हेलो दोस्तों स्वागत है आपका upagriculture के नई पोस्ट जीरा की खेती (jira ki kheti ) में आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको जीरा की खेती (jira ki kheti ) के बारे में बताएंगे यदि आप भी जीरा की खेती (jira ki kheti ) करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े |
जीरा की खेती (jira ki kheti )
Table of Contents
जीरा का वानस्पतिक नाम क्युमिनम सायमिनम है जीरा एक तरह का पुष्पीय प्रजाति का पौधा होता है पहले जीरा की खेती पठारी प्रदेश और भूमध्य सागर के आसपास की जाती थी परंतु अब इसकी खेती उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में बहुत तेजी से होने लगी है इसके पौधों की लंबाई लगभग 50 सेंटीमीटर तक होती है |
जीरा एक प्रकार का बहुत ही बेहतरीन एंटी-ऑक्सिडेंट होता है और साथ हमारे शरीर में उपस्थित किसी भी प्रकार के सूजन को करने और मांसपेशियों को आराम पहुचांने में कारगर है। इसमें फाइबर भी पाया जाता है और यह आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक व मैगनीशियम जैसे मिनरल्स का अच्छा सोर्स भी है। इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लैक्स जैसे विटामिन भी काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसलिए इसका उपयोग आयुर्वेद में स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम बताया गया है।
जीरा की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी ,जलवायु और तापमान (Suitable soil, climate and temperature for jira ki kheti )
जीरा की खेती (jira ki kheti ) से अच्छी मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए हमें इसकी खेती बलुई दोमट मिट्टी में करना चाहिए या फिर जीरा की खेती (jira ki kheti ) उचित जल निकास वाले खेतों में करना चाहिए और भूमि का पीएच मान भी सामान्य होना चाहिए जीरे की फसल को रवि की फसल के साथ उगाई जाती है इसलिए जीरे के पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से विकसित हो पाते हैं
उनके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है अत्यधिक गर्म जलवायु जीरे के पौधों के लिए हानिकारक होते हैं जीरे के पौधे की रोपाई के लिए 25 डिग्री तापमान उचित होता है तथा पौधों की वृद्धि के समय लगभग 20 डिग्री का तापमान उचित होता है इसके पौधे ज्यादा से ज्यादा 30 डिग्री और कम से कम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते हैं |
जीरे की खेती के लिए उन्नत किस्मे (Improved varieties for cumin cultivation )
इस समय जीरा की खेती (jira ki kheti ) करने के लिए विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्म को तैयार किया गया है जिसकी पैदावार जलवायु के आधार पर अलग-अलग मात्रा में होती है
आर. जेड. 19
ऐसी किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 120 दिन बाद फसलों का उत्पादन देते हैं जिसकी पैदावार एक हेक्टेयर में 10 कुंटल होती है इनसे निकलने वाले दानों का रंग गहरे भूरे रंग का होता है जो दिखने में बहुत ज्यादा आकर्षक होता है जीरा की खेती (jira ki kheti ) में इस किस्म को ऊखटा और झुलसा रोग से बचाना होता है |
जी. सी. 4
इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 105 से 110 दोनों के बाद पैदावार देना आरंभ कर देते है इस किस्म का दूसरा नाम गुजराती 4 होता है जिसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 8 कुंतल तक होता है उनके पौधों की ऊंचाई सामान्य होती है इस किस्म के पौधों से प्राप्त होने वाले दाने हल्के भूरे रंग के होते हैं |
आर .जेड.209
