Tarbuj ki Kheti | Watermelon Farming in Hindi | तरबूज की खेती कम लागत ज़्यदा मुनाफा

तरबूज की खेती (Tarbuj ki Kheti )

Table of Contents

भारत में मुख्य रूप से तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) फल के रूप में की जाती है और इसे व्यापारिक फसल के तौर पर उगाया जाता है तरबूज की खेती गर्मी के मौसम में अधिक मात्रा में की जाती है और तरबूज का ऊपरी भाग हरे रंग का तथा अंदर का भाग लाल रंग का होता है पके हुए तरबूज का सेवन गर्मी के मौसम में खाने के लिए अत्यधिक मात्रा में किया जाता है तथा कच्चे तरबूज का इस्तेमाल सब्जी बनाने में किया जाता है जो बहुत ही स्वादिष्ट लगता है तरबूज का सेवन करने से शरीर में रक्तचाप या ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है जिस कारण से गर्मी में लू जैसी बीमारी नहीं लगती है |

Tarbuj ki Kheti

तरबूज के फल में 90% तक पानी की मात्रा उपलब्ध होती है जिस कारण से यह शरीर में पानी की कमी की भी पूर्ति करता है तरबूज को अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे राजस्थान में तरबूज को मतीरा तथा हरियाणा मे इसे हदवाना के नाम से जाना जाता है गर्मियों के मौसम में तरबूज की मांग काफी बढ़ जाने के कारण किसान भाई  तरबूज की खेती करके अधिक मात्रा में लाभ कमा रहे हैं यदि आप लोग भी तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें क्योंकि इस ब्लॉग में तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियां प्रदान की गई है |

भारत में तरबूज का उत्पादन ( Watermelon production in India )

भारत में तरबूज की खेती व्यापारिक फसल के रूप में की जाती है जिस कारण से इसका उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) गर्मी की शुरुआती मौसम में ही की जाती है जिस कारण से इसे भारत के राजस्थान पंजाब हरियाणा मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे विभिन्न राज्यों में मुख्य रूप से उगाया जाता है |

तरबूज की खेती का उपयुक्त समय ( Suitable time for watermelon cultivation )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) करने का सबसे उपयुक्त समय फरवरी और मार्च का महीना होता है यदि आप फरवरी और मार्च के महीने में तरबूज के बीजों की रोपाई करते हैं तो रोपाई किए गए पौधे गर्मी के समय में फल देना प्रारंभ कर देंगे तरबूज की खेती में तैयार फसलों को अन्य फसलों के मुकाबले कम खाद कम पानी और कम समय की जरूरत होती है गर्मी के मौसम में लोग अपने आप को डिहाइड्रेशन से बचने के लिए तरबूज के फल को भरपूर मात्रा में सेवन करते हैं यही कारण है कि किसान भाई तरबूज की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं |

तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान Suitable soil, climate and temperature for Tarbuj Ki Kheti )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) किसी भी प्रकार के उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है परंतु यदि आप अच्छे मात्रा में उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं तो इसकी खेती बलुई दोमट मिट्टी में करें क्योंकि अम्लीय मिट्टी में तरबूज का उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त होता है तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) के लिए भूमि का पीएच मान 5.6 से 6.5 के मध्य होना चाहिए तरबूज की सबसे खास बात क्या होती है कि जिस जगह पर किसान भाई किसी भी प्रकार की फसल नहीं हो कर पाते हैं वहां पर तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) आसानी से कर सकते हैं क्योंकि तरबूज का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है |

जिस कारण से तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) कम आद्रता वाले प्रदेशों में भी बहुत ही आसानी से की जा सकती है गर्मी और सर्दी दोनों ही जलवायु को तरबूज के पौधे आसानी से सहन कर लेते हैं किंतु सर्दियों के मौसम में पढ़ने वाले बालों पौधों के विकास के लिए हानिकारक होते हैं तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) मे 39 डिग्री का अधिकतम तापमान तथा 16 डिग्री का न्यूनतम तापमान सहन करने की क्षमता होती है |

तरबूज की बिजाई समय और ढ़ग ( Watermelon sowing time and method )

Tarbuj Ki Kheti

बिजाई का समय ( Sowing time )

उत्तर प्रदेश में तरबूज के बिजाई का उपयुक्त समय मध्य फरवरी से मार्च और नवंबर से दिसंबर का महीना होता है |

पौधों से पौधों के बीच की दूरी ( Distance between plants )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में पौधों से पौधों के बीच की दूरी अलग-अलग तरीकों पर निर्भर करती है यदि गड्ढा खोदकर बीज़ को लगाते हैं तो कतार से कतार की दूरी 2 से 4 मी और पौधों से पौधे मैं लगभग 60 से 65 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए |

बीज़ की गहराई ( seed depth )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में बीजों को दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में होना चाहिए |

