Rajama Ki Kheti : राजमा की खेती

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti )

Table of Contents

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) हरी सब्जी के रूप में की जाती है ज्यादातर लोग राज्यों की सब्जी बनाकर खाते हैं लेकिन कुछ लोग राजमा के दाने का दाल बनाकर आहार में लेते हैं राजमा दलहन फसल किस श्रेणी में आता है राजमा में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे विटामिन मिनरल्स एवं अन्य घटक की भारी मात्रा उपलब्ध होती है राजमा की सब्जी खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक भी मानी जाती है राजमा की सब्जी का सेवन करने से मानव शरीर को विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं जैसे वजन कम करना हड्डियों को मजबूत बनाना खून का शुद्धिकरण करना हृदय रोग जैसे बीमारी को दूर करने में मदद करता है |

Rajama Ki Kheti

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) ज्यादातर पहाड़ी एवं ठंडे इलाकों में की जाती है इसके अलावा महाराष्ट्र तमिलनाडु कर्नाटक आंध्र प्रदेश उड़ीसा यूपी बिहार हरियाणा गुजरात एवं कर्नाटक में भी राजमा की खेती विस्तार पूर्वक की जाती है और अच्छे मात्रा में उत्पादन भी प्राप्त होता है राजमा की अच्छी मांग और भारी उपज के कारण बाजार में काफी अच्छा दाम मिलता है जिस कारण से किसान भाई राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं |

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राजमा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी ( Suitable soil for kidney bean cultivation )

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है परंतु राजमा की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान भाई राजमा की खेती हल्की दोमट मिट्टी में करें क्योंकि हल्की टोमेट मिट्टी में जल विकास काफी अच्छा होता है और भारी चिकनी मिट्टी में भी राजमा की खेती करके अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) के लिए 5 से 7 के बीच पीएच मान वाली मिट्टी उपयुक्त होती है क्योंकि इस प्रकार की मिट्टी में राजमा के पौधे बहुत अच्छी वृद्धि एवं उपज प्राप्त हैं |

राजमा की खेती के लिए खेत को तैयार कैसे करे ( Preparation of field Rajama Ki Kheti )

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) करने से पहले खेती मिट्टी को अच्छे तरीके से तैयार कर लेना चाहिए मिट्टी को अच्छे तरीके से तैयार करने के लिए दो से तीन बार गहरी बताइए करनी होगी और खेतों को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि खेत में उपस्थित पुराने अवशेष नष्ट हो जाए इसके पश्चात पुन एक से दो बार जुताई करके पाटा की सहायता से मिट्टी को भुरभुरि कर लेना चाहिए और आखिरी जुताई करने से पहले सड़े हुए गोबर की खाद या कंपोस्ट 1 हेक्टेयर में 12 से 15 टन डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए |

राजमा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान ( Suitable climate and temperature for kidney bean cultivation )

राजमा के पौधों को अच्छे से वृद्धि करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है ज्यादा गर्मी और ज्यादा सर्दी की जलवायु राजमा के पौधों के लिए लाभदायक नहीं होते हैं शुरुआती समय में राजमा के बीजों को पूरी तरह से अंकुरित होने के लिए 20 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है तथा बी के अंकुरण के पश्चात 15 से 20 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर इसके पौधे अच्छे तरीके से विकास करते हुए राजमा की खेती के लिए न्यूनतम 10 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान की आवश्यकता होती है |

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राजमा की खेती के लिए उन्नत किस्में ( Improved varieties for kidney bean cultivation )

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) से ज्यादा उत्पादन और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए राज्य में के प्रसिद्ध किस्म की बुवाई करना आवश्यक होता है यदि हम राजमा की उन्नत किस्म के बारे में बात करें तो राजमा की विभिन्न प्रकार की प्रसिद्ध के समय है लेकिन इनमें से कुछ इसमें का नाम इस प्रकार है उत्कर्ष, बीएल 63, आईआईपीआर 98-5, अरुण पीडीआर 14, आईआईपीआर 96-4, मालवीय 137, इनके आलावा भी विभिन्न प्रकार की किस्मे उपलब्ध है 

