केले की खेती कब और कैसे करे

नमस्कार  किसान भाईयो आज मैं आपको यह बताऊंगा की आप केले की खेती कब और कैसे कर सकते है यानी की आपको  केले की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी जैसा की आप लोग जानते है की भारतीय किसानो की आय दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिसका कारण यह है की वह आधुनिक तरीके से खेती कर रहे है यदि आप भी अपनी आय को दुगनी करना चाहते है या अपनी आय में वृद्धि करना चाहते है तो  आप इस पोस्ट को पूरा पढ़े Kele ki kheti से किसानो की आमदनी अच्छी हो सकती है केला सदाबहार फल के नाम से भी जाना जाता है केले में पोषकता और उसकी गुणवत्ता आसानी से उपलब्ध है जिसकी वजह से इसे और  ज्यादा खास बनाता है केले में कई प्रकार की औषधियों के गुण पाए जाते है जिसके वजह से इसकी बाजार में मांग बढ़ती जा रही है इसमें कार्बोहाइड्रेट , विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है इसी वजह से लोग इसे हर मौसम में खाना पसंद करते है देश में केले की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है महारष्ट्र में केले की खेती बहुत ही ज्यादा की जाती है फिर इसके बाद कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बड़े स्तर पर केले की खेती की जाती है तथा गुजरात और असम में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पे की जाती है ।

केला भारत वर्ष का प्राचीनतम स्वदिष्ट पौष्टिक पाचक एवं लोकप्रिय फल है इसमें शर्करा तथा खनिज लवण जैसे कैल्शियम तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाए जाते है केले के फलो का उपयोग पकने पर खाने के लिए और कच्चे फलो का सब्जी बनाने हेतु चिप्स बनाने हेतु आदि के काम में आता है Kele ki kheti लगभग पुरे भारतवर्ष में की जाती है । यदि  आप भी केले की खेती करना चाहते है और आपको केले की खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो आप परेशान न हो आप सही जगह आये आपको इस लेख में केले की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी जैसे की Kele ki kheti कब और कैसे करे , केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु , मिटटी और केले की खेती किस मिटटी में करनी चाहिए , केले की खेती में कोन सी खाद या उर्वरक डाले की जिससे केले की खेती अच्छी हो आदि सभी प्रकार की जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी यानी की आपको इस लेख में Kele ki खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी ।

केले की खेती (Kele ki kheti) के लिए उपयुक्त जलवायु –

Table of Contents

केले की खेती के लिए जलवायु की बात करे तो यह उष्ण तथा आर्द्र जलवायु में उत्पादन के लिए उत्तम मानी जाती है इसका तापमान 20 से 35 सेंटीग्रेड के मध्य रहता है इस प्रकार की जलवायु में केले की खेती अच्छे प्रकार से की जा सकती है Kele ki kheti शीत एवं शुष्क जलवायु में भी की जा सकती है लेकिन पाले और गर्म हवाओ से केले की फसल को काफी क्षति भी होगी । वार्षिक वर्षा 150 से 200 सेंटीमीटर वितरित होनी चाहिए ।

इसे भी पढ़े- मूंगफली की खेती कैसे और कब करे 

केले के लिए उपयुक्त मिटटी –

केले की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी बलुई और मटियार दोमट मिटटी उत्तम मानी जाती है यानी की मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए केले की खेती के लिए अम्लीय तथा क्षारीय मिटटी नहीं होना चाहिए Kele ki kheti के लिए उचित जल निकास होना चाहिए केले की खेती के लिए भूमि का जल स्तर कम से कम 7 से 8 फिट निचे होना चाहिए ।

केले की खेती

केले की खेती के लिए खेत की तैयारी –

केले की खेती के लिए खेत की तैयारी विशेष रूप से करनी चाहिए जैसे की सबसे पहले केले की बागवानी खेती के लिए तलवारनुमा पत्तियों का रोपण गढ़े अथवा नालियों में किया जाता है सर्वप्रथम मई की महीने में गढ़े तैयार करने के लिए खेत को मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करवा दे फिर उसके बाद 1 या 2 बार खेत की जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से करवा दे फिर उसके बाद पाटा लगवा करके खेत को समतल व मिटटी को भुरभुरी बना ले अंतर्वर्ती फसलों के लिए खेत की तैयारी में पौधों की रोपाई के लिए 2 se3 मीटर की दुरी पर 50 सेंटीमीटर चौड़े 50 सेंटीमीटर लम्बे तथा 50 सेंटीमीटर गहरे गढ़े तैयार करते है । इन गढ़ो को तेज धुप में लगभग 15 दिनों के लिए कुल छोड़ दिया जाता है खुला इसलिए छोड़ दिया जाता है क्योकि मिटटी में उपस्थित बैक्टीरिया , कीड़े आदि तेज गर्मी की वजह से समाप्त हो जाये इसके बाद आप तैयार गढ़ो में 20 से 25 किलो ग्राम सदी हुयी गोबर की खाद , 3 मिली मीटर क्लोरोपाईरिफास को 5 लीटर पानी में घोल बनाकर अवस्य्क्तानुसार ऊपर की मिटटी के साथ मिलकर भर देते है याद रहे की गढ़े भरते समय मिटटी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए ।

केले की उन्नत किस्मे –

केले की उन्नत किस्मे की बात करे तो जैसा की आप जानते है की केले हमरे देश में विभन्न परिस्थितियों में तथा उत्पादन प्रणालियों के तहत उगाया जाता है जिसके वजह से किस्मो का चुनाव विभिन्न जरूरतों और परिस्थितियों के अनुसार ही किसमो का चुनाव करना चाहिए निचे दिए गए है केले की प्रमुख किस्मो के नाम –

  • ड्वार्फ कैवेंडिश
  • रोबस्टा
  • नेनटन
  • लाल केला
  • नाइअली
  • सफेद विचलि
  • बसराई
  • कपूर्वलली
  • ग्रैंडनाइन

आपको याद रहे की अपने क्षेत्र की प्रचलित , आकर्षक , विकार रोधी , और अधिक उपज देने वाली किस्मो का ही चुनाव करना चाहिए ।

इसे भी पढ़े- सूरन की खेती कैसे करे

केले रोपाई का समय –

जैसा की आप जानते है की केले की खेती दो मौसमो में की जाती है आप केले की रोपाई 15 जून से 15 जुलाई के मध्य वाले भाग में कर सकते है यानि की 15 जून से 15 जुलाई के मध्य रोपण करना उत्तम माना जाता है केले की रोपण केले की उपज में अत्यंत भूमिका निभाती है । यदि आप केले को सही समय पर रोपाई कर देते है तो आपको अच्छा फसल और अच्छी उत्पादन भी प्राप्त होगी इसलिए आप केले की रोपाई उचित समय पर ही करे ।

केले को रोपण का तरीका –

यदि आप व्यवसायिक केले उत्पादन की फसल की रोपाई कर रहे है तो यह 1.5 बायीं  1.5 मीटर पर उच्य घनत्व के साथ करते है परन्तु पौधे के विकास तथा सूर्य की रौशनी के लिए तथा पर्तिस्पर्ध की वजह से कमजोर हो जाते है इसी समस्या के समाधान के लिए कृषि संस्था शोध के अनुसार 1.82 मीटर की अंतराल  पर की जा सकती है । याद रहे की पत्तियों की दिशा उत्तर से दक्षिण रखते है और पंक्तियों की बिच की दुरी 1.82 मीटर का बड़ा अंतर रखते हुए 3630 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाया जा सकता है ।

केले की सिंचाई , निराई , गुड़ाई –

जैसा की आप जानते है की केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए जरुरी है सिंचाई का उचित प्रबंध हो तभी तो उपज अच्छी होगी । मन जाता है की एक बेहतर किसान पौध रोपाई के दौरान ही बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली स्थापित करवा लेता है ।मोर ड्राप पर क्रॉप के तहत एक तरफ सरकार जहां 90 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है वहीं सिंचाई में काफी बचत होगी जिससे किसानो को बहुत ही ज्यादा लाभ प्राप्त हो रहा है । पानी कम लगेगा और मजदूरों की जरुरत नहीं रह जाएग जिसकी वजह से सिंचाई में कम लागत आएगी । केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कई किसान केले में मल्चिंग करवा रहे है, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरुर चढ़ाई जाए।

केले की खेती में खाद एवं उर्वरक –

केले की खेती में खाद एवं उर्वरक की बात करे तो Kele ki kheti को  काफी मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती  है जो की मिट्टी द्वारा कुछ ही मात्रा में मिलते  हैं भारतीय स्तर पर पोषक तत्वों की जरूरत  20 किलोग्राम गोबर की खाद, 200 ग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 ग्राम फास्फोरस तथा 300 ग्राम पोटैशियम प्रति पौधा मानी  गयी है । केले की फसल को 7 से 8 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.7 से 1.5 किलोग्राम फास्फोरस और 17 से 20 किलोग्राम पोटाशियम प्रति मीट्रिक टन उत्पादन के लीए जरूरत  होती है।पोषक तत्व प्रदान करने पर केला अच्छे नतीजे देता है यानी  की केले की उत्पादन अधिक होती है । परम्परागत रूप से किसान अधिक यूरिया तथा कम फॉस्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करते है लेकिन उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में किया जाना चाहिए यानी की आप एक उचित मात्रा में ही उर्वरको का प्रयोग करे ।

इसे भी पढ़े-  मक्का की खेती कब और कैसे करे

केले की फसल में खरपतवार का नियंत्रण –

केले की फसल में विभिन्न प्रकार के खरपतव आ जाते है । जिसके वजह से पौधों को काफी नुकसान होता है   पौधे को खरपतवार रहित रखने के लिये, रोपने से पहले 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से ग्लााइफासेट (राउंड अप) का छिड़काव कर देना चाहिए  एक या दो बार हाथों से खरपतवार निकालना जरूरी होता है जिससे खेत भुरभुरा बना रहे केले की खेती में खरपतवारो का नियंत्रण होना बहुत ही जरुरी है अतः आप केले की फसल में समय समय पर निराई , गुड़ाई करे और खरपतवारो को खेत से बहार निकाले।

केले के पौधों को सहारा देना –

केले के पौधों को सहारा क्यों दिया जाता है आप सभी जानते होंगे क्योकि केले की  गुच्छे के भारी वजन के कारण पौधे का संतुलन गड़बड़ा जाता है और फलदार पौधे जमीन पर टिक जाते है । इससे उनका उत्पादन तथा गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।इस कारण इन्हें दो बांस के त्रिकोण सम्बल द्वारा झुकाव की ओर से तने पर सहारा दिया जाना चाहिए यह भी गुच्छे के समान रूप से विकास में मदद करता है यदि आप सहारा दे दिए है तो आपको बहुत ही ज्यादा फायदा होगा क्योकि तब दर नहीं रहेगा की केके का पौधा गिर जाये ।

केले की फसल में रोग और रोगो का रोकथाम –

केले की फसल में रोगो की बात करे तो –  केले की फसल में कई रोग कवक एवं विषाणु के द्वारा लगते है, जैसे पर्ण चित्ती या लीफ स्पॉट,गुच्छा शीर्ष या बन्ची टाप,एन्थ्रक्नोज और तनागलन हर्टराट आदि ये केले की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग है ।रोकथाम के लिए ताम्र युक्त रसायन जैसे कापर आक्सीक्लोराइट 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए अथवा मोनोक्रोटोफास 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ छिडकाव करना चाहिए।

केले की फसल में किट और कीटो का रोकथाम –

केले की फसल में किट की बात करे तो केले में कई प्रकार के कीट लगते है, जैसे की  केले का पत्ती बीटिल, तना बीटिल आदि लगते है नियंत्रण के लिए मिथाइल ओ-डीमेटान 25 ई सी 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर बनाकर छिडकाव करना चाहिए । अथवा  कारबोफ्युरान अथवा फोरेट या थिमेट 10 जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा 25 ग्राम प्रयोग करना चाहिए केले की फसल को कीटो से बचाना अति महत्वपूर्ण है क्योकि किट केले की फलो को ज्यादा नुकसान पहुंचाते है ।

केले की फल की कटाई कब करनी चाहिए –

केले की फलो की कटाई की बात करे तो यह रोपी गई फसल  से 11 से 12 महीनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है । इसलिये 28 से 30 महीनों की अवधि में तीन फसलों की कटाई संभव हो पाती है यानी की आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते है Kele ki kheti करके ।

केले की फसल से उत्पादन / पैदावार –

केले की फसल की पैदावार की बात करे तो यह उपयुक्त सभी प्रकार के सुवुधा एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है जैसे की सही समय पर सभी प्रकार की केले की खेती में क्रियाकलाप की जाये और वैज्ञानिक तकनीक से केले की बागवानी की जाये तो 100 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

सामान्यतःपूछे जाने वाले प्रश्न-

केले की खेती कब करनी चाहिए ?

केले की रोपाई 15 जून से 15 जुलाई के मध्य वाले भाग में कर सकते है यानि की 15 जून से 15 जुलाई के मध्य रोपण करना उत्तम माना जाता है केले की रोपण केले की उपज में अत्यंत भूमिका निभाती है।

केले की खेती के लिए उपयुक्त मृदा कौन सी होनी चाहिए ?

केले की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी बलुई और मटियार दोमट मिटटी उत्तम मानी जाती है यानी की मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए केले की खेती के लिए अम्लीय तथा क्षारीय मिटटी नहीं होना चाहिए।

केले की फसल में कौन सी खाद एवं उर्वरक डालनी चाहिए व कितनी मात्रा में ?

केले की फसल में दी जाने वाली खाद एवं उर्वरक के नाम व मात्रा –   20 किलोग्राम गोबर की खाद, 200 ग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 ग्राम फास्फोरस तथा 300 ग्राम पोटैशियम प्रति पौधा मानी  गयी है । केले की फसल को 7 से 8 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.7 से 1.5 किलोग्राम फास्फोरस और 17 से 20 किलोग्राम पोटाशियम  की जरूरत होती है ।