बीज़ों की बुआई का ढ़ग ( method of sowing seeds )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में बीजों की मोबाइल अलग-अलग तरीकों से की जाती है जैसे क्यरियो पर लगाना गड्ढा खोद कर लगाना मेड पर रितु और मौसम के आधार पर लगाना चाहिए |

क्यारी में लगाने का ढंग ( Method of planting in bed )

यदि तरबूज के बीज को की क्यारियो में लगाते हैं तो इसे क्यारियो के केवल एक ओर ही लगाये एक समय पर दो से तीन बीज बोये और जमाव के बाद एक सेहतमंद पौधे को रखें और पौधों को उखाड़ कर फेंक दें पौधों से पौधों के बीच की दूरी 50 से 80 सेंटीमीटर होना चाहिए |

गड्ढो में बीज़ लगाने का ढंग ( Method of planting seeds in pits )

यदि आप गड्ढे विधि द्वारा बीज को लगाते हैं तो एक गड्ढे में तीन से चार बीज बोये और गड्ढा 60 * 60 * 60 सेंटीमीटर का रखें दो गड्ढो के बीच का फैसला 2 से 4 मी और पौधों से पौधों के बीच की दूरी 0.6 से 1.2 मीटर तक रखें गुड्डू को अच्छे तरीके से रूढ़ि और मिट्टी की सहायता से भर दे जमाव के बाद एक विकसित पौधे को ही गड्ढे में रखें |

मेड पर बीज़ लगाना ( Seed on maid )

मेड पर बीज लगाने का तरीका गड्ढो में बीज लगाने के तरीके जैसा ही है इस विधि में 30 * 30 * 30 सेंटीमीटर के गड्ढे एक से 1.5 मी की दूरी पर लगे एक मेड पर दो बीज़ लगाये |

तरबूज की खेती में प्रयुक्त बीज़ की मात्रा और उपचार ( Quantity and treatment of seeds used in watermelon cultivation )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) करने के लिए एक एकड़ खेत में 1.5 से 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है बीज की बुवाई करने से पहले 2 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति किलो से उपचारित बीज को बुआई से पहले 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति किलो से उपचार करें । रासायनिक उपचार के बाद बीज को 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा विराइड से उपचार करें । बीज को छांव में अच्छे तरीके से सूखा दे |

तरबूज की खेती में प्रयुक्त खाद और उर्वरक की मात्रा  ( Amount of manure and fertilizer used in watermelon cultivation )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) करने के लिए सबसे पहले खेतों में सड़ी हुई गोबर की खाद 8 से 10 टन डाल दें इसके पश्चात खेतों में 25 किलो नाइट्रोजन 18 किलो फास्फोरस 16 किलो पोटाश प्रति एकड़ में डाल दें और बीजों की बुवाई के बाद 55 किलो यूरिया 100 किलो सिंगल सुपर फास्फेट 25 किलो पोटाश और एक तिहाई मात्रा में नाइट्रोजन डाल दें बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा दूसरी किस्त बैलों के आसपास डाल दे और मिट्टी में पूरी तरह से मिला दें |

बीजों की बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद फसल में एन पी के (19:19:19) + लघु तत्व 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिड़काव कर देना चाहिए और  फूलों को गिरने से बचाने के लिए तथा अधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए 10 प्रतिशत 3 मि.ली. हयूमिक एसिड + 5 ग्राम एम ए पी प्रति लीटर का फूल आने पर प्रयोग करें।

सैलीसाइलिक एसिड (एसपरिन 350 एम जी 4-5 गोलियां) प्रति 15 लीटर फूल आने पर , पकने पर 30 दिनों बाद छिड़काव कर दे फसल बीजने के 60 दिनों के बाद 110 ग्राम 13:0:45+25 मि.ली. हैकसाकोनाज़ोल प्रति 15 लीटर को  तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में फलों के अच्छे विकास और सफेद रोग से बचाने के लिए स्प्रे करें। फल के अच्छे आकार के लिए मिठास और रंग के लिए बीजने के 65 दिनों बाद 1.5 किलो 0:0:50 प्रति एकड़ को 100 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दे |

तरबूज की सिंचाई ( watermelon irrigation )

यदि आप तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) नदी के किनारे कर रहे हैं तो इन्हें अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि उनके पौधे की जड़े भूमि से पानी को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं और यदि आप मैदानी और स्वस्थ क्षेत्र में इसकी खेती कर रहे हैं तो सिंचाई की अत्यधिक जरूरत होती है इस समय फसलों की पहली सिंचाई बीजों की बुवाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए तथा दूसरी सिंचाई कर से पांच दिन बाद करते हैं और जब इनके बीच अंकुरित हो जाए और पौधे बन जाए तब उसे समय उनके पौधों को 7 से 8 दिन में पानी देते रहना चाहिए |

तरबूज के पौधे में खरपतवार नियंत्रण ( Weed control in watermelon plants )

