Petha ki kheti- पेठा की खेती से लाखों की कमाई

Petha ki kheti- भारत में सबसे प्रसिद्ध पेठा उत्तर प्रदेश की आगरा का माना जाता है | यह बहुत ही स्वादिष्ट और भारत का एक प्रमुख मिष्ठान है | स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इसकी डिमांड भी बहुत अधिक है | क्या आपको पता है कि पेठा कद्दू से बनता है | आज हम उसी कद्दू की खेती के बारे जानेंगे |

पेठा की भारी मात्रा में डिमांड होने के कारण पेठा की खेती (Petha ki kheti) से हमारे भारतीय किसान अच्छा पैसा कमा रहे हैं | आज हम आपको इस ब्लॉक के माध्यम से बताने वाले हैं कि पेठा की खेती कैसे की जाती है | पेठा की खेती से संबंधित जानकारी के लिए ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें |

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पेठा की खेती (Petha ki kheti) से संबंधित जानकारी

पेठा एक कद्दू वर्गीय फसल है | इसे  कुम्हड़ा, कूष्माण्ड और काशीफल के नाम से भी जाना जाता है | इसकी पौधे की लताएं लौकी कद्दू की तरह ही फैलती है इसी कई प्रजातियां पाई जाती हैं जो की एक से दो मीटर लंबी होती है तथा इनकी फलों पर सफेद रंग की पाउडर जैसी एक परत दिखाई देती है | इस पेठे के कच्चे फलों की सब्जी तथा पके हुए फलों का पेठा बनाने में प्रयोग किया जाता है |

पेठा के अलावा इसका इस्तेमाल च्यवनप्रास बनाने में किया जाता है | जिसके सेवन से हमारी मानसिक शक्ति बढ़ती है और हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाली छोटी-मोटी बीमारियां नहीं होती है | इसकी खेती कम खर्चे में अधिक मुनाफा देने वाली लिखी थी है जिसे हमारे भारत में बहुत अधिक किया जाता है
अगर अभी इसकी खेती करना चाहते हैं तो आज के इस ब्लॉक में हम बैठे की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक बताया है तो अंदर तक जरूर पढ़ें

पेठा की खेती (Petha ki kheti) 

भारत में पेठा की खेती (Petha ki kheti) सबसे अधिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है | सबसे अधिक भारत में पेठा राजस्थान मध्य प्रदेश और बिहार के साथ-साथ संपूर्ण भारत में इसकी खेती की जाती है |

Petha ki kheti

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

पेठा की खेती (Petha ki kheti) के लिए किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जाती है | जो कि इसकी अच्छी पैदावार के लिए बहुत ही उपयोग मानी जाती है | आप जिस भूमि का चयन करें उसका पीएच मान लगभग 6 से 8 के मध्य होना चाहिए तथा भूमि में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए |

जलवायु और तापमान

पेठा की खेती (Petha ki kheti) के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है | इसकी खेती गर्मी और बरसात के मौसम में करना बहुत ही अच्छा होता है | इसकी खेती के लिए अधिक ठंड वातावरण उपयोगी नहीं होता क्योंकि इसके पौधे ठंडी के कारण अधिक विकास नहीं कर पाते |

पेठा के पौधे शुरुआत में सामान्य ताप पर अच्छे से विकास करते हैं तथा उनके बीजों के अंकुरण के लिए 15 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | जब बीज अंकुरित हो जाते हैं तो इसके पश्चात के पौधों को 30 से 40 अंश सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है | इससे अधिक तापमान में पेठा का पौधा अच्छे से विकास नहीं कर पाता |

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पेठा की प्रजातिया

पेठा की कई उन्नत क़िस्मों को अलग-अलग जलवायु और अलग-अलग स्थान पर अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो इस प्रकार है :- कोयम्बटूर 2, सी एम 14, संकर नरेन्द्र काशीफल- 1, नरेन्द्र अग्रिम, पूसा हाइब्रिड, नरेन्द्र अमृत, आई आई पी के- 226, बी एस एस- 987, बी एस एस- 988, कल्यानपुर पम्पकिन- 1 आदि |

प्रजाति तैयार होने में समय वजन उत्पादन (प्रति हेक्टेयर)
सी. ओ. 1120 दिन 7 से 10 KG 300 क्विंटल 
कशी धवल120 दिन12 KG500 से 600 क्विंटल
पूसा विश्वास120 दिन5 KG250 से 300 क्विंटल
काशी उज्ज्वल110 से 120 दिन12KG550 से 600 क्विंटल