इस किस्म के पौधे की लंबाई सामान्य होती है तथा उनके पौधे बीजों की रोपाई के लगभग 125 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं ऐसे किस्म के पौधे से प्रति हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 कुंतल तक की पैदावार प्राप्त होती है तथा इन पौधों में बनने वाले दानो का आकार मोटा होता है इस किस्म को छाछया रोग से बचाना होता है |
जी. सी. 1
इस किस्म को गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया जीरे की यह किस्म बीजों की रोपाई के लगभग 110 दिनों के पश्चात कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 7 कुंतल तक की पैदावार देती है इसके पौधों को उखटा रोग से बचाना आवश्यक होता है |
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन (Selection of suitable soil for jira ki kheti )
जीरा की खेती (jira ki kheti ) करने के लिए रेतीली चिकनी बाली दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है इसके बाद भी यदि आप इसकी खेती उपजाऊ काली और पीली मिट्टी में भी करते हैं तो अधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त होगी परंतु या अवश्य ध्यान रखें की खेतों में जल भराव की समस्या ना उत्पन्न हो जीरा की खेती (jira ki kheti ) के लिए पूर्णतया समतल भूमिका ही चयन करें |
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जीरा की खेती के लिए खेतों की तैयारी और उर्वरक की मात्रा (Field preparation and quantity of fertilizer for cumin cultivation )
जीरा की खेती (jira ki kheti ) करने के लिए खेतों को अच्छे तरीके से तैयार करना होगा खेतों को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेतों को कल्टीवेटर या रोटावेटर की सहायता से गहरी जुताई कर दे जुताई करने के पश्चात खेतों को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे खेतों की मिट्टी अच्छे तरीके से सुख जाए इसके बाद खेतों में पुरानी साड़ी हुई का गोबर की खाद को डालकर दोबारा जुताई कर देना चाहिए.
जिससे सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में अच्छे तरीके से मिल जाए खाद को खेतों में अच्छे तरीके से मिलने के पश्चात दो या तीन बार तिरछी जुताई कर दे जुताई करने के पश्चात खेतों में पानी भर के पलेव कर दे पलेव करने के बाद खेत की आखिरी जुताई करते समय लगभग 70 किलो डीएपी और 9 किलो यूरिया का छिडकाव खेतों में अवश्य कर देना चाहिए
इसके बाद रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को बराबर कर देना चाहिए जिस कारण खेत अच्छे तरीके से समतल हो जाता है और खेतों में जल भराव जैसी समस्या उत्पन्न नहीं होती है इसके बाद पौधों को विकसित होने के लिए प्रति पौधों में 20 से 25 किलोग्राम यूरिया को तीसरी सिंचाई के दौरान प्रति पौधे पर देना चाहिए |
जीरे की खेती की सिंचाई कब-कब करें (When to irrigate jira ki kheti )
यदि हम बात करें जीरा की खेती (jira ki kheti ) की सिंचाई की तो जीरे की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देना चाहिए और इसके पश्चात 8 से 10 दिनों के बाद दूसरी हल्के सिंचाई चाहिए कर देना चाहिए जिससे बीजों का अंकुरण पूर्ण रूप से विकसित हो सके और फिर 10 से 12 दिनों के बाद हल्के सिंचाई कर दें और इसके पश्चात पौधों में दाना बनने से लेकर दाना के पकने तक 20 दिनों के अंतराल में सिंचाई करते रहे और यह अवश्य ध्यान रखें कि जब दाना पकने लगे तो सिंचाई बहुत हल्की मात्रा में करना चाहिए |
जीरा की खेती में खरपतवार का नियंत्रण (Weed control in cumin cultivation )
जीरा की खेती (jira ki kheti ) करने के लिए जीरा की फसल में खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए बुवाई के बाद की सिंचाई के दो दिन बाद पेंडिमिथेलीन खरपतवार नाशक दवा को 1 किलो सक्रिय तत्व के साथ मिलकर प्रति हेक्टेयर में 5 लीटर पानी का घोल बनाकर सामान्य रूप से छिड़काव कर देना चाहिए इसके पश्चात जब फसल 30 से 35 दिनों का हो जाए तो एक बार निराई गुड़ाई करते हैं |