तरबूज की फसल को खरपतवार नियंत्रण की अत्यधिक आवश्यकता होती है खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निराई गुड़ाई की विधि का इस्तेमाल किया जाता है तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में पहले गुड़ाई बीजों की बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद करना चाहिए और गुड़ाई के बाद पौधों की जड़ों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दें जिससे पौधे अच्छे तरीके से विकसित हो पाते हैं और पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में पौधों की अधिकतम निराई – गुड़ाई चार से पांच बार करना आवश्यक होता है |

तरबूज के पौधों में लगने वाले रोग तथा रोगथाम  ( Diseases and prevention of watermelon plants )

Tarbuj ki Kheti

 

फल मक्खी रोग ( Fruit fly disease )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) फल मक्खी रोग फलों पर बहुत ही तेजी से आक्रमण करती है जो काफी नुकसानदायक कीडा हैं जो पैदावार को अधिक प्रभावित करता है मक्खी रोग में मादा कीड़े अपने अंडे फल के अंदर देती हैं यह फल को खाने लगती है जिससे फल गाल जाता है इस रोग से प्रभावित फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए फल मक्खी रोग के लक्षण दिखाई देने पर 50 ग्राम नीम की की निंबोलियों का घोल प्रति लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें। 3 से 4 बार 20 मि.ली. मैलाथियान + 100 ग्राम गुड़ प्रति 10 लीटर में मिलाकर 10 दिनों के बाद स्प्रे करें |

कद्दू का लाल कीड़ा रोग (Pumpkin Red Bug Disease )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में यह रोग तरबूज के पौधों पर कट के रूप में आक्रमण करते हैं इस रोग से पौधों को बचाने के लिए कर्वरील 50 डस्ट की उचित मात्रा में छिड़काव किया जाता है |

बुकनी रोग (Buccani disease )

यह रोग मुख्य रूप से तरबूज के पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करते हैं इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां सफेद रंग का पाउडर छोड़ने लगते हैं तथा रोग से ग्रसित पौधे प्रकाश का संश्लेषण नहीं कर पाते हैं और पौधों का विकास रुक जाता है तरबूज के पौधों को इंदौर से बचने के लिए डायनोकेप 0.05% और गंधक 0.03% का छिड़काव किया जाता है, इसके अतिरिक्त कार्बेन्डाजिम 0.1% की उचित मात्रा का छिड़काव भी किया जा सकता है |

डाउनी मिल्ड्यू :- (downy mildew )

स रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों के निचली सतह पर गुलाबी रंग का चूर्ण इकट्ठा होने लगता है जिससे फलों की पैदावार अधिक प्रभावित हो जाती है इस रोग से पौधों को बचाने के लिए जाईनेब या मैनकोजेब की 0.03% मात्रा मे छिड़काव 4 से 5 दिन में एक बार कर देना चाहिए |

फ्यूजेरियम विल्ट :- (fusarium wilt )

इस रोग से ग्रसित पौधा पूरी तरह से नष्ट होकर गिर जाता है | यह रोग पौधों पर किसी भी अवस्था में देखने को मिल जाता है | तरबूज के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज रोपाई से पूर्व बीजो को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लिया जाता है, तथा भूमि में केप्टान 0.3% का छिड़काव कर दे | 

तरबूज के फलों की तुड़ाई पैदावार और लाभ ( Watermelon Fruit Harvesting Yield and Benefits )

तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में पौधे बीज़ रोपाई के लगभग 80 से 85 दिन के पश्चात फलों का उत्पादन देना प्रारंभ कर देते हैं जब इनके फलों में लगा डेंटल सुख दिखाई देने लगे तब उसकी पढ़ाई कर लेनी चाहिए और इसके अलावा जब फलों का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे तो समझ चाहिए कि फल पूरी तरह से पैक कर तैयार हो गया है |

फलों की तुड़ाई के बाद उन्हें किसी ठंडा स्थान पर रखकर संरक्षित कर लें एक हेक्टेयर के खेत में तरबूज की उन्नत किस्म से किसान भाई 300 से 600 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं बाजारों में तरबूज की कीमत जिससे किसान भाई एक बार की तरबूज की खेती ( Tarbuj ki Kheti ) में 2.5 से 3 लाख कब भारी मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं |

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न

तरबूज की खेती के लिए बीजों की बुवाई कौन से महीने में की जाती है ?

तरबूज की खेती के लिए बीजों की बुवाई दिसंबर से मार्च महीने तक की जाती है और कुछ क्षेत्रों में इसकी बुवाई मध्य फरवरी में की जाती है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च या अप्रैल में बुवाई की जाती हैं |

तरबूज की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है ?

तरबूज की फसल बीजों की बुवाई के लगभग 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है |

1 एकड़ खेत में कितने क्विंटल तरबूज का उत्पादन प्राप्त होता है?

यदि आप तरबूज की खेती बलुई दोमट मिट्टी या काली मिट्टी में करते हैं तो एक एकड़ खेत में लगभग 400 से 600 कुंतल तरबूज का उत्पादन प्राप्त होता है

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