Safed Musli Farming in Hindi- सफेद मूसली की खेती से 5 लाख की

Safed Musli Farming in Hindi- सफेद मूसली (Safed Musli) एक भारतीय प्राकृतिक औषधीय जड़ी बूटी है जो मुख्य रूप से मध्य और उत्तर भारत के जंगलो में पाई जाती है। यह एक प्रमुख औषधीय पौधा है | जिसे दवा, पुरुष शक्ति बढ़ाने और सेहत के लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी खेती एक विशेष प्रकार की मिट्टी और उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। |

सफेद मूसली की पैदावार में अच्छी कमाई को देखते हुए, आज इसकी खेती को बहुत बड़े पैमाने पर किया जा रहा है | प्राकृतिक तरीके से सफ़ेद मूसली जंगलो में बारिश के मौसम में उगती है | सफ़ेद मूसली की फसल लगभग 6 से 8 महीने में तैयार हो जाती है | इसके पौधे की ऊचाई में 40 से 50 सेंटीमीटर तक होते है तथा जमीन के अंदर इसकी जड़े 10 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है |

जो किसान भाई सफेद मूसली की खेती कर अच्छी कमाई करने का मन बना रहे है, तो यहाँ पर आपको सफ़ेद मूसली की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सफेद मूसली की खेती कैसे होती है, Safed Musli Farming in Hindi, सफेद मूसली का रेट इसके बारे में बताया जा रहा है|

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सफेद मूसली की खेती कैसे करें (Safed Musli Farming in Hindi)

सफेद मूसली की खेती के लिए, पहले उचित भूमि का चयन करें और उसमें अच्छी गुणवत्ता की मिट्टी तैयार करें। फिर उचित बीज चुनें और उन्हें अच्छी तरह से बोएं। पानी, खाद और देखभाल के साथ सही समय पर उपयुक्त रूप से संभालें। समय-समय पर पौधों को निगरानी करें और रोगों और कीटों से बचाव करें। अच्छे प्रस्तुतिकरण और बिक्री के लिए उत्पाद को संभालें। उपरोक्त उपायों का पालन करके, सफेद मूसली की खेती में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
Safed Musli Farming in Hindi
आज के इस ब्लॉग में हम आपको सफेद मुसली की खेती (Safed Musli ki kheti) के बारे में विस्तार पूर्वक बताएंगे |

सफेद मूसली खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

सफ़ेद मूसली की खेती (Safed Musli ki kheti) के लिए उपयुक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है जो अच्छी नमी प्रदान करती हो और उचित पोषण प्रदान करे। इसमें अधिकतम खनिज और मिट्टी में पर्याप्त पानी संचारण की क्षमता होनी चाहिए। जलवायु में मिट्टी को उपयुक्त तौर पर तैयार किया जाता है, जैसे कि लोमी मिट्टी, माटी, लाल मिट्टी या लोमी भूमि। इसके अलावा, मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। यह उत्तम उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सफेद मूसली पौधों को उचित पोषण प्रदान करने के लिए संतुलित मिट्टी की आवश्यकता होती है।

सफेद मुसली की खेती के लिए तापमान और जलवायु

सफेद मूसली की खेती (Safed Musli ki kheti) के लिए गर्म तथा आद्र जलवायु की जरूरत होती है |  इसकी खेती को राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के ऊपरी क्षेत्रों में अधिक मात्रा में तथा आसानी से उगाया जाता है |
सफेद मूसली की खेती (Safed Musli ki kheti) को बारिश के मौसम में किया जाता है, उस समय तापमान सामान्य होता है | इसलिए इसकी फसल के लिए किसी विशेष तापमान की आवश्यकता नहीं होती है|

सफ़ेद मूसली की किस्मे

सफेद मूसली की कई किस्मे पायी जाती है | किन्तु इन्हे खासकर चार प्रजातियों में बाँटा गया है | जिसमे क्लोरोफाइटम टयूवरोजम, क्लोरोफाइटम एटेनुएटम, क्लोरोफाइटम बोरिमिलियनम और क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम इसकी मुख्य प्रजातियां है | इसके अतिरिक्त भी इसकी कई प्रजातियां पायी जाती है जिनमे क्लोरोफाइटम अरुन्डीशियम, क्लोरोफाइटम लक्ष्म और क्लोरोफाइटम लेक्सम आदि शामिल है |
भारत देश की बात करे तो यहाँ क्लोरोफाइटम टयूवरोजम और क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम की कई किस्मो की खेती की जाती है, इन किस्मो में एम सी बी -405, MCB – 412, MCT -405, MDB13 और 14 को भारत में अधिक उगाया जाता है |
  • MDB 13 और 14 किस्में- सफेद मूसली की यह किस्म काफी अच्छी किस्म है क्योंकि इसके ऊपर पाए जाने वाले छिलका काफी आसानी से उतर जाता है | इसकी जड़ें भी एक समान मोटी होती है | जिस कारण बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है | इस किस्मत की पैदावार एक एकड़ में 4 से 5 कुंतल तक होती है
  • MCB -405 MCB -412- इस किस्म में पौधों की चैन और किस्म की अपेक्षा अधिक मोटी होती है इसमें के बीच के आसानी से उतर जाते हैं इसकी पैदावार एक एकड़ में सूखी हुई 8 क्विंटल मूसली होती है

