Kinnu Ki Kheti : किन्नू की खेती से करे बम्पर कमाई

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti )

Table of Contents

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है कन्नू में विभिन्न प्रकार के विटामिन जैसे विटामिन ए विटामिन बी विटामिन सी की अत्यधिक मात्रा उपलब्ध होती है जिस कारण से किन्नू का सेवन करने वाले लोग स्वस्थ और काफी सेहतमंद रहते हैं किन्नू का सेवन करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती है और हड्डियां भी मजबूत रहती हैं |

जहां पहले हिमाचल प्रदेश ,पंजाब आदि जैसे राज्य में किन्नू की खेती की जाती थी वहीं अब अन्य राज्यों की अपेछा उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती अत्यधिक मात्रा में की जा रही है किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करके किसान काफी अधिक मात्रा में मुनाफा कमा सकते हैं |

Kinnu Ki Kheti

किन्नू की खेती करने वाले प्रमुख राज्य ( Major states cultivating Kinnow )

भारत देश में किन्नू की खेती करने वाले प्रमुख राज्य जैसे उत्तर प्रदेश , राजस्थान , हिमाचल प्रदेश , पंजाब , हरियाणा , जम्मू कश्मीर ,में किन्नू का उत्पादन अधिक मात्रा में होने से इसकी खेती अत्यधिक मात्रा में की जाती है |

किन्नू की खेती के लिए उन्नत किस्म का चयन ( Selection of improved variety for Kinnu Ki Kheti )

किन्नू की खेती किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए विभिन्न प्रकार की किस्म उपलब्ध है |

किन्नो किस्म (Kinnow variety )

यह प्रजाति राज्य का मुख्य फल है इसके पौधों में लगने वाले फल सुनहरी संतरी रंग के होते हैं और उनके रस मीठे होते हैं उनके फल हल्के खट्टे और स्वादिष्ट होते हैं उनके पौधों में लगने वाले फलों की तुड़ाई जनवरी में ही प्रारंभ कर दिए जाते हैं |

लोकल किस्म (local variety )

किन्नू ( kinnu )की यह किस्म पंजाब के छोटे क्षेत्र में उगाया जाता है इनके पेड़ों से निकलने वाले फलों का आकार सामान्य और छोटा होता है इस किस्म के फल  दिसंबर से जनवरी महीने में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं इनका पीले रंग का होता है |

पांव किन्नों ( Pav Kinnow )

कन्नू कि इस प्रजाति के फलों को जनवरी के महीने में ही तोड़ा जाता है इनके फलों में 6 से 8 बीज होते हैं इस किस्म के पौधों में प्रति पौधे से लगभग 50 किलो ग्राम तक का उत्पादन प्राप्त होता है |

डेजी किस्म ( Daisy variety )

किन्नू के इस किस्म के फलों की तुड़ाई नवंबर महीने के अंतिम सप्ताह में कर लिया जाता है इनके फलों में 10 से 15 बीज पाए जाते हैं इस किस्म के पौधे से 75 से 80 किलोग्राम तक किन्नू का उत्पादन प्राप्त किया जाता है |

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किन्नू की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for Kinnow cultivation )

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए उचित जल निकास वाली हल्की दोमट मिट्टी की भूमि उपयुक्त रहती है क्योंकि इस मिट्टी में पैदावार काफी अच्छा प्राप्त होता है किन्नू की खेती के लिए जलभराव वाली भूमि उपयुक्त नहीं होती है किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए भूमि का पीएच मान 6.5 से 8 के मध्य होना चाहिए |

किन्नू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Kinnow Farming in India )

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) के लिए कम से कम जलवायु का तापमान 18 से 20 डिग्री और अधिक से अधिक 35 से 40 डिग्री होना आवश्यक होता है क्योंकि सामान्य जलवायु में किन्नू के पौधे वानस्पतिक रूप से वृद्धि नहीं कर पाते हैं कम तापमान व ठंडी के कारण किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) में हानि हो सकती है |

किन्नू की खेती करने के लिए खेतों की तैयारी (Preparation of fields for Kinnow cultivation )

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए सबसे पहले खेतों को अच्छा तरीके से तैयार कर लेना होता है खेतों को तैयार करने के लिए दो से तीन बार गहरी जुताई कर दे जिससे मिट्टी अच्छे तरीके से भुरभूरि हो जाए क्योंकि बलुई दोमट मिट्टी किन्नू की खेती के लिए सबसे अच्छा माना जाता है खेतों की जुताई करने के बाद उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए |

जिससे खेतों में अच्छे तरीके से धूप लग जाए इसके बाद खेत की एक बार फिर से जुताई कर देना चाहिए जुताई करने के पश्चात खेतों में पानी भरकर के छोड़ दिया जाता है जब खेत में पानी अच्छे तरीके से सुख जाए तो रोटावेटर की सहायता से दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दे जिससे खेत की मिट्टी भरभूरि हो जाती है भुरभुरी  मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए इसके बाद किन्नो के पौधे को उचित दूरी पर गड्ढे तैयार करके लगाना चाहिए |

किन्नू की खेती में बीज रोपाई का सही समय और तरीका (Right time and method of planting seeds in Kinnow cultivation )