मालवीय 137

राजमा की यह किस्म गहरी लाल रंग की होती है इस किस्म ( Rajma Ki Fasal )को तैयार होने में 115 से 120 दिन का समय लगता है 1 हेक्टेयर खेत में इस किस्म का उत्पादन 35 से 40 कुंतल तक होता है |

अंबर

इस किस्म में लगने वाले दाने चित्तीदार और लाल रंग के होते हैं इस किस्म के पौधे बहुत जल्दी विकास करते हैं और उपज थोड़ी कम प्राप्त होती है एक हेक्टेयर खेत में 25 से 30 कुंतल तक उपज प्राप्त होती है |

पी. डी. आर. 14

राजमा के इस किस्म में लगने वाले दाने का रंग लाल और चित्रादर होता है उनके दानो का आकार बड़े साइज का होता है कई लोग तो इसे उदय के नाम से जानते हैं यह किस्म बुवाई के 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है इसका उत्पादन एक हेक्टेयर खेत में 40 से 45 क्विंटल तक होता है |

उत्कर्ष

राजमा के इस किस्म में लगने वाले दाने गहरे लाल रंग के होते हैं यह किस्म बुवाई के 125 से 130 दोनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है एक हेक्टेयर खेत में इसका उत्पादन 25 से 30 कुंतल तक प्राप्त होता है |

बी. एल.63 :

राजमा की इस किस्म  में लगने वाले दोनों का रंग भूरा होता है यह किस्म बुवाई के 110 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाते हैं इस किस्म का एक हेक्टेयर में 18 से 20 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त होता है |

वी.एल.125

राजमा के इस किस्म की खेती ज्यादातर उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में विस्तार पूर्वक की जाती है इस किस्म के फल में 4 से 6 बीज निकलते हैं इस जिनका वजन काफी अधिक होता है |

राजमा की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा और बीज उपचार ( Seed quantity and seed treatment for sowing kidney beans )

राजमा की बुवाई करने के लिए एक हेक्टेयर खेत में लगभग 125 से 140 किलो बीच की आवश्यकता होती है राजमा की बुवाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि राजमा का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए 3 से 4 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर में होने चाहिए बीजों की बुवाई करने से पहले उन्हें उपचारित करना अति आवश्यक होता है राजमा के बीजों की बुवाई करने से पहले 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए |

राजमा के बीज की बुवाई ( Sowing of Rajma seeds )

Rajama Ki Kheti

ज्यादातर लोग राजमा के बीज की बुवाई पंक्तियों में करते हैं यदि आप भी राजमा के बीच की बुवाई पंक्तियों में करते हैं तो प्रत्येक पंक्ति की दूरी 35 से 45 सेंटीमीटर रखनी होगी और बुवाई में राजमा के पौधों से पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी होती है राजमा के बीज कठोर होने के कारण बुवाई के बाद अंकुरण में 15 से 20 दिन का समय लेते हैं |

राजमा के पौधों की सिंचाई ( Irrigation of kidney bean plants )

राजमा के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है राजमा के पहले सिंचाई बी रोपाई के लगभग 15 से 20 दिन बाद कर देना चाहिए परंतु जिन किसान भाइयों ने सूखी भूमि में स्थित खेती की है उन्हें खेत में नमी को बनाए रखने के लिए 20 रुपए से लेकर अंकुरण के समय तक टपक सिंचाई विधि का प्रयोग करके खेतों में नमी को बनाए रखना चाहिए |

राजमा की फसलों में खरपतवार नियंत्रण ( Weed control in kidney beans crops )

राजमा की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों विधि का प्रयोग कर सकते हैं प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए निराई गुड़ाई की जाती है इसकी पहली निराई गुड़ाई को बी रोपाई के लगभग 18 से 20 दिन बाद करना होता है इसके बाद दूसरी गुड़ाई 15 से 20 दिन के बाद खरपतवार दिखाई देने पर करना होता हैऔर यदि आप रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण करते हैं तो इसके लिए पेंडीमेथलीन की उचित मात्रा में छिड़काव बीजों की रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए |

राजमा की खेती में लगने वाले रोग और उपचार ( Diseases and treatments in kidney bean cultivation )

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) में विभिन्न प्रकार के रोग लगने का खतरा होता है यदि इन लोगों से सही समय पर फसल को नहीं बचाया गया तो पैदावार को अधिक प्रभावित कर सकते हैं

तना गलन ( stem rot disease )

तना गलन रोग एक प्रकार का सामान्य रोग होता है जो अक्सर के पौधों पर जल भराव की स्थिति में देखने को मिलता है यह रोग ज्यादातर पौध अंकुरण के समय ही दिखाई देता है इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है रोग के अधिक बढ़ जाने पर डब्बे का आकार बड़ा हो जाता है जैसे पौधों की पत्तियां पीली होकर गिरने लगते हैं इस रोग से राजमा के पौधों को बचाने के लिए  कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा को सम्पूर्ण पौधों पर छिड़काव कर देना चाहिए |

फली छेदक ( pod borer )

यह रोग राजमा के पौधों पर कीट के रूप में देखने को मिलता है | इस कीट का लार्वा फलियों के बीजो को पूरी तरह से खाकर नस्ट कर देते है, जिस कारण उत्पादन की मात्रा कम हो जाती है इस रोग का उपचार करने के लिए मोनोक्रोटोफास या एन.पी.वी. की उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव कर देना चाहिए |

पर्ण सुरंगक ( leaf tunneler )

पर्ण सुरंगक रोग पौधों की पत्तियों को अधिक प्रभावित करता है | इस रोग के कीट पत्तियों को खाकर नष्ट कर देते है, जिस कारण से पौधे अपना भोजन तैयार नहीं कर पाते है,और कुछ समय के बाद पौधे पूरी तरह से सूखकर नष्ट हो जाते है इस रोग से पौधे को बचाने के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड या डाईमिथोएट की उचित मात्रा का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव कर देना चाहिए |

इसके अलावा भी पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग देखने को मिलता है जो पौधों को हानि पहुँचाकर पैदावार को प्रभावित करते है, जैसे – माहू, कोणीय धब्बा आदि |

राज़मा के फसल की कटाई पैदावार और लाभ (Rajma Crop Harvesting Yield and Benefits)

राजमा के पौधे बुआई के 120 से 130 दिनों के बाद तैयार हो जाते है तैयार होने के बाद जब पौधे की पत्तिया पीले रंग की दिखाई देने लगती है तो इसके पौधों को भूमि के पास से काट लेना चाहिए | पौधों की कटाई के पश्चात् उन्हें अच्छी तरह से धूप में सूखा लिया जाता है और इसके बाद मशीन की सहायता से इसके बीजो को ठीक से निकाल ले  किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 25 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकते है | राजमा का बाज़ारी भाव  8,000 रूपए प्रति क्विंटल होता है | जिस हिसाब से किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में 1.5 से 2 लाख की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है |

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न 

राजमा की खेती कौन-कौन से महीने में की जाती है ?

राजमा की खेती ( Rajama Ki Kheti ) अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच की जाती है पूर्वी क्षेत्र में नवंबर के प्रथम सप्ताह में बोया जाता है और यदि आप इसके बाद राजमा होते हैं तो उत्पादन घट जाता है राजमा में राइजोबियम ग्रंथियां ना होने के कारण नाइट्रोजन की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है |

राजमा की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है ?

राजमा की फसल बुवाई के 120 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है |

सबसे अच्छा राजमा कौन सा होता है ?

सबसे अच्छा लाल राजमा होता है जिसे राजमा के नाम से भी जाना जाता है या स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है इसमें फाइबर प्रोटीन और विभिन्न विटामिन जैसे आवश्यक पोषक तत्व उपस्थित होते हैं |

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