पेठा के खेत की तैयारी और खाद की मात्रा

पेठा की अच्छी पैदावार के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना होता है | खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलट हल के द्वारा अच्छे से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेष तथा घास फूस नष्ट हो जाएंगे | जुताई के बात खेत को खुला छोड़ दे | खेत की पहले जुताई करते समय खेत में जैविक खाद या गोबर की सड़ी हुई पुरानी खाद को 12 से 15 गाड़ी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें |

खाद को डालने के बाद खेत की अच्छे से दो से तीन आड़ी तिरछी जुताई करते हैं | खाद अच्छे से मिल जाए तो उसमें पानी को छोड़ दें और जब खेत की ऊपरी सतह सुख जाए तो खेत को भुरभुरा बनाने के लिए रोटावेटर की सहायता से जुताई करते हैं और पाता लगाकर खेत को समतल करते हैं |

खेत को समतल करने के बाद खेत में पौधों की रोपाई के लिए तीन से चार मीटर की दूरी पर धोरेनुमा क्यारियों को तैयार कर ले | अगर आप जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद का प्रयोग भी करना चाहते हैं तो 80 किलो डी.ए.पी प्रति हेक्टेयर की मात्रा को खेत में डालें | 50 किलो नाइट्रोजन की मात्रा पौधों की पहले सिंचाई के दौरान दें |

पेठा के बीजों की रोपाई का सही समय और तरीका

पेठा की रोपाई बीजों के रूप में की जाती है | रोपाई करने से पहले बीजों को उपचारित करना होता है | एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 6 से 8 किलो पेठा के बीज की आवश्यकता होती है | इन बीजों को खेत में तैयार धोरेनुमा क्यारी में लगा दिया जाता है तथा बीज को खेत में एक से डेढ़ फीट की दूरी पर दो से तीन सेंटीमीटर गहराई में की जाती है |

पेठा के बीजों की रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय गर्मी और बारिश का मौसम होता है | पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई मार्च के बाद भी की जा सकती है |

पेठा के पौधों की सिंचाई

पेठा की खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती | इसकी खेती के लिए सामान्य सिंचाई करनी पड़ती है | अगर फसल की बुवाई बरसात के समय में की गई तो प्रारंभिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती | परंतु समय पर बारिस न होने पर पानी अवश्य देना चाहिए | यदि इसकी रोपाई गर्मी के मौसम में की गई है तो इसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है | इस समय सप्ताह में दो बार पानी अवश्य दें इससे पौधे का विकास ठीक होगा |

खरपतवार नियंत्रण

पेठा की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि इसके पौधे लताओ के रूप में विकास करते हैं इसलिए इसमें कई प्रकार के रोग देखने को मिल जाते हैं | यह रोग आपकी फसल को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है|

इसमें प्रारंभिक गुड़ाई पौधे की रोपाई से लगभग 20 से 25 दिन बाद की जाती है तथा इसकी गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में करते रहना चाहिए | इसके फसल में अधिकतम तीन से चार बार गुड़ाई की आवश्यकता होती है |

लगने वाले रोग तथा नियंत्रण

क्रम संख्यारोगरोग का प्रकारउपचार
1.लाल कद्‌द भृंग  कीटफेनवेलिरेट, क्लोरपाइरीफोस या सायपरमेथ्रिन का छिड़काव
2.सफेद मक्खीकीटइमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फानका छिड़काव
3.चेपाकीटइमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या डाइमेथेएट का छिड़काव
4.फल मक्खीकीटएन्डोसल्फानका छिड़काव
5.चूर्णिल आसिताकीटहेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिलका छिड़काव
6.फल सडनकीटटेबुकोनाजोल या वैलिडामाईसीनका छिड़काव

पेठा की खेती में पैदावार और मुनाफा

पेठा की फलों की तुड़ाई दो रूपों में की जाती है | अगर आप सब्जी बनाने के लिए से तोड़ना चाहते हैं तो कच्चे फल को ही तोड़ लेना चाहिए यदि आप किसी पेठा बनाने के लिए तोड़ना चाहते हैं तो इसके पकाने का इंतजार करना पड़ेगा | जब फल पक कर तैयार हो जाए तो इसे तोड़कर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है |
1 हेक्टेयर में इसका उत्पादन 400 से 500 कुंटल होता है | इसका बाजारी भाव लगभग 10 से 40 रुपये किलो होता है | इसकी खेती कर के किसान भाई 1 से डेढ़ लाख की आमदनी कर सकते हैं |

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