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए सबसे पहले नर्सरी को तैयार करना चाहिए जिसके लिए किन्नू के बीच को प्रजनन टी बडिंग विधि के माध्यम से तैयार किया जाता है नर्सरी में बीज को दो बड़े दो मीटर आकार वाले गड्ढो पर 16 सेंटीमीटर की दूरी पर कतार में लगाए जब किन्नू का पौधा 12 से 15 सेंटीमीटर लंबा हो जाए तो उसे निकाल कर खेत में इसकी रोपाई कर दें |

पौधों की रोपाई करते समय यह अवश्य ध्यान दें कि जिन पौधों को आप लग रहे हैं वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं या नहीं किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) में केवल स्वास्थ्य पौधों के लिए लगाए कमजोर और छोटे पदों को खेतों में ना लगाये किन्नू के पौधों को खेतों में लगाने से पहले जड़ों की छटाई  जरूर कर लें खेत में पौधों को लगाने से पहले गड्ढे को तैयार कर लेना चाहिए |

किन्नू की खेती ( Kinnu Ki Kheti ) करने के लिए 60 * 60 * 60 सेंटीमीटर वाले गड्ढे तैयार कर ले एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे के बीच की दूरी लगभग 7 * 7 मी रखें इन गड्ढे में 10 किलोग्राम रोड़ी और 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट के खाद को मिलाकर डाल दें किन्नू के पौधों को तेज हवा से बचने के लिए खेत में चारों ओर अमरुद , जमुनी , शीशम ,आम , शहतूत , के पौधों को लगा दें इसके पौधों की रोपाई का उपयुक्त समय जून से सितंबर माह के मध्य का होता है एक हेक्टेयर खेत में लगभग 220 से 240 पौधे लगाए जा सकते हैं |

किन्नू की खेती की सिंचाई का उपयुक्त समय (Suitable time for irrigation of Kinnow cultivation )

किन्नू के पौधे को शुरुआती विकास के लिए अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है इसके लिए खेतों में हल्की-हल्की सिंचाई कर नमी को बनाए रखना चाहिए और जब पौधे तीन से चार साल पुराने हो जाए तो 8 से 10 दिन में एक बार सिंचाई कर दें तथा उससे अधिक पुराने पौधों को मौसम और जलवायु के आधार पर आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करें |

किन्नू की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Kinnow crop )

किन्नू के पौधों को खरपतवार से बचाना अधिक आवश्यक होता है खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए पौधों की निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है इसकी पहली गुड़ाई पौधों की रोपाई के लगभग 28 से 30 दिन बाद की जाती है इसके प्रसाद खेतों में खरपतवार दिखाई देने पर ही उसके निर्णय पढ़ाई करें इसके अलावा पौधों में अंकुरण होने के बाद पैराकुएट 1.2 लीटर, गलाईफ़ोसेट या 1.6 लीटर की मात्रा को 200 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़काव करें।

किन्नू के फलों की तुड़ाई पैदावार और लाभ ( Kinnow Fruit Harvesting Yield and Benefits )

किन्नू के पौधों पर लगे फलों का रंग जब गहरा दिखाई देने लगे तो इस समय किन्नू के फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए किन्नू की तुड़ाई का उपयुक्त समय जनवरी से फरवरी का महीना होता है किन्नू के फलों की तुड़ाई समय पर कर लेनी चाहिए जिससे फलों की गुणवत्ता अच्छी प्राप्त होती है फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें पानी में डालकर अच्छे से साफ कर लेना चाहिए |

इसके बाद उन्हें छांव में अच्छी तरीके से सुख ले किन्नू का पूर्ण विकसित पौधा किस्म के आधार पर 90 से 160 किलोग्राम फलों का उत्पादन देता है जिससे किसान भाइयों को अच्छी मात्रा में फल का उत्पादन प्राप्त हो सकता है और वह काफी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं |

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न 

क्या किन्नू में विटामिन सी की मात्रा पाई जाती है ?

पंजाब के राजा फल के रूप में लोकप्रिय किन्नू विटामिन सी से भरपूर होता है 200 मिलीलीटर ताजा किलो का जूस पीने से आपको 40 मिलीग्राम विटामिन सी की मात्रा मिल सकता है यह फल विटामिन बी कांप्लेक्स और सोडियम पोटेशियम कैल्शियम और तांबे जैसी खनिजों से भरपूर होता है |

किन्नू का जूस सेहत के लिए अच्छा क्यों माना जाता है ?

किन्नू के जूस में विटामिन सी और विभिन्न प्रकार की एंटीऑक्सीडेंट यौगिक का एक समूह उपस्थित होता है जो स्वस्थ जीवन के लिए अत्यधिक लाभदायक होता है यही कारण है की किन्नू का जूस हमारे लिए काफी अधिक लाभदायक होता है |

क्या किन्नू का जूस वजन घटाने के लिए अच्छा होता है ?

किन्नू का जूस हमारे शरीर में चयापचय दर को बढ़ाने के लिए जाना जाता है क्योंकि कन्नू में बेटाबॉलिज्म उपस्थित होता है मेटाबॉलिज्म का मतलब होता है वजन को तेजी से कम करता है |

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