सफेद मुसली की खेती (Safed Musli Farming in Hindi) के लिए खेत की तैयारी

सफेद मूसली के लिए खेत की तैयारी महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को अच्छी ग्रोथ और उच्च उत्पादकता के लिए उपयुक्त माहौल प्रदान किया जा सके। इसके लिए, पहले खेत की साफ-सफाई करें और सभी अवशेषों को हटा दें | उसके बाद, उपयुक्त खाद और कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाकर खेत की उपजाऊता को बढ़ाएं। खेत को अच्छी तरह से पलटें और उसमें उपयुक्त प्रमाण में पानी का संचारण होने दें।

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समय-समय पर जल निकासी की व्यवस्था के लिए नालियों का निर्माण करें। खेत की खोदाई करके उच्चतम गुणवत्ता की मिट्टी को ऊपर लाएं और उसे मिट्टी की सतह पर पर्याप्त ढंक बनाएं। अंत में, जल संसाधनों की अच्छी तरह से व्यवस्था करें ताकि पानी की उपलब्धता और सिंचाई की सुविधा हो। इस तरह, उचित खेत की तैयारी से सफेद मूसली के पौधों की सही ग्रोथ और उत्तम उत्पादकता प्राप्त हो सकती है।

सफेद मूसली के बीज की बुवाई का सही समय और तरीका

सफ़ेद मूसली के बीजों की बुवाई का सही समय गर्मी के मौसम में होता है। इसका उचित समय फरवरी से मार्च के महीने तक होता है। इस समय पर मिट्टी गरम होती है और बीजों का उत्तम अंकुरण होता है। सबसे पहले खेत की तैयारी करें। मिट्टी को अच्छे से पलटें और उसमें खाद मिलाएं। अच्छे गुणवत्ता वाले सफ़ेद मूसली के बीजों का चयन करें। बीजों को पानी में 24 घंटे के लिए भिगोकर फिर उन्हें धूप में सुखाएं।
खेत में बीज बोने के लिए, बीजों को 1 इंच की गहराई में बोएं। बीजों के बीच 6-8 इंच की दूरी रखें। बुवाई के बाद, पौधों को नियमित रूप से पानी दें और उन्हें उचित देखभाल दें। खेत में बीज बोने के बाद, गन्ने के पौधों को अनुसारित करें ताकि उन्हें उचित रूप से पानी मिल सके। इन तरीकों का पालन करके, सफ़ेद मूसली के बीजों की सही बुवाई की जा सकती है, जो उच्च उत्पादकता के साथ वृद्धि को प्रोत्साहित करती है।

सफेद मूसली में उवर्रक की मात्रा तथा सिंचाई

सफेद मूसली के लिए उवर्रक की मात्रा और सिंचाई की आवश्यकता उसके विकास की अवस्था और भूमि की स्थिति पर निर्भर करती है। सफेद मूसली के लिए उवर्रक की सामान्य मात्रा आवश्यकता होती है | 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर। यह आमतौर पर बुआई के समय खेत में मिलाया जाता है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में जल संसाधन की कमी होने पर, उवर्रक की मात्रा को अधिक किया जा सकता है।

सिंचाई की बात की जाये तो सफेद मूसली के पौधों को उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रारंभिक दो सप्ताहों में, पानी की आवश्यकता अधिक होती है। इसके बाद, सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, लेकिन पानी की आवश्यकता की मात्रा और अंतराल को मिट्टी की नमी, वायवीय परिस्थितियों और पौधों के स्थिति के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। अनुभव के आधार पर, सिंचाई को प्रातिदिन या प्रतिसप्ताह की आवश्यकता हो सकती है।

सफ़ेद मूसली में खरपतवार पर नियंत्रण

सफेद मूसली की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण के लिए इसे अधिक देख-रेख की आवश्यकता होती है, क्योकि इसकी जड़ो को किसी भी तरह के नुकसान से बचाना होता है | इसलिए खेत में बुवाई के लगभग 15 से 20 दिन उपरांत निराई-गुड़ाई कर देना चाहिए, और समय – समय पर खेत में खरपतवार दिखने पर उसे हाथ से निकालते रहना चाहिए |

सफेद मूसली की फसल में लगने वाले रोग

सफेद मूसली के पौधों में किसी खास तरह के रोग देखने को नहीं मिलते है, किन्तु इसके बीजो को खेत में लगाते समय उपचारित नहीं किया गया तो पौधों में कवक और फफूंद जैसे रोग लग जाते है, यह रोग कीट रोग होते है | इसलिए खेत में खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए |  इसके बावजूद अगर फसल में रोग लग जाते है, तो उसकी रोकथाम के लिए पौधों पर बायोपैकूनील या बायोधन दवाई का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए, इसके अतिरिक्त ट्राईकोडर्मा की तीन किलो की मात्रा को गोबर की खाद में मिलाकर छिड़काव कर दे |

सफेद मूसली की पैदावार और लाभ

सफेद मूसली की पैदावार की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में लगभग 10 से 12 कुंतल के पैदावार हो जाती है सूखी हुई मूसली की पैदावार 40 क्विंटल से अधिक होती है बाजार में सफेद मूसली की कीमत ₹500 प्रति किलो है इस हिसाब से किसान 4 से 5 लाख की कमाई प्रति एकड़ कर सकते हैं

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