धान की फसल के प्रमुख चार रोग

हेलो किसान दोस्तों मै अपने इस आर्टिकल में आपको धान में लगने वाले प्रमुख  रोग जैसे – ( धान का झोका , भूरा धब्बा , शीथ ब्लाइट , आभासी कंडवा रोग आदि ) एवं कीटो के बारे में तथा इनका लक्षण क्या है और धान की फसल के प्रमुख चार रोग रोकधाम कैसे की जाये ये सभी जानकरी आपको इस आर्टिकल  में मिल जाएगी अतः आप मेरे इस आर्टिकल के साथ अंत तक बने रहिये ।  धान एक प्रमुख फसल है जिसे चावल उतपन्न होता है यह भारत में होने वाला प्रमुख फसल है ही लेकिन यह पुरे एशिया में विभिन्न देशो में भी धान प्रमुख फसल माना जाता है यह विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उतपन्न होने वाला आनाज है  भारत की आधी आबादी धान की खेती पर ही निर्भर रहती  है यह लगभग 148 मिलियन हेक्टेयर भूमि में उगाया जाता है धान किसानो के लिए फसल आय का प्रमुख स्त्रोत है क्योकि किसान धान की फसल को कम लागत में अधिक उत्पादन कर अधिक आय प्राप्त करते है किसानो को अधिक उत्पादन के लिए उन्हें एकीकृत किट प्रबंधो की एवं उनके रोगो के बारे में विशेष रूप से जानकारी होनी चाहिए तथा उनकी रोकधाम कैसे की जाती है उनको इसकी भी जानकारी होना अति महत्ववपूण है तो आईये जानते है धान की फसल के प्रमुख चार रोग  एवं उनके क्या लक्षण और रोकधाम के कौन से उपाय करने चाहिए

धान की फसल के प्रमुख चार रोग

 1 . झोंका  / ब्लास्ट रोग :

असिंचित धान में इस रोग का प्रकोप सामान्यतः अधिक देखा जाता है इस रोग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है – यह पौधों की पत्तियों पर , तना पर , गांठो पर और बलियो पर दिखाई देता है झोंका ब्लास्ट रोग में पौधों की पत्तियों पर आँख के आकर की अथवा सपिलाकर धब्बे जैसा  दिखाई देता है और बिच में राख के रंग के तथा किनारो किनारो पर गहरे भूरे रंग के होते है तनो की गाठो तथा पेनिफल का भाग आंशिक अथवा पुरे तरीके से कला पद जाता है तथा तना सुकड़ कर गिर जाता है इस रोग का प्रकोप सामान्यतः जुलाई से सितंबर के माह में धान के पौधों पर अधिक दिखाई देता है अतः इस  रोग के निवारण के लिए किसानो को पहले से ही सचेत रहना चाहिए और उनकी रोकधाम के लिए उचित उपाय करना चाहिए

झोंका  रोग

इस रोग का रोकधाम कैसे करे ?

  • झोंका रोग के नियंत्रण के लिए किसानो को ट्राईसाइकलेजोल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके लगाए और जरूरत पड़ने पर 1 % कार्बेन्डाजिम का छिड़काव जब पौधा पुष्पन की अवस्था में आये तब करे
  • किसानो को इस रोग का लक्षण दिखयी देने पर पौधों की बाली निकलने के दौरान आवश्य्कतानुसार 10 से 12 दिन के अंतराल पर कार्बेन्डाजिम 50 % घुलनशील धूल की 15 से 20 ग्राम की मात्रा में 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर देना चाहिए
  • किसानो को रोग प्रतिरोध प्रजातियों का प्रयोग करे जैसे वी एल धान 206 , मझरा -7 , वी एल धान -61 आदि
  • नाइट्रोजन उर्वरक उचित मात्रा में थोड़ी थोड़ी करके कई बार देना चाहिए
  • किसानो को बीम नामक दवा की 300 ml  ग्राम मात्रा में 1000 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव किया जा सकता है

  2 .भूरी चित्ती रोग / पत्र लांछन –

धान का यह रोग लगभग भी देशो के हिस्सों में फैला हुआ है यह रोग खासकर सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , तमिलनाडु आदि जगहों पर ज्यादा इसका प्रकोप देखने को मिलता हे भारत में इस रोग के बारे में (1919) में पता लगा लिया गया था यह उत्तर बिहार का प्रमुख रोग है यह एक बीजजनित रोग है यह रोग हेल्मिन्थो औरएजी द्वारा होता है यह रोग धान की फसल को बिचड़ा से लेकर दानो तक नुकसान पहुँचता है इस रोग के कारण धान की पत्तियों पर भूरे रंग के डब्बे धब्बे बन जाते है इस रोग में पौधे की वृद्धि कम हो जाती है और इससे दाने भी प्रभवित होते है इस रोग में पौधों की पत्तियों पर तिल के आकर के भूरे रंग की काले धब्बे बन जाते है यह धब्बे आकर में बहुत ही छोटे होते है और इनका आकर गोला होता है और गोलों की चारो और हल्की हल्की पीला आभा बनते है ।

इस रोग का प्रकोप उपरौ धान में कम तथा उर्वरता वाले क्षेत्रो में सितंबर माह में अधिक देखने को मिलता है इस रोग का प्रकोप उन क्षेत्रो में अधिक देखने को मिलता है जहा किसान भाई उचित प्रबंधन की ब्यवस्था नहीं कर पाते है इस रोग से पौधे के जड़ से पपौंधो के सभी भागो को रोगी कर देता है इस रोग से ददने के छिलको पर भूरे रंग की धब्बे पड़ जाते है जिससे  चावल बदरंग हो जाते है ।

