुत सी औषधि के रूप में किया जाता है | अरंडी के तेल का उपयोग पशु चिकित्सा जानवरों के पेट में बने हुए कब्ज कोदूर करने के लिए करते हैं | साथ ही अरंडी के तेल का उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है |
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अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) कर के हमारे किसान भाई बहुत ही अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं तो आइये आज के इस ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं की अरंडी की खेती कैसे की जाती है तथा अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) में कितनी आमदनी होती है |
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) कैसे करें ?
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) करने के लिए किसी भी खास मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है | इसकी खेती के लिए बहुत ही कम सिंचाई की आवश्यकता होती है | फिर भी अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) में अच्छी पैदावार के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना होता है | जिनका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है-
अरंडी की उन्नत किस्में
अरंडी की उन्नत किस्म की बात की जाए तो बाजार में कई तरह के उन्नत किस्में देखने को मिलती है | सभी उन्नत किस्म दो प्रजातियों में वर्गीकृत की गई है | जिसमें से एक साधारण और एक संकर प्रजाति है |
प्रजाति | उन्नत किस्म | तेल की मात्रा | उत्पादन समय | उत्पादन |
साधारण प्रजाति | ज्योति | 50 प्रतिशत तक | 140 से 160 दिन में | 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
अरुणा | 52 प्रतिशत तक | 170 दिन में | 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
भाग्य | 54 प्रतिशत तक | 150 दिन में | 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
क्रांति | 50 प्रतिशत तक | 180 दिन में | 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
ज्वाला 48-1 | 49 प्रतिशत तक | 160 से 190 दिन में | 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
संकर प्रजाति | आर एच सी 1 | 50 प्रतिशत तक | 100 दिन में | 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
जी सी एच 4 | 48 प्रतिशत तक | 90 से 110 दिन में | 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
डी सी एस 9 | 48 प्रतिशत तक | 120 दिन में | 25 से 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
अरंडी की खेत की तैयारी तथा खाद
अरंडी के पौधों की जड़ें बहुत ही गहराई तक जाती है इसलिए खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए | मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए खेत की गहरी जुताई कर लेनी चाहिए तथा खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेष तथा खरपतवार को अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए | खेत की जुताई के बाद खेत को अच्छे से खुला छोड़ देना चाहिए | जब खेत में धूप लगेगी तो उसमें मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाएंगे| जिससे फसल अच्छी होगी |
खेत की पहली जुताई करने के बाद खेत में 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से जैविक खाद या गोबर खाद को डालना चाहिए | इसके बाद खेत की आड़ी तिरछी जुताई करके खाद को अच्छे से मिला देना चाहिए | इसके बाद खेत को पलेव करने के लिए पानी को छोड़ देना चाहिए | जब खेत अच्छे से सुख जाए तब इसकी जुताई करके इसे पाटा लगाकर समतल कर देना चाहिए |
अगर आप रासायनिक खाद का भी प्रयोग करना चाहते हैं तो अंतिम जुताई के समय ही 200kg जिप्सम और 20kg सल्फर की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालना चाहिए | खेत में मशीन के माध्यम से 40 किलो एन.पी.के की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए |
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अरंडी की खेती के लिए उपयोग मिट्टी और जलवायु
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) किसी भी मिट्टी में की जा सकती है | अरंडी की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान 5 से 6 के बीच होना आवश्यक है तथा आप जिस भूमि का चयन करें उस भूमि में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो | अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) बंजर भूमि में भी की जा सकती है परंतु यह ध्यान दें की मिट्टी अधिक क्षारीय ना हो |
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) किसी भी जलवायु में की जा सकती है परंतु शुष्क और आद्र जलवायु में इसके पौधे अत्यधिक अच्छे से विकास करते हैं | ठंड के मौसम में पड़ने वाला पाला इसके पौधों को हानि पहुंचती है | अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है | जब इसके बीज पकने लगते हैं तो उन्हें उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |
अरंडी की बुवाई
अरंडी की बुवाई करने के लिए सीड ड्रिल का भी इस्तेमाल किया जाता है या फिर अरंडी की बुवाई करने के लिए चार फीट की दूरी पर पंक्ति को तैयार करते हैं | जिसमें इसके बीजों की बुवाई हाथ के द्वारा की जाती है |
1 हेक्टेयर के खेत में लगभग 10 से15 किलो हाइब्रिड बीज की आवश्यकता होती है | अगर आप साधारण प्रजाति का उपयोग कर रहे हैं तो लगभग 15 से 20 किलो बीज की आवश्यकता होगी |
अरंडी की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून से जुलाई का महीना होता है | इस समय मानसून आने के कारण बीज अच्छे से अंकुरित होते हैं तथा अरंडी के पौधे का विकास भी अच्छा होता है |
अरंडी की खेती में सिंचाई
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) में सिंचाई की बात की जाए तो इसमें बहुत कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है | किंतु समय-समय पर इसकी सिचाई कर देने पर इसकी पैदावार बढ़ जाती है | इसकी खेती जहां पर सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था न हो | वहां पर भी की जा सकती है | जिसमें इसकी पैदावार कम होगी तथा जहां पर सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसकी पैदावार अधिक होती है |
अरंडी की सिंचाई करने के लिए 18 से 20 दिन के अंतराल में पानी देने की आवश्यकता होती है | अधिक पानी न भरने पाये इसके लिए सिंचाई में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम सबसे उचित विकल्प है |
खरपतवार नियंत्रण
अरंडी के खेतों में शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण की ज्यादा आवश्यकता होती है | जब इसका पौधा छोटा हो तब इसकी गुड़ाई करते रहे तथा खरपतवार को निकलते रहे इसके पौधों को अधिक संतों से तीन बार बुराई की आवश्यकता होती है खरपतवार नियंत्रण के लिए आप रासायनिक दवाइयां का भी इस्तेमाल कर सकते हैं नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन नामक दवाई का उचित मात्रा में छिड़काव करें इस दवाई को छिड़काव बीच की उपाय करने से पहले ही करें
अरंडी की खेती में रोग तथा नियंत्रण
झुलसा रोग
झुलसा रोग पौधों की मध्य अवस्था में लगता है | इस रोग में पौधों की पत्तियों में धब्बे दिखने लगते हैं तथा कुछ समय बाद यह धब्बे बहुत ही अधिक बढ़ जाते हैं | जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाती और पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है | इसके बचाव के लिए मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए |
उकठा रोग
इस रोग का प्रकोप पौधे में फूल बनने के दौरान होता है | इसमें पत्तियाँ पीले रंग की दिखाई देने लगती हैं तथा कुछ ही समय बाद पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है | इसके बचाव के लिए खेत में गोबर की खाद डालते समय ही ट्राइकोडर्मा विरिडी की उचित मात्रा का छिड़काव करना होता है |
सफेद मक्खी रोग
सफेद मक्खी के रोग का आक्रमण पौधों की पत्तियों पर होता है | जब पौधा इस रूप से प्रभावित हो जाता है तो पौधों के नीचे सतह पर सफेद रंग के किट दिखाई देने लगते हैं जो की पत्तियों के रस को चूसकर पौधे को हानि पहुंचते है | इस रोग से बचने के लिए नीम का तेल या निंबीसीडिन की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है |
फसल की कटाई तथा पैदावार
अरंडी की फसल 120 से 150 दिन में काटने योग्य तैयार हो जाती है | जब इसके बीजों का रंग पीला या फिर भूरा दिखाई देने लगे तो इसकी कटाई कर लेना चाहिए | इस कटाई करने के बाद इसे अच्छी तरह से धुप में सुखा देना चाहिए | इसके बाद मशीन के द्वारा या फिर डंडे से पीट कर बीजों को अलग कर लिया लेना चाहिए |
अरंडी की पैदावार की बात की जाए तो इसकी पैदावार सिंचाई वाले स्थान पर 20 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है तथा बंजार भूमि जहां से चाय का साधन नहीं है | वहां लगभग 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है |
अरंडी की खेती में मुनाफा
अरंडी की खेती (Arandi Ki Kheti) में मुनाफा की बात की जाए तो अरंडी की एक कुंटल बीजों की प्राइस 5000 से 6000 होती है | इस हिसाब से सिंचित स्थान पर प्रति हेक्टेयर 1 से 1.5 लाख की आमदनी होगी तथा असंचित स्थान पर 50 से 60 हजार प्रति हेक्टेयर की आमदनी होगी |
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