जीरा की खेती में पौधों पर लगने वाले रोग एवं उसके रोकथाम (Diseases affecting plants in cumin cultivation and their prevention )
जीरा की खेती (jira ki kheti ) करते समय पौधों पर विभिन्न प्रकार के रोग लगते हैं जो की निम्नलिखित है
मोयला रोग
यह एक प्रकार का कीट जनित रोग होता है जो जीरे के पौधों के कोमल अंगों पर आक्रमण कर उसका रस चूस लेता है यह रोग उस समय लगता है जब पौधों में फूल बनते हैं इस रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे सुखकर पूरी तरीके से नष्ट हो जाते हैं इस रोग से पौधों को बचाने के लिए मैलाथियान या मेथोएट की उचित मात्रा पौधों पर छिड़काव कर देना चाहिए जिससे यह रोग समाप्त हो सके |
छाछया रोग
यह रोग जीरे के पौधे पर फफूद के रूप में आक्रमण करते हैं इस रोग से प्रभावित होने वाले पौधे या पत्तियों पर सफेद रंग के फफूंद देखने को मिलते हैं इस रोग से पीड़ित पौधों की पत्तियां सफेद रंग की हो जाती हैं जिससे पौधे प्रकाश का संश्लेषण नहीं कर पाते हैं और वृद्धि करना बंद कर देते हैं इस रोग को समाप्त करने के लिए घुलनशील गंधक का उपयोग किया जाता है उचित मात्रा में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव कर देना चाहिए जिससे यह रोग नियंत्रित हो सके |
दीमक रोग
यह रोग जीरे के पौधों पर शुरू से लेकर कटाई के अंत समय तक किसी भी अवस्था में लग सकता है या दीमक रोग पौधों की जड़ों को काटकर उन्हें हानि पहुंचती है इस रोग से पीड़ित पौधे कम समय में ही नष्ट हो जाते हैं यह रोग मुख्य रूप से खड़ी फसलों में देखने को मिलता है इस रोग को दूर करने के लिए क्लोरोपाईरीफॉस् की उचित मात्रा में छिड़काव पौधों की जड़ों पर किया जाता है इसके अलावा बीजों की रोपाई करने से पहले क्लोरोपाईरीफॉस् का उचित घोल बनाकर बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए क्योंकि बीज़ों को उपचारित करने से यह रोग की संभावना कम हो |
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जीरा के पौधों की कटाई पैदावार और लाभ (Harvesting Yields and Benefits of Cumin Plants )
जीरा की उन्नत किस्म बीज की रोपाई के लगभग 110 से 120 दिन के पश्चात पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है जब इनके पौधों में लगे बीजों का रंग हल्का भूरा रंग का दिखाई देने लगे तो हमें पौधों को काटकर काट लेना चाहिए पौधों को काटने का पक्ष उसमें लगे वीडियो को अच्छे तरीके से धूप में सुख लेना चाहिए और फिर सूखे हुए पशुओं को छात्रा से मशीन द्वारा या डंडों की सहायता से दानों को निकाल लिया जाता है
उन्नत किस्म का चयन करने पर जीरा की खेती (jira ki kheti ) से प्रति हेक्टेयर में 8 से 9 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और यदि हम जीरे की खेती से प्राप्त होने वाले लाभ की बात करें तो जीरा का बाजरी भाव ₹200 प्रति किलो तक होता है जिस हिसाब से किसान भाई जीरे की एक बार की फसल से 40 से 45 हजार तक का मुनाफा कमा सकते है |
सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
जी. सी .4 : यदि आप इस किस्म का चयन करते हैं तो यह किस्म 105 से 110 दिनों के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है |
1 एकड़ खेत में लगभग 8 से 9 कुंतल जीरा का उत्पादन प्राप्त होता है |
जीरा की खेती मुख्य रूप से गुजरात एवं राजस्थान में सबसे अधिक मात्रा में की जाती है जरा की खेती के मामले में मध्य प्रदेश दूसरा स्थान पर है |
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