भूरी चित्ती रोग

इस रोग का नियंत्रण :

  • किसानो को सबसे पहले इस रोग के निवारण के लिए बीजो को थीरम एवं कार्बेन्डाजिम 2.1 की उग्रव दवा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिए
  • किसानो को रोग प्रतिरोधी किस्मे जैसे – बाला , कृष्णा , कुसुमा , कावेरी , राशि और आयी आर 36, 42 आदि का प्रयोग करना चाहिए
  • किसानो को इस रोग को पौधों पर दिखाई देने से पहले ही उन पर मैंकोज के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3  छिड़काव 10 से 12 दिनों के अंतराल पर कर देना चाहिए
  • अनुशंसित नाइट्रोजन की मात्रा ही खेत में डाले
  • किसानो को रोगी पौधों और घासो को नस्ट करे देना चाहिए
  • खड़ी फसल में किसानो को इंडोफिल ऍम -45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतराल में कर देनी चाहिए
  • यदि किसान बीज को बेवीस्टीन2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुआई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए
  • किसानो को खेत की मिटटी में पोटाश , फास्पोरस , मैगनीज और चुने का ब्यवहार उचित मात्रा में कर देना चाहिए

 3 .पर्णच्छन्द अंगमारी / आच्छद झुलसा / आवरण झुलसा रोग –

यह रोग अधिकतर किसनो की परेशानी है जो भारत धान के क्षेत्रो में यह प्रमुख रोग बनकर सामने आया है इस रोग के कारक राइजोक्टोनिया कुकुमेरिस सोलेनाई नामक फफूंद है जिसे हम लोग थेनेटिफोरस के नाम से भी जानते है यह पौधे के ऊपरी भाग पे फफूंद अण्डाकार जैसा हरे पन का दिखाई देता है  यह रोग पत्तियों के आधार पर पत्तियों पर बड़े बड़े धारीदार हरे – भूरे या पुआल के रंग का रोगी स्थान दिखाई देता है फिर ये बाद में तनो के पुरे भाग में पैदा कर देती है यह रोग धान के पौधों पर जब दौजिया बनते समय और पुष्पन अवस्थ्गा में दिखाई देता है इस रोग का लक्षण ज्यादातर पत्तियों एवं पर्णछन्द पर दिखाई देता है रोग की उग्रवस्था में आवरण से ऊपर की भी पत्तियों पर यह लक्षण पैदा कर देती है और सभी पत्तिया रोगी हो जाती है और पौधा झुलसा हुआ दिखाई देने लगता है और आवरण से धान की बालिया बाहर नहीं निकल पाती है यह रोग के लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में प्रकट होते है किसान भाइयो को इस बात का ध्यान रहे की यदि इस रोग का निवारण नहीं किये तो उनको धान की उपज में 50 % की हानि / नुकशान सहना पड़ेगा ।

पर्णच्छन्द अंगमारी

इस रोग का नियंत्रण :

  • किसानो को इस रोग के निवारण के लिए यह विधि अपनानी चाहिए –
  • जेकेस्टी:न या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इंडोफिल ऍम -45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए
  • और खड़ी फसल में में रोग के लक्षण दिखाई देने पर ही किसानो को भेलीडा – माइसीन कार्बनडाईजिम 1 ग्राम या प्रोपिकोनालोल 1 एमएल का 1.5-2 मिली प्रति लीटर में पानी में घोल बनाकर 10 से 12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव कर देनी चाहिए
  • धान के बीज को स्थूडोमोनारं फ्लोरेसेंस की 1 ग्राम या त्रयीकोडर्मा 4 ग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करे
  • किसानो को गर्मी में खेत की गहरी जुताई करवा देना चाहिए और घास तथा फसल के अवशेषों को खेत में ही जला देना चाहिए
  • किसानो को अधिक मात्रा में नाइट्रोजन और पोटाश का प्रयोग न करे
  • इस रोग के रोगरोधी किस्मे – पंकज , सवरंधान और  मानसरोवर आदि

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 4 . आभासी कंड रोग / कंडुआ

यह रोग धान की फसल का एक प्रमुख रोग है यह रोग किसानो के रह एक खेत में दिखाई देता है इस रोग के लक्षण धन की बाली निकलने के बाद ही दिखाई देता है इस रोग के कारण धान के दाने पीले अथवा संतरे रंग के हो जाते है और यह धीरे धीरे रोगग्रस्त होते हुए जैतूनी काले रंग के गोलों में बदल जाते है इस रोग का सबसे ज्यादा प्रकोप सितंबर से अक्टूबर के माह में दिखाई देता है इसकी रोग धाम के लिए किसानो को नींम प्रकिया अपनानी चाहिए ।

आभासी कंड रोग

इस रोग का निवारण / रोकधाम / प्रबंधन  :

  • इस रोग के लिए किसानो के पास जड़ा कोई उपाय है नहीं फिर भी किसान अपनी फसल भचाने के लिए वह कईं प्रकार की विधिया अपनाते है
  • धान की फसल में संक्रमित पौधों को सावधानिक पुर्वक निकल कर उन्हें जला देते है या नस्ट कर देते है
  • और रोग ग्रसित धान के क्षेत्रो में पुष्पन के समय 3 % कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 % एस, पी  का छिड़काव कर दे ।

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