Jai ki kheti kaise karen | जई की खेती की पूरी जानकारी

Jai ki kheti kaise karen :- नमस्कार किसान भाइयों जई एक प्रकार के महत्वपूर्ण अनाज और चारे की फसल होती है जई की खेती गेहूं की खेती की तरह हुई की जाती है यह विशेष उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उगाई जाती है जय के द्वारा बनाए जाने वाला भजन बहुत ही मशहूर माना जाता है क्योंकि है में प्रोटीन और वैसे की भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है जो वजन को कम करने ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने और बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ाने में मदद करता है |

Jai ki kheti kaise karen इसकी खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी :-

जई की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है परंतु यदि आप इसकी खेती अच्छे जल निकास वाली चिकनी रेतीली मिट्टी में करते हैं तो उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है जई की खेती के लिए भूमिका पीएच मान 5 से 6.6 के बीच होना चाहिए |

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Jai ki kheti kaise karen इसके लिए प्रसिद्ध किस्म और पैदावार :-

जई की खेती करने के लिए विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्म उपलब्ध है |

Weston-11 :- यह किस्म 1978 में पंजाब में जारी किया गया था 150 सेंटीमीटर होता है और उनके दाने लंबे और सुनहरे रंग के होते हैं |

Kent :- जई के इस किस्म की खेती भारत के लगभग सभी इलाकों में की जाती है इसके पौधों की लंबाई लगभग 75 से 80 सेंटीमीटर होता है या किसी कुगी भूरांड और झुला रोग की प्रतिरोधक है इसकी चारे के तौर पर औसतन उत्पादन 210 कुंतल प्रति है एकड़ होती है |

OL-10 :- यह किसको पंजाब के सभी संचित इलाकों में उगने के लिए योग्य है चारी के तौर पर इसका औसत उत्पादन 270 कुंतल प्रति एकड़ होती है |

OL-9 :- जय किया कि में पंजाब के सभी संचित इलाकों के लिए योग्य है यदि आप उसकी खेती दोनों के रूप में करते हैं तो इसका औसत उत्पादन 7 कुंतल और चारे के लिए उत्पादन प्रति एकड़ होती है |

जई की खेती के लिए भूमि की तैयारी :-

जय की खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे तरीके से तैयार करना होगा इसके लिए खेत की अच्छी तरीके 6 से 7 बार जुताई करें जय की फसल जौ और गेहूं के फसल के मुकाबले ज्यादा पीएच मान वाली मिट्टी को भी सहन कर सकती है |

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बिजाई :-

बिजाई का सही समय :- अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जई के फसलों की बुवाई करना उचित माना जाता है

दूरी :- पंक्तियों में 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखना अनिवार्य होता है

बीज की गहराई :- जई की बुवाई करते समय बीज की गहराई तीन से चार सेंटीमीटर होनी चाहिए

बिजाई का तरीका :- बीज़ की गहराई जीरो टिलर मशीन या बजाई वाली मशीन से ही की जा सकती है

जई की खेती के लिए बीज की मात्रा एवं बीज उपचार :-

जई की खेती करने के लिए प्रति एकड़ में 25 किलो बीज की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए बीजों की बुवाई करने से पहले कप्तान या थ्योरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज से उपचार करें इससे बीजों में फफूंदी वाली बीमारियों और बैक्टीरिया नहीं लग सकते हैं |

उपयुक्त खाद्य और उर्वरक :-

जई की खेती करने के लिए खेत की तैयारी करते समय गोबर की सड़ी हुई खाद का प्रयोग करें नाइट्रोजन 30 किलो यूरिया 66 किलो और फास्फोरस 8 किलो 50 किलो सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग प्रति एकड़ में करें नाइट्रोजन की अधिक मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालें और बाकी बचे हुए नाइट्रोजन बुवाई के 30 से 40 दिन बाद डालें |

खरपतवार नियंत्रण :-

यदि पौधे सही ढंग से खड़े हो तो नदिनो की रोकथाम की जरूरत नहीं होती है ऊर्जा की फसल में नदीन कम पाए जाते हैं नदिनो को निकालने के लिए कई गोडाई करे |

जई के फसलों की सिंचाई :-

जई की खेती मुख्य रूप से बरौनी क्षेत्र की फसल के आधार पर उगाई जाती है परंतु यदि इसे सिंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाए तो बिजाई के 25 से 28 दिनों के बाद फसलों को दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है |

जई के फसल में लगने वाले हानिकारक कीट और उसकी रोकथाम :-

चेपा :- यह जई की फसल में लगने वाला मुख्य प्रकार का रेट होता है जो पौधों के सालों का रस चूस लेता है जिस कारण से पत्तियां मुड़ जाती हैं और उन पर धब्बे पड़ जाते हैं |

उपचार :- चेपा कीट के हमले को रोकने के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 0.03 प्रतिशत का प्रयोग करें। स्प्रे करने के 12-15 दिनों के बाद जई की फसल को चारे के तौर पर पशुओं को ना डालें।

जई के फसल में लगने वाली बीमारियां और रोकथाम :-

पत्तों पर काले धब्बे :- पत्तों पर काले धब्बे रोग लगने पर अपनी सैलो में अपने आप पैदा हो जाते हैं इनके पौधों के शिखरों से कोंडिओफोरस स्टोमैटा के बीच एक सिंगल रास्ता बना लेते हैं। यह फंगस भूरे रंग से काले रंग की हो जाती है। शुरूआती बीमारी पत्तों के शिखरों से आती है और दूसरी बार यह बीमारी हवा द्वारा सुराखों में फैलती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीज का उपचार करना जरूरी है |

जई के फसल की कटाई :-

जई के फसल की कटाई बिजाई के 4-5 महीने बाद जई पूरी तरह पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दाने झड़ने से बचाने के लिए अप्रैल महीने के शुरूआत में ही कटाई कर लेनी चाहिए |

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