Ragi ki Kheti- हेलो दोस्तों स्वागत है आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको रागी की खेती (Ragi Ki Kheti) के बारे में बताएंगे यदि आप भी रागी की खेती (Ragi Ki Kheti) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
रागी की खेती (Ragi Ki Kheti) से संबंधित जानकारी
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रागी की खेती (Ragi Ki Kheti) अनाज के लिए किया जाता है | रागी को मोटा अनाज भी कहा जाता है | रागी के अलावा इसे अफ्रीकन रागी, फिंगर बाजरा, मड़ुआ और लाल बाजरा भी कहा जाता है | इसकी पौधे की ऊंचाई लगभग एक से डेढ़ मीटर ऊंची होती है | यह बहुत ही कम समय वाली फसल है | इसकी कटाई मात्र 65 दिनों में ही की जा सकती है |
रागी एक ऐसी फसल है जिसमें कैल्शियम और पोटेशियम की बहुत अधिक मात्रा होती है | जिसके सेवन से हमारी हड्डियां बहुत मजबूत होती हैं | यह बच्चों और बड़ों के लिए बहुत ही अच्छा आहार है | रागी में काफी अच्छी मात्रा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, रेशा, विटामिन पाए जाते हैं | इसके अलावा रागी में थायमीन, नियासिन, रिवोफ्लेविन जैसे अम्ल भी बहुत अच्छी मात्रा में मौजूद रहते हैं जो कि हमारे शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है |
रागी में मौजूद सभी तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है | रागी के दानों को खाने के अलावा कई प्रकार की सामग्रियां बनाकर इस्तेमाल में लाया जाता है | रागी के दाने से साधारण रोटी, डबल रोटी और डोसा जैसे फास्ट फूड भी बनाए जाते हैं | रागी को उबालकर भी खा सकते हैं | इन सबके अलावा रागी का इस्तेमाल फैक्ट्रियां शराब बनाने में भी करती हैं | भारत में लगभग 4000 साल पहले से रागी की खेती की जा रही है | पूरे विश्व में लगभग 58% उत्पादन भारत अकेले करता है |
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अगर आप भी एक किसान है और अपनी खेती में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो रागी की खेती करें | रागी की खेती से संबंधित जानकारी इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं तो ब्लॉक को अंत तक जरूर पढ़ें |
रागी के लिए उपयुक्त मिट्टी
रागी के लिए कार्बनिक पदार्थ से युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है | रागी में भूमि का पीएच मान 5.5 से 8 के मध्य होना चाहिए | इसके पौधों के लिए पानी की बहुत ही कम आवश्यकता होती है इसलिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था भी बहुत अच्छी हो |
रागी के पौधे के लिए जलवायु और तापमान
रागी की खेती शुष्क और आद्र शुष्क जलवायु में की जाती है | इसकी खेती के लिए खरीफ का मौसम बहुत ही अच्छा माना जाता है | गर्मी के मौसम में इसके पौधे बहुत अच्छे से वृद्धि करते हैं और सर्दी के मौसम से पहले इसकी कटाई कर लेनी चाहिए | इसकी खेती के लिए सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है |
रागी के पौधे के लिए लगभग 35 डिग्री तापमान बहुत ही अच्छा होता है परंतु इसके बीजों के अंकुरण के लिए लगभग 20 से 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसके पौधे अधिक सुखे को भी सहन कर सकते हैं | इसकी खेती के लिए अधिकतम तापमान 20 डिग्री होना चाहिए |
उन्नतशील किस्म
रागी की खेती के लिए कुछ प्रमुख किस्म का नीचे विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है-
1. जी.पी.यू. 45:- यह में बहुत ही जल्दी पक जाती है | इस किस्म के पौधे हरे होते हैं तथा इसकी बालियां मुड़ी हुई होती हैं | यह किस्म 104 से 109 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 27 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है | इस किस्म में रोग नहीं लगता है |
2. चिलिका (ओ.ई.बी.-10):– एक ऐसी किस्म है जो कि कुछ देर से पकती है | इसके पौधे ऊंचे और पत्तियाँ चौड़ी और हरी होती हैं | इस किस्म की बालियों का अग्र भाग मुंडा होता है | इस किस्म की बालियों में लगभग 6 से 8 उंगलियां पाई जाती हैं | इसके दाने बड़े और हल्की भूरे रंग के होते हैं | यह किस्म 120 से 125 दिन मैं पक कर तैयार हो जाती है तथा यह प्रति हेक्टेयर 26 से 27 कुंतल की उपज देती है | इस किस में बहुत ही कम रोग लगते हैं | यह रोग तथा किट के लिए प्रतिरोधी है |
3. शुव्रा (ओ.यू.ए.टी.-2):- इस किस्म के पौधे 80-90 से.मी. ऊंचे होते हैं | जिसमें 7 से 8 सेंटीमीटर लंबी उंगलियों की बाली यहां लगती हैं | यह किस्म प्रति हेक्टेयर 21-22 कुंटल का उपज देती है |
4. भैरवी (बी.एम. 9-1):- यह किस्म मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के लिए बहुत ही उपयोगी है | इस किस्म की पत्तियां हल्की हरि रंग की होती हैं | इसकी बालियों का अग्र भाग मुड़ा हुआ होता है तथा इसके दाने हल्की भूरे रंग के होते हैं | यह किस्म 103 से 105 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा इसकी उत्पादन क्षमता 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है |
बीज, बीज दर एवं बोने का समय
रागी की खेती के लिए बीज का चुनाव मृदा के किस्म के आधार पर करें | जहां तक हो सके प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करें | अगर किसान के पास स्वयं से उगाया हुआ बीज है तो उसे साफ करके फूंदनाषक दवा (कार्वेन्डाजिम/कार्वोक्सिन/क्लोरोथेलोनिल) की उचित मात्रा में उपचारित कर लेना चाहिए | रागी की बुवाई के लिए रोपा पद्धति का भी उपयोग किया जाता है |
इसकी बुवाई करने के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक मानसून वर्षा होने पर की जाती है | इसकी बुवाई छिटवा विधि या कतारों में भी की जाती है | कतार में बुवाई के लिए बीज दर लगभग 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर एवं छिटवा विधि में बुवाई करने के लिए बीज दर 12 से 15 किलो प्रति हेक्टेयर रखते हैं | कतार पद्धति में बुवाई करने पर कतारों के बीच की दूरी 2.5 सेमी एवं पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें |
रोपा पद्धति के लिए नर्सरी की आवश्यकता होती है | नर्सरी को तैयार करने के लिए जून के मध्य से जुलाई की प्रथम सप्ताह तक नर्सरी को डाल देना चाहिए | नर्सरी तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए लगभग चार से पांच किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है | 25 से 30 दिन के पौधे जब हो जाए तो उनकी रोपाई कर देनी चाहिए | रोपाई के समय के पौधे से पौधों की दूरी तथा कतार से कतार की दूरी क्रमशः 22.5 सेंटीमीटर वह 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए |
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भूमि की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए गर्मी के मौसम में मिट्टी पलट हल्के द्वारा गहरी जुताई कर लें तथा खेत के फसलों के खरपतवार को अच्छे से नष्ट कर दें | मानसून के प्रारंभ होते ही खेत को एक या दो बार जुताई करके पाटा लगाकर समतल कर दे |
रागी की खेती में खाद तथा उर्वरक
मृदा की उर्वरक क्षमता के अनुसार खाद का प्रयोग करना चाहिए | असंचित खेती के लिए 40 किलो नाइट्रोजन था 40 लीटर फास्फोरस प्रति हेक्टेयर के दर से देना होता है | नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा को बुवाई के पहले खेत में डाल दे तथा बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा को पौधे के अंकुरण की तीन सप्ताह बाद निराई उपरांत खेत में डालें जैविक खाद की बात की जाए तो 100 कुंतल कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें |
खरपतवार नियंत्रण
रागी की खेती (Ragi ki Kheti) में प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार को नियंत्रित किया जाता है | इसके लिए खेत की अच्छे से निराई गुड़ाई की जाती है | इसकी खेती में पौधों को दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली गुड़ाई रोपाई के 20 दिन बाद करनी चाहिए तथा दूसरी गुड़ाई अगले 15 दिन की अंतराल में करना होता है | अगर आप निराई गुड़ाई नहीं करना चाहते हैं तो खरपतवार नियंत्रण के लिए आप रासायनिक विधि काफी प्रयोग कर सकते हैं |
रोग एवं उनके रोकथाम
- भुरड रोग:- यह रोग पौधे पर पैदावार के समय आक्रमण करता है | यह रोग पदों पर फफूंद के रूप में आक्रमण करता है | इससे प्रभावित स्थान पर भूरे रंग का पाउडर दिखाई देने लगता है तथा कुछ समय बाद पौधा सब कर नष्ट हो जाता है | इससे बचने के लिए पौधों पर मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए |
- जड़ सड़न रोग:- यह रोग ज्यादा तेज जल भराव की स्थिति में देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधे शुरुआत में मुरझाने लगते हैं | इसके बाद पत्तियां पीली पड़ जाती है और पौधा सड़ कर खराब हो जाता है | इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए खेत में जल भराव होने पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें |
- पत्ती लपेटल:- इस रोग का आक्रमण पौधों की पत्तियों पर होता है | इस रोग में सुंडी पत्तियों पर रहकर इसका रस चूस लेती हैं | इसके कुछ समय पश्चात ही पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगती है तथा रोग के अधिक प्रभाव से पत्तियां जाली की तरह दिखाई देने लगते हैं | जिससे पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है | इसके रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास, कुंल्फॉस या का कार्बरील का छिड़काव पौधे पर करना चाहिए तथा रोग से ग्रसित पत्तियों को तोड़कर हटा देना चाहिए |
रागी की फसल की कटाई और पैदावार
रागी की फसल की कटाई किस्म के अनुसार होती है | फिर भी यह कटाई के लिए 100 से 120 दिन के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है | कटाई करने के लिए इसके सिरों को काटकर उन्हें अलग कर दिया जाता है और खेत में एकत्रित करके सुख लिया जाता है | इसके बाद मशीन के माध्यम से दानों को अलग करके बोरियों में भर लिया जाता है तथा पैदावार की बात की जाए तो प्रति हेक्टेयर लगभग 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल जाती है |
रागी की खेती में लाभ
रागी की कीमत की बात की जाए तो इसका बाजरी भाव लगभग 2700 से ₹3000 प्रति कुंटल होता है | इस हिसाब से किसान भाई एक हेक्टेयर की खेती से मात्र तीन से चार महीनों में लगभग 50 से ₹60 हजार की आमदनी आसानी से कर सकते हैं |
सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
यह किस्म 100 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है एवं इसकी उपज क्षमता 27 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है यह किस्म झुलसन रोग के लिये प्रतिरोधी है।
वर्तमान बाजार दरों के अनुसार, रागी का औसत मूल्य ₹4150/क्विंटल है।