ककोड़ा की खेती कैसे करें Kantola Farming in Hindi || ककोड़ा के फायदे

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट ककोड़ा की खेती (Kantola Farming) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको ककोड़ा की खेती (Kantola Farming in Hindi) के बारे में बताएंगे यदि आप भी ककोड़ा की खेती (Kantola Farming) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉक को अंत तक अवश्य पढ़े |

ककोड़ा की खेती (Kantola Farming) की जानकारी

ककोड़ा की खेती सब्जी फसल के रूप में की जाती है यह एक कद्दू वर्ग की फसल होती है जिसे भारत के कुछ राज्यों में ही उगाया जाता है भारत में से कंटोला, ककोरा, ककोड़े, कर्कोटकी के नाम से भी जाने जाते हैं कुछ विशेष प्रकार के जंगली इलाकों में यह अपने आप भी उग जाते हैं ककोड़ा के मादा पौधे से लगभग 8 से 10 वर्षों तक पैदावार मिलती रहती है

इसके फलों का प्रयोग सब्जी बनाने में अचार बनाने में भी करते हैं औषधि के रूप में इसका फल खांसी, पित्तनाशक, कफ, वात, अरूचि और हृदय संबंधित बीमारियों में भी यह काफी लाभ प्रदान करता है इसके अलावा पेशाब की समस्या बवासीर के दौरान रक्त के प्रवाह और बुखार में भी ककोड़ा का फल काफी लाभदायक होता है

यह स्वाद में काफी स्वादिष्ट एवं पोशक तत्वों की मात्रा इसमें अधिक होती है जिस वजह से इसका भाव भी बाजार में काफी अच्छा होता है किसान भाइयों के लिए यह एक कमाई करने का अच्छा साधन भी है जिस वजह से ककोड़ा की खेती को मुनाफे की खेती भी कहा जाता है यदि आप भी ककोड़ा की खेती करने की सोच रहे है तो इस आर्टिकल में हम आपको ककोड़ा की खेती कैसे करें और ककोड़ा के फायदे क्या होते हैं आदि के बारे में आपको पूरी जानकारी देंगे।

ककोड़ा की खेती कैसे करें (Kantola Farming in Hindi)

ककोड़ा की खेती में भूमि और जलवायु तापमान की जानकारी से किसान भाई अच्छी खेती करके लाभ कमा सकते हैं जिसे यहां पर बताया गया है
कंटोला की खेती आप किसी भी प्रकार के भूमि कर सकते हैं किंतु जैविक पदार्थ युक्त रेतीली भूमि में इसके पौधे काफी अच्छे से वृद्धि करते हैं जल भराव वाली भूमि में कंटोला के खेती आप नहीं कर सकते हैं

इसकी खेती के लिए भूमिका पीएच मान 6 से 7 के मध्य होना आवश्यक होता है ककोड़ा की खेती गर्म और नम जलवायु में की जा सकती है इसकी खेती में आयतन 1500 से 2500 मिली वर्ष की आवश्यकता होती है इसके पौधे के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

ककोड़ा की उन्नत किस्म (Kakoda Improved Varieties)

वर्तमान में ककोड़ा के कुछ विशेष किस्म में भी हैं जिन्हें उचित चलवाई के हिसाब से अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु तैयार किया गया है जो कि इस प्रकार से हैं

  • इंदिरा कंकोड़-1
  • अम्बिका-12-1
  • अम्बिका-12-2
  • अम्बिका-12-3

ककोड़ा के खेत की तैयारी (Kakoda Field Preparation)

ककोड़ा की खेती करने के लिए आपको सबसे पहले खेत की जुताई करके खेत में पहले से मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट करना होगा नष्ट अवशेषों से खेतों को निकाल कर उसकी अच्छे से सफाई करनी होगी इसके पश्चात खेत में पानी देना होगा पानी के सूख जाने के पश्चात दो से तीन तिरछी जुताई करनी चाहिए और खेत की मिट्टी को भुरभुरी कर लेनी चाहिए इसके बाद आपको पता लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए समतल खेत में पौधे रोपाई के लिए गड्ढे तैयार कर लेना चाहिए।

ककोड़ा के खेत में उर्वरक (Kakoda Field Fertilizer)

ककोड़ा के खेत से अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु उपयुक्त मात्रा में प्राकृतिक खाद के साथ-साथ रासायनिक उर्वरक भी देना आवश्यक होता है इसके लिए खेत की पहली जुताई के बाद 200 से 250 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालकर मिलना चाहिए इसके बाद अंतिम जुताई के समय 375 KG एसएसपी, 65 KG यूरिया और 67 KG एमओपी की मात्रा को मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आपको छिड़काव करना चाहिए।

ककोड़ा के बीज की रोपाई का तरीका (kakoda Seeds Transplant)

ककोड़ा के बीज को खेत में पौधे के रूप में लगाना चाहिए इसके लिए आपको बीजों कि नर्सरी को तैयार करना चाहिए नर्सरी में तैयार पौधे की रोपाई गढ्ढों में करनी चाहिए इसके लिए आपको खेत में गढ्ढों को तैयार करना चाहिए इन गढ्ढों को 2 मीटर की दूरी पर पंक्तियों में बनाना चाहिए पंक्तियों के 4 मीटर की दूरी रखनी चाहिए तथा हर पंक्ति में 9 से 10 गढ्ढें बनाने चाहिए

जिससे 7 से 8 गड्ढे में मादा पौधे लगाए और बाकी बचे गड्ढे में नर पौधे लगाने चहिए पौधों की रोपाई के पश्चात उसके चारों ओर से मिट्टी की सहायता से अच्छी तरीके से ढक देना चाहिए ककोड़ा के बीजों की रोपाई जून और जुलाई के माह में करनी चाहिए

ककोड़ा फसल में सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण (Kakoda Crop Weed Control)

ककोड़ा के फसलों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है इसकी पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए बारिश के मौसम में आवश्यकता पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए एवं खेत में अधिक पानी हो जाने पर उसे जल निकास की व्यवस्था भी करनी चाहिए जल भराव वाले खेत की फसल नष्ट हो जाती है ककोड़ा की फसल में खरपतवार नियंत्रण की ज्यादा जरूरत नहीं होती है इसकी फसल को केवल दो से तीन सिंचाई की जरूरत पड़ती है

ककोड़ा के फसल की कटाई (Kakoda Crop Harvesting)

ककोड़ा के फसल की कटाई व्यापारिक उद्देश्य एवं गुणवत्ता के हिसाब से की जाती है सब्जी के रूप में ककोड़ा की पहली कटाई दो से तीन महीने के बाद आप कर सकते हैं इस दौरान आपको ताजा एवं स्वस्थ और छोटे आकार के ककोड़ा के फसल मिलेंगे इसके अलावा फसल की कटाई 1 वर्ष पश्चात भी की जा सकती है इस दौरान फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी हो जाती है

अच्छे गुणवत्ता वाले ककोड़ा की मांग बाजारों में काफी ज्यादा रहती है ककोड़ा का बाजारी भाव गुणवत्ता के हिसाब से डेढ़ सौ रुपए या उससे भी ज्यादा हो सकता है इस हिसाब से किसान भाई ककोड़ा की एक बार की फसल से काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं।

ककोड़ा में मौजूद पोषक तत्व एवं विटामिन (Kakoda Nutrients and Vitamins)

कंटोला कि सब्जी में कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जिस वजह से यह काफी लाभकारी सब्जी मानी जाती है इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, सोडियम, मैग्नीशियम, कॉपर, पोटेशियम जिंक आदि पोषक तत्वों के अलावा इसमें मल्टीविटामिन भी होते हैं जैसे कि विटामिन A, विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9, B12, विटामिन C, विटामिन D2 ,D3, विटामिन H और विटामिन K की काफी अधिक मात्रा इसमें पाई जाती है इसका सेवन करने से हमारे शरीर को शक्ति प्राप्त मिलती है और अधिक मजबूती भी मिलती है ककोड़ा की सब्जी गर्म तासीर की होती है

ककोड़ा के फायदे (Kakoda Benefits)

  • इसके सेवन से सिर दर्द, कान दर्द, पेट का इन्फेक्शन, बालों का झड़ना, खांसी आदि समस्याओं में आराम मिलता है।
  • यह पीलिया और बवासीर जैसी गंभीर बीमारियों में भी लाभकारी होता है।
  • डायबिटीज और ब्लड शुगर को भी यह नियंत्रित करता है।
  • बरसात के मौसम में यह दाद खाज से होने वाली खुजली में भी काफी लाभ प्रदान करता है।
  • बुखार आने पर आप ककोड़ा का प्रयोग कर सकते हैं।
  • ब्लड प्रेशर और कैंसर की बीमारी में भी ककोड़ा काफी फायदेमंद साबित हुआ है।
  • ककोड़ा के सेवन से सूजन, लकवा, बेहोशी और आंखों की समस्या भी दूर